रायपुर. अक्षय तृतीया, अक्ति या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं. पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है. इसी कारण इसे Akshaya Tritiya कहा जाता है. वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है.

साल 2021 में Akshaya Tritiya 14 मई यानी आज पड़ा है. यह हिंदू कैलेंडर के सबसे शुभ दिनों में से एक है और लोग इस दिन सोना खरीदते हैं, इस उम्मीद में कि इससे सौभाग्य और समृद्धि आएगी. ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर शुरू या किए जाने वाला कोई भी काम शाश्वत रहता है और समय के साथ बढ़ता है.

अक्षय तृतीया की पूजा का मुहूर्त

Akshaya Tritiya का दिन शुरू से अंत तक शुभ होता है, लेकिन पूजा करने का सबसे अच्छा समय सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:18 बजे के बीच होगा. देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग इस दिन को अलग-अलग नामों से जानते है. छत्तीसगढ़ में इस त्यौहार को अक्ति के नाम से जाना जाता है, जबकि राजस्थान और गुजरात में लोग इसे आखा तीज के नाम से जानते हैं.

आपको बता दें कि अक्षय तृतीया के पर्व का बहुत महत्व होता है. कुछ खरीदने और इस दिन को मनाने के लिए सोने की दुकानों के बाहर लंबी लाइने दिखती हैं. एक दर्शनीय उत्साह Akshaya Tritiya को भगवान श्री कृष्ण से भी जोड़ा जाता है. श्री कृष्ण ने पूरे मन से उनके विनम्र प्रसाद को स्वीकार किया और अपने मित्र पर धन की वर्षा की. इसलिए, ये वह दिन है जब सुदामा का भाग्य बदल गया और वह एक धनी व्यक्ति बन गए थे.

सोना खरिदना क्यों होता है शुभ?

Akshaya Tritiya के दिन लोग सोना या उससे बनी कोई भी चीज खरीदने को शुभ मानते हैं. ग्राहकों के साथ-साथ वेंडरों में भी उत्साह देखा जाता है. इन भौतिक सुख-सुविधाओं के अलावा, लोग आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं. इसलिए, कुछ लोग सर्वशक्तिमान का आशीर्वाद लेने के लिए भोजन या आवश्यक वस्तुएं को दान में देते हैं.

Akshaya Tritiya पर लोग अपने पूर्वजों की भी पूजा-अर्चना करते हैं. ये महाभारत से भी संबंधित है, जब ऋषि दुर्वासा पांडवों से मिलने गए थे, तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय पात्र भेंट किया था. माना तो ऐसा भी जाता है कि भगवान विष्णु के छठे अवतार – परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था.

शादी-ब्याह के लिए होता है शुभ

इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है. बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं. अनेक स्थानों पर छोटे-छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ मिट्टी से बने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं. इस प्रकार गांवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं. कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गांव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है.

इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है. कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं. ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं. राजपूत समुदाय में आने वाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है.