पंकज सिंह भदौरिया, दंतेवाड़ा.  किरंदुल प्रोजेक्ट एरिया में एनएमडीसी द्वारा संचालित अस्पताल में भारी अव्यवस्था है. इस प्रोजेक्ट अस्पताल में मरीजों का इलाज नहीं हो रहा है. अस्पताल में अब तक कोई ब्लड बैंक भी नहीं है. दुर्घटनाओं में गंभीर मरीजों को समय पर ब्लड नहीं मिल पाता. इसके साथ ही ग्रामीणों को स्मार्ट कार्ड का भी लाभ नहीं मिल रहा. क्षेत्र के मरीज इलाज के अभाव में जगदलपुर और राजधानी जाना पड़ रहा है.

बता दें कि किरन्दुल एनएमडीसी का मैनेजमेंट अस्पताल की व्यस्थाओं को औपचारिकता की तरह निभाता नजर आ रहा है. सरकार दावा करती है कि बस्तर में गरीबों के इलाज के लिए स्मार्ट कार्ड से स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी सौगात दी है. लेकिन किरन्दुल के इस प्रोजेक्ट अस्पताल में आज तक स्मार्ट कार्ड का लाभ भी क्षेत्रवासियों को महरूम होना पड़ रहा है.दरअसल किरन्दुल में बैलाडीला ओर माइंस की खदानों से लौह अयस्क की सबसे बड़ी खदान बैलाडीला में है. जिसके बदले में एनएमडीसी प्रोजेक्ट सीएसआर मद से शिक्षा, स्वास्थ्य पर कुछ अंश खर्च करता है.  इसके बाद अपनी जवाबदारियों से पल्ला झाड़ने में लगा है.

एनएमडीसी किरन्दुल के इस अस्पताल में फ्री ऑफ कास्ट इलाज की दावेदारी का मैनेजमेंट दम्भ भरता है. लेकिन अस्पताल प्रबंधन में उन्हीं मरीजों को गम्भीर बीमारी के इलाज से निपटने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है.  किरन्दुल के इस प्रोजेक्ट अस्पताल में सबसे बड़ी बात अब तक कोई ब्लड बैंक भी नहीं है. दुर्घटनाओं में गम्भीर मरीजों को अक्सर इसी वजह से इस अस्पताल में इलाज के अभाव में मेकाज जगदलपुर या फिर राजधानी की तरफ परिजनों को ले जाना पड़ता है.

अस्पताल की डीन पूर्णिमा पटेल मीडियाकर्मियों को परिसर के अंदर देखकर ये नसीहत दे रही है कि बिना परमिशन अस्पताल कैम्पस में भ्रमण नहीं कर सकते हैं मगर अस्पताल के बाहरी आवरण और नजरों से ही दर्जनों अवस्थाएं खुली आँखों से साफ साफ दिखाई दे रही है. इससे ही साफ तौर पर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि लोह अयस्क की बेशकीमती खदानों के लोहे को निकालने एनएमडीसी जैसी कम्पनी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही मगर उन्हीं खदानों के धूल और डस्ट से बीमार आदिवासियों और प्रभावित ग्रामों को स्वास्थ्य के नाम पर बीआईओएम किरन्दुल के अस्पताल पर सिर्फ छलावा कर रही है.

 

अल्ट्रासाउंड मशीन सालों सेे बेकार

बता दें कि एनएमडीसी के इस किरन्दुल अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन वर्ष भर पहले से मौजूद है. मगर चिकित्सक के अभाव में कबाड़ की तरह धूल फांक रही है, जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन बेहद जरूरी मानी जाती है. अस्पताल क्षेत्र में भ्रमण के दौरान अव्यवस्था का ऐसा आलम था कि आदिवासी बच्चे हाथों में कैनुला लगाए अस्पताल के बाहर मरीज की पोशाक में धूल खेलते नजर आ रहे थे. और सारा स्टाफ अपने काम में व्यस्त था.