कुमार इंदर, जबलपुर। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय कभी एशिया का सबसे बड़ा और पहला विश्वविद्यालय कहलाता था लेकिन आज इसी विश्वविद्यालय में सीट भरने के लाले पड़े है। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय(JNKV) के वर्तमान दौर की बात करें तो तकरीबन एक तिहाई बच्चों ने यहां पर एडमिशन लेना छोड़ दिया है और यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता ही चला जा रहा है, और यह सब हो रहा है मध्य प्रदेश शासन की दोहरी नीति के चलते। आलम यह है कि विश्वविद्यालय की 20 से 30% सीट खाली रह जाती है जिसको भरने के लिए विश्वविद्यालय कई बार काउंसलिंग करा चुका है लेकिन कोई रिजल्ट हाथ नहीं आया।

एक नजर एडमिशन की संख्या पर

2014-15 में 40000 छात्र PAT परीक्षा में बैठते थे।
2019 में 15177 छात्र PAT परीक्षा में बैठते थे।
2023 में 13243 छात्र PAT परीक्षा में बैठते थे।2024 में 13849 छात्र PAT परीक्षा में बैठते थे।

सरकार के दौरे मापदंड के कारण बनी स्थिति

दरअसल जवाहर लाल कृषि विश्वविद्यालय में एडमिशन की घटती संख्या के पीछे कई वजह है जिनमें सबसे पहली और अहम वजह खुद सरकार का दोहरा मापदंड है। जिसके तहत दूसरे निजी और पारंपरिक कॉलेज यहां तक कि विश्वविद्यालय में बिना PAT क्लियर किए ही 12वी के बाद बच्चों को सीधे एडमिशन दे दिया जाता है जिससे बच्चे PAT का निकाले बिना आसानी से दूसरे विश्वविद्यालय और कॉलेजों में एडमिशन लेकर डिग्री ले रहे हैं। जबकि जवाहर लाल कृषि विश्वविद्यालय में 12वीं के बाद प्री एग्रीकल्चर टेस्ट लिया जाता है जो की जून-जुलाई में होता है।

मामला कोर्ट की दहलीज पर

उसका परिणाम अगस्त में आने के बाद एडमिशन का सिलसिला शुरू होता है इसके चलते भी यहां पर एडमिशन लेने की काफी लंबी प्रक्रिया होती है, यह भी एक वजह है कि यहां पर छात्रों का एडमिशन लेने में रुझान घटता जा रहा है। अब इस बात को लेकर सामाजिक संगठनों ने भी विरोध करना शुरू कर दिया है, सामाजिक संगठन नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने इसे लेकर राजपाल से लेकर शिक्षा सचिव तक को एक लेटर लिखा है साथी मामला कोर्ट की दहलीज पर भी पहुंचा है।

कौन-कौन से कॉलेज करवा रहे हैं बीएससी एग्रीकल्चर

बता दें की मध्य प्रदेश में सबसे पहले जबलपुर का JNKV और ग्वालियर की RVS विश्वविद्यालय द्वारा ही बीएससी एग्रीकल्चर और अन्य कोर्स कराए जाते थे लेकिन पिछले 3 सालों में नई शिक्षा नीति आने के चलते अब उच्च शिक्षा विभाग ने दूसरे विश्वविद्यालय और प्राइवेट कॉलेज को भी बीएससी एग्रीकल्चर कराने की अनुमति दे दी है, यही वजह है की सरकार की नई शिक्षा नीति और नियामक आयोग के इस तरह की अनुमति के बाद तेजी से दूसरे प्राइवेट कॉलेज में छात्र ने एडमिशन लेना शुरू कर दिया है तो वहीं जवाहरलाल नेहरू की विश्वविद्यालय एडमिशन की संख्या घटती जा रही है। प्रदेश में तकरीबन 70 से ज्यादा कॉलेज ऐसे है जो बिना PAT एग्जाम के ही एग्रीकल्चर कोर्स करवा रहे हैं, वही बात जबलपुर की की जाए तो यहां पर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, साइंस कॉलेज, महाकौशल कॉलेज, मानपुर बाई कॉलेज बीएससी एग्रीकल्चर के कोर्स कर रहा है वह भी बिना PAT एग्जाम दिए।

JNKV और दूसरे कॉलेजों में अंतर

4 साल के Bsc एग्रीकल्चर JNKV से करने पर प्रति सेमेस्टर करीब 22 हजार रुपए लगते हैं तो वहीं दूसरे कॉलेज और विश्वविद्यालय से करने पर पति सेमेस्टर 50000 रुपए तक लिए जाते हैं। इस हिसाब से दूसरे कॉलेज में बीएससी एग्रीकल्चर जहां चार लाख से ज्यादा में हो रही है वहीं JNKV में तकरीबन दो से सवा दो लाख रुपए में छात्र बीएससी एग्रीकल्चर की डिग्री हासिल कर लेता है। JNKV के बच्चों को आईसीआर से 3000 रूपए महीना स्टाइपेंड मिलता है, जबकि प्राइवेट या दूसरे विश्वविद्यालय में इस तरह की कोई सुविधा नहीं है।

धीरेन्द्र खरे, डीन-JNKV में पढ़ने वाले छात्रों का तीसरा सबसे बड़ा अंतर यहां के छात्रों को किसानों के साथ प्रेक्टिकल करवाया जाता है उनको खेत में काम करवाया जाता है जबकि दूसरे कॉलेजों के पास ना तो इस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर और ना ही इस तरह की कोई ट्रेनिंग दी जाती है। शासन की इस दोहरी नीति का शिकार जवाहर लाल कृषि विश्वविद्यालय ने इस बाबत कई बार भोपाल में बैठे अपने उच्च अधिकारियों से पत्राचार किया लेकिन आज तक उन्हें कोई माकूल जवाब नहीं मिल पाया।

मध्य प्रदेश में JNKV की ब्रांचेस

मध्य प्रदेश में यदि जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय की ब्रांचेस की बात की जाए तो में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के साथ प्रदेश में आठ जगह एग्रीकल्चर कॉलेज संचालित किया जा रहे हैं, जिसमें जबलपुर के बाद रीवा, टीकमगढ़, गंजबासौदा, बालाघाट, होशंगाबाद, खुरई और पन्ना में कुल मिलाकर 8 कॉलेज संचालित किए जा रहे हैं।

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