मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भारत की सबसे बड़ी मस्जिद ताज-उल-मस्जिद स्थित है। जो 430,000 वर्ग फीट के क्षेत्र में बनाई गई है। इसके साथ ही यह एक समय में 1,75,000 लोगों को समायोजित भी कर सकती है। ताज-उल-मस्जिद को केवल एमपी और देश ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक माना जाता है। यहां हर साल तीन दिन का इज्तिमा उर्स होता है। जिसमें देश ही नहीं दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं।

यह मध्य भारत में मुगल वास्तुकला और शिल्प कौशल के बेहतरीन नमूनों में से एक मानी जाती है। संगमरमर की गुंबद और लंबे मीनारों की विशेषता वाली इस मस्जिद का निर्माण 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। ये मुस्लिमों के लिए धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण स्थल है। जहां देश और दुनियाभर के तमाम मुस्लिम समुदाय के लोग यहां प्रर्थना करने के लिए आते हैं। एशिया की सबसे बड़ी कहे जाने वाली ताजुल मस्जिद का निर्माण मुगल काल में हुआ था। शाहजांह बेगम ने सन 1844 में इसका काम शुरू कराया था जो सन 1901 में रुक गया था फिर सन 1985 में मौलाना सैयद हशमत अली साहब इसका काम पूरा कराया।

कब हुई थी इसकी स्थापना

सिकन्दर बेगम ने ताज-उल-मस्जिद को बनवाने का ख्वाब देखा था, इसलिए ताज-उल-मस्जिद सिकन्दर बेगम के नाम से सदा के लिए जुड़ गई। सिकन्दर बेगम सन 1861 में इलाहाबाद दरबार के बाद जब वह दिल्ली गई तो उन्होंने देखा कि दिल्ली की जामा मस्जिद को ब्रिटिश सेना की घुड़साल में तब्दील कर दिया गया है। इसके बाद सिकन्दर बेगम ने अपनी वफ़ादारियों के बदले अंग्रेज़ों से इस मस्जिद को हासिल कर खुद हाथ बंटाते हुए इसकी सफाई करवाकर शाही इमाम की स्थापना की।

मज्जिद का वैज्ञानिक नक्शा

शाहजहां बेगम ने ताज उल मस्जिद का बहुत ही वैज्ञानिक नक्शा तैयार किया था। ध्वनि तरंग के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 21 खाली गुब्बदों की एक ऐसी संरचना का नक्शा तैयार किया कि मुख्य गुंबद के नीचे खड़े होकर जब इमाम कुछ कहेगा तो उसकी आवाज़ पूरी मस्जिद में गूंजेगी। शाहजहां बेगम ने ताज उल मस्जिद के लिए विदेश से करीब 15 लाख रुपए का पत्थर भी मंगवाया था। इसका कारण ये था की उसमे इसका अक्स भी दिखता था। वहीं मौलवियों ने इस पत्थर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी।

मस्जिद का पूरा नहीं हो सका काम

आज भी ऐसे कुछ पत्थर ‘दारुल उलूम’ में रखे हुए हैं। धन की कमी की वजह से उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी और शाहजहां बेगम का ये ख्वाब भी अधूरा ही रह गया। गाल के कैंसर से उनका असामयिक मृत्यु हो गई। इसके बाद सुल्तानजहां और उनके बेटा भी इस मस्जिद का काम पूरा नहीं कर सके।

भारत सरकार के दखल से बनी पूरा मस्जिद

1971 में भारत सरकार के दखल देने के बाद ताज-उल-मस्जिद पूरी तरह से बन गई। अब जो ताज उल मस्जिद आप देखते हैं उसे बनवाने का श्रेय मौलाना मुहम्मद इमरान को जाता है। जिन्होंने सन 1970 में इसे मुकम्मल करवाया। ये मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद की हूबहू नकल है। बता दें कि ये आज एशिया की छठी सबसे बड़ी मस्जिद है, लेकिन यदि क्षेत्रफल के उससे देखा जाए और इसके मूल नक्शे के हिसाब से वुजू के लिए बने 800×800 फीट के मोतिया तालाब को भी इसमें शामिल कर लें तो ये दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद होगी।

कैसी है मस्जिद

मस्जिद में दो 18 मंजिला ऊंची मिनार है, जो संगमरमर के गुंबजो से सजी हुई है। इसके साथ ही मस्जिद में तीन बड़े गुंबज भी है, जो मस्जिद की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं। मस्जिद के बीचो- बीच पानी से भरा एक बड़ा सा वज़ुखाना बनाया गया है। मस्जिद में एक बड़ा सा दालान, संगमरमर का फर्श और स्तम्भ मौजूद है। मोतिया तालाब और ताज-उल-मस्जिद को मिलाकर मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 14 लाख 52 हजार स्क्वेयर फीट है।

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