अमित कोड़ले, बैतूल। मध्य प्रदेश के बैतूल में वन विकास निगम के अंतर्गत आने वाले रिजर्व फारेस्ट में रह रहे आदिवासियों को जंगल से बेदखल करने के लिए बेहद ही अमानवीय तरीका अपनाया गया है। आदिवासियों के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया। जिसमें उनके मवेशी मारे गए, फसलें बर्बाद हो गईं, घर में रखे अनाज सहित सारा सामान नष्ट हो गया और भरी बारिश में वो बेघर हो गए।
मध्यप्रदेश राज्य सहित प्रदेश का बैतूल जिला भी जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र है। लेकिन जनजातीय आरक्षित इस संसदीय क्षेत्र के मूल निवासी आदिवासियों के साथ कैसी बर्बरता हो रही है, इसकी एक बानगी वन विकास निगम की चोपना रेंज के ग्राम डगडगा में सामने आई है। जहां वन विकास निगम के अधिकारियों ने बारिश के मौसम में आदिवासी बस्ती पर बुलडोजर चला दिया। इस बर्बरता पूर्ण कार्रवाई में आदिवासियों के चार मकान पूरी तरह से जमींदोज कर दिए गए। कई मवेशी मारे गए और घरों में रखा अनाज, समान नष्ट हो गया। आदिवासियों ने इस विध्वंस का विरोध शुरू किया और जब तनाव बढ़ने लगा तो वन विकास निगम ने कार्रवाई को रोक दी।
आदिवासियों का कहना है कि, वो इस जंगल के मूल निवासी है और यहां उनके पुरखों के जमीन से रहते आए हैं। लेकिन वन विकास निगम 70 के दशक में बांग्लादेश से आए विस्थापित बंगाली समुदाय के लोगों को उनके खिलाफ हथियार की तरह इस्तमाल कर रहा है। निगम के अधिकारी बंगाली गांवों से लोगों को लेकर आते हैं और उन पर अत्याचार करते हैं। बंगाली समुदाय चाहता है कि जंगल के संसाधनों पर उनका अधिकार हो जाए। वन विकास निगम एक तरह से दो समुदायों के बीच वर्ग संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है ।
वन विकास निगम के अधिकारी आदिवासियों को अतिक्रामक बताते हैं और बड़ी शान से ये भी कहते हैं कि, बंगाली समुदाय जंगल को बचा रह है। इसलिए आदिवासियों को जंगल से बेदखल करने के लिए बंगाली समुदाय की मदद ली जा रही है। आदिवासी अतिक्रामक हैं या नहीं ये जांच का विषय हो सकता है और अतिक्रमण हटाने की एक प्रक्रिया भी होती है। लेकिन जिस तरह से वन विकास निगम ने एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ इस्तेमाल किया है वो भविष्य में बड़े वर्ग संघर्ष की वजह बन सकता है।
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