जमीर अहमद जुमलाना की याचिका पर एएसआई (ASI) ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सौंप दी है. 17 दिसंबर को दाखिल याचिका के जवाब में रिपार्ट पेश किया गया है. सुप्रीम कोर्ट में दोनों ढांचों को बचाने की गुहार लगाई गई है. दिल्ली (Delhi) के आशिक अल्लाह दरगाह (Aashiq Allah Dargah) और बाबा फरीद की चिल्लागाह ग्रीन बेल्ट के अतिक्रमण पर इन दोनों ढांचो पर ध्वस्तिकरण का खतरा मंडरा रहा है. ASI ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि महरौली पुरातत्व उद्यान के अंदर दो संरचनाएं धार्मिक महत्व रखती हैं, क्योंकि मुस्लिम श्रद्धालु हर रोज आशिक अल्लाह दरगाह और 13वीं शताब्दी के सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह पर आते हैं. चिल्लागाह एक विशेष धार्मिक समुदाय की धार्मिक भावना और आस्था से भी जुड़ा हुआ है.

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सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में एएसआई ने कहा ‘पुनर्स्थापना और संरक्षण के लिए किए गए संरचनात्मक संशोधनों और परिवर्तनों ने इस स्थान की ऐतिहासिकता को प्रभावित किया है.’ एएसआई ने आगे कहा कि शेख शहीबुद्दीन (आशिक अल्लाह) की कब्र पर लगे शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1317 ईसवीं में हुआ था.

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एएसआई ने दलील दी कि यह मकबरा पृथ्वीराज चौहान के किले के नजदीक स्थित है और प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के अनुसार 200 मीटर के विनियमित क्षेत्र में आता है.  एएसआई ने कहा कि किसी भी मरम्मत, नवीनीकरण या निर्माण कार्य को सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति से ही किया जाना चाहिए.

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डीडीए जा रही तोड़ने

याचिका में कहा गया है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर ऐतिहासिक महत्व का आंकलन किए बिना ही ढांचों को ध्वस्त करने की योजना बना ली है. जुमलाना ने आठ फरवरी के दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना की अगुवाई वाली धार्मिक समिति इस मामले पर विचार कर सकती है.

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सुप्रीम कोर्ट जमीर अहमद जुमलाना की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें दिल्ली के महरौली पुरातत्व उद्यान के अंदर सदियों पुरानी धार्मिक संरचनाओं के संरक्षण का अनुरोध किया गया है. इन संरचनाओं में 13वीं शताब्दी की आशिक अल्लाह दरगाह (1317 ईसवीं) और बाबा फरीद की चिल्लागाह भी शामिल है.

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