सूचना आयोग चर्चा में…
राज्य सूचना आयोग इन दिनों चर्चा में है. चर्चा इस बात की नहीं है कि फिलवक्त आयोग को संभाल रहे दोनों सूचना आयुक्त पत्रकार बिरादरी से आते हैं. चर्चा, आयोग के सचिव आनंद मसीह को लेकर है. मुख्य सूचना आयुक्त एम के राऊत का कार्यकाल खत्म होने के बाद से आनंद मसीह के कामकाज के तरीकों पर दोनों सूचना आयुक्त की भौंहे तन गई है. एम के राऊत की विदाई के साथ ही मसीह ने दोनों सूचना आयुक्तों का कार्य विभाजन कर दिया, जबकि कार्य विभाजन करना मसीह के अधिकार क्षेत्र के बाहर था. ये बात अलग है कि सूचना आयुक्तों ने कार्य विभाजन को असंवैधानिक बताते हुए मानने से इंकार कर दिया. चर्चा तो यहां तक है कि आनंद मसीह ने सरकार को पत्र लिखकर मुख्य सूचना आयुक्त के सारे अधिकार मांगे हैं. बताते हैं कि संसद में पारित एक्ट में यह स्पष्ट है कि मुख्य सूचना आयुक्त का अधिकार ट्रांसफर नहीं किया जा सकता. चर्चा ये भी है कि बीते चार महीनों में आयोग के कामकाज की समीक्षा नहीं हुई है. आयोग की अलग-अलग शाखाओं में क्या काम चल रहा है, यह किसी को मालूम नहीं है. सितंबर से अब तक जितने आवेदन आए हैं, उनका पंजीयन तक नहीं हुआ है. अपील और शिकायत के मामले लंबित पड़े हुए हैं. आनंद मसीह राज्य सूचना आयोग में प्रथम अपीलीय अधिकारी भी हैं. सरकार ने ये नोटिफाई किया हुआ है कि सूचना आयोग का सचिव ही प्रथम अपीलीय अधिकारी होगा और वह अपना अधिकार किसी दूसरे को ट्रांसफर नहीं कर सकेगा. मगर आयोग के सचिव ने अवर सचिव को प्रथम अपीलीय अधिकारी का चार्ज दे दिया. एक चर्चा आयोग की गाड़ियों से भी जुड़ी है. कहते हैं कि एम के राऊत जब तक मुख्य सूचना आयुक्त थे, उनके पास दो सरकारी गाड़ियां थी. एक गाड़ी अशोक अग्रवाल के पास थी, जिन्होंने सूचना आयुक्त का अपना कार्यकाल पूरा कर विदाई ली. ये तीनों गाड़ियों का दोहन इन दिनों सचिव महोदय कर रहे हैं. खुद को मिली एक गाड़ी मिला दें, तो चार सरकारी गाड़ियां. मसीह साहब 2013 बैच के प्रमोटी आईएएस हैं. आईएएस अलाॅट होने के बाद से अब तक उन्हें कलेक्टरी नहीं मिली ना ही कोई बड़ा ओहदा. ऐसे में आयोग में ये कहा जा रहा है कि पिछले की पूरी भरपाई यही कर रहे हैं. वैसे जाते-जाते बता दें कि राज्य सरकार जल्द ही मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के रिक्त पदों पर नियुक्ति करने जा रही है. सौ से ज्यादा आवेदन इन पदों के लिए आ चुके हैं.
छपाई करते-करते…
वैसे तो इस दफ़्तर का मूल काम छपाई ही है, इसलिए कोई ये सवाल नहीं उठा सकता कि राज्य प्रशासनिक सेवा के इस अधिकारी ने छपाई के इतर कोई दूसरा काम किया हो. सही मायने में ये वही काम कर रहे हैं, जिसके लिये उनकी पदस्थापना की गई है. बेहिसाब छपाई जारी है. चर्चा है कि मार्च-अप्रैल 2021 में छपाई करते-करते उन्होंने राजनांदगांव में दो फार्म हाउस खरीद लिया. शिवनाथ नदी के किनारे क़रीब साठ एकड़ का और इसके क़रीब ही 25 एकड़ का दूसरा फार्म हाउस. बताते हैं कि सिंचित जमीन को असिंचित बताकर रजिस्ट्री कराई गई है. सरकार के राजस्व में भी चोट देने से उन्हें कोई गुरेज नहीं. सरकार तो सरकार है. दुहाने के लिये ही बैठी है और ऐसे अधिकारी दुहने के लिए. खैर छपाई के कारोबार में कमाया-धमाया यहाँ खत्म नहीं हो जाता. सुना यह भी गया है कि भिलाई में एक बड़े मॉल के क़रीब एक बड़ी सोसायटी में क़रीब पौने दो करोड़ रुपये का मकान खरीदा गया. उसे डिस्मेंटल कराया गया और अब उस जगह पर क़रीब साढ़े तीन करोड़ रुपये खर्च कर आलीशान बंगला ताना जा रहा है.
रेरा में कौन?
रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) के अध्यक्ष विवेक ढांड का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि रेरा का अगला अध्यक्ष कौन होगा? राकेश चतुर्वेदी जब पीसीसीएफ/ वन बल प्रमुख पद से रिटायर हुए, तब उनके नाम की चर्चा जोरों से उछली थी कि सरकार उन्हें यह जिम्मेदारी देने जा रही है, लेकिन गणित तेजी से बदला. सरकार ने उन्हें राज्य जैव विविधता बोर्ड की जिम्मेदारी दे दी. अब एक नई चर्चा चल रही है. चर्चा कहती है कि मौजूदा पीसीसीएफ संजय शुक्ला रेरा के अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं. यदि यह मुमकिन हुआ, तो विवेक ढांड की तरह रिटायरमेंट के कुछ महीने पहले वह वीआरएस से लेंगे. खबर कैम्पा संभाल रहे श्रीनिवास राव को लेकर भी है. कहा जा रहा है कि संजय शुक्ला की जगह राव वन महकमे की कमान संभाल सकते हैं.
फेयरवेल इन जंगल
पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) पी वी नरसिम्हा राव इस महीने 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं. रिटायरमेंट को कुछ ख़ास बनाने की तैयारी की जा रही हैं. पहले मालूम पड़ा कि यह फेयरवेल बारनवापारा में आयोजित किया जाएगा. मगर सुनते हैं कि बारनावापारा में फेयरवेल की अनुमति को लेकर विभाग के एक अफसर ने आपत्ति जता दी. अब कहा जा रहा है कि फेयरवेल अचानकमार टाइगर रिजर्व के जंगल में हो सकता है. जंगल में फेयरवेल पार्टी कैसी होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. बहरहाल अंतिम अनुमति बाकी रह गई है. कई बड़े अफसर भी इस फेयरवेल के जश्न में शिरकत करेंगे. होगा तो जश्न ही, लेकिन अफसर शिरकत कर सकें, इसलिए इसे एक तरह से ऑफिशियल मीटिंग के रुप में दिखाने की कोशिश की जा रही है. ऐसी खबर है. पी वी नरसिम्हा राव संभवत: पहले ऐसे पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ होंगे, जिनके कार्यकाल में राज्य में सर्वाधिक हाथियों ने दम तोड़ा होगा, बाघ-तेंदुए की खाल मिली होगी.
हनुमान की शरण
”संकट कटे मिटै सब पिरा, जो सुमिरे हनुमत बल बीरा”…हनुमान पर छत्तीसगढ़ पुलिस का भरोसा बढ़ा है. बड़े-बड़े केस सॉल्व करने के लिए पुलिस हनुमान की शरण में पहुंच रही है. अब इस मामले को देखिए. विधानसभा थाना क्षेत्र में आठ साल की एक बच्ची लापता थी. चार दिन बाद बच्ची की लाश उसके घर से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर मिली. यह एक ब्लाइंड मर्डर केस था. साथ ही संवेदनशील भी. बच्ची की हत्या करने के बाद रेप किया गया था. आम लोगों का आक्रोश पुलिस के हिस्से था ही, सियासत भी गर्माने लगी थी. बीजेपी पुलिस पर दबाव बना रही थी. 24 घंटे का अल्टीमेटम दे रखा था. अगले दिन दोपहर 12 बजे पुलिस के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन होना था. एसएसपी ने आनन-फानन में एसआईटी का गठन किया. एडिशनल एसपी, स्थानीय थाने के टीआई भी एसआईटी में लिए गए. दबाव ज्यादा था. पुलिस के पास कोई सुराख नहीं था. जब कोई रास्ता ना सूझा, तो एसआईटी ने विधानसभा थाने के करीब ही हनुमान मंदिर की शरण ली. बाकायदा मन्नत मांगी गई कि केस साॅल्व हो जाए तब बड़ा भंडारा कराया जाएगा. हनुमान जी प्रसन्न हुए. जांच सरपट दौड़ने लगी. प्रदर्शन अगले दिन 12 बजे होना था. एसएसपी ने 11.30 बजे ही प्रेस कांफ्रेंस कर आरोपी को मीडिया के सामने पेश कर दिया. अब बड़ा सवाल ये है कि आरोपी को ढूंढा किसने? पुलिस ने या हनुमान ने?
एक किस्सा ये भी…
बिलासपुर पुलिस की भी आस्था हनुमान पर जा टिकी, शायद तभी एक थाना परिसर में हनुमान मंदिर का निर्माण जोर-शोर से शुरू हुआ. सुनते हैं कि टीआई ने मंदिर बनाने के लिए शहर भर के कारोबारियों और अन्य लोगों से खूब चंदा लिया. उस चंदे में मिली राशि से मंदिर निर्माण का काम द्रुत गति से चल रहा था कि अचानक एक आरटीआई लग गया. आरटीआई में यह पूछा गया कि थाना परिसर में मंदिर का निर्माण किस मद से कराया जा रहा है? इधर-उधर सलाह मशविरा किया गया. जिस जगह पर भव्य मंदिर का निर्माण चल रहा था, रातों रात उसे जमींदोज कर दिया गया. अगले दिन लोगों ने देखा, तब मंदिर मौके पर नहीं था. सपाट जमीन थी. बहरहाल ‘आस्था’ की अपनी जगह है. यह मंदिरों की दीवारों और वहां बजने वाली घंटियों की सीमाओं से नहीं बंधी होती. थाना में आने के पहले थानेदार साहब मंदिर की घंटी बजाकर थाने में घुसे और उस इलाके में घटने वाला अपराध औंधे मुंह गिरता नजर आए, तो फिर सरकारों को थाना खोलने की क्या जरूरत? हर गली-मोहल्ले में सरकार मंदिर खोलेगी. सरकारों के लिए भी यह फायदे का सौदा होगा. वैसे भी हमारे देश में जनता के एक वोट का पैमाना अच्छी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, बिजली-पानी जैसे आधारभूत विकास से कहीं ज्यादा ‘आस्था’ है.
- राजनांदगांव पुलिस भर्ती प्रक्रिया रद्द करने के बाद गृह मंत्री विजय शर्मा का बड़ा बयान, कहा- अन्य जगहों की होगी पुलिस भर्ती प्रक्रिया की जांच…
- Sarguja Rape Case: दुष्कर्म पीड़िता ने केस खत्म करने मांगे 1 करोड़… 61 लाख में हुआ सौदा, पुलिस ने किया गिरफ्तार, रायपुर के कारोबारी से जुड़ा है मामला…
- Maiya Samman Yojana: महिलाएं बनेंगी धनवान, 55 लाख हितग्राहियों के खाते में आएंगे पैसे, जानिए कौन सी सरकार दे रही राशि…
- Bihar News: प्रतिभा सम्मान समारोह का हुआ आयोजन, खिलाड़ियों एवं छात्रों को किया गया सम्मानित
- 2008 में गिर ही गई थी UPA गवर्मेंट! तब मुलायम बने थे मनमोहन के मददगार, ऐसे दूर किया था सरकार का संकट
Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें,
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें,
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक