YouTube Age Restriction Law: ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐसा कड़ा डिजिटल फैसला लिया है, जो न सिर्फ वहां के लाखों बच्चों की ऑनलाइन जिंदगी बदल देगा, बल्कि पूरी दुनिया को सोचने पर मजबूर कर सकता है. 10 दिसंबर 2025 से ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चे यूट्यूब पर अकाउंट नहीं बना पाएंगे.
वे वीडियो देख तो सकेंगे, लेकिन न कोई चैनल सब्सक्राइब कर सकेंगे, न कमेंट कर पाएंगे, और न ही खुद का कंटेंट अपलोड कर सकेंगे. ऑस्ट्रेलिया की संचार मंत्री अनीका वेल्स ने इस नए कानून की घोषणा करते हुए साफ कर दिया कि अब बच्चों के लिए यूट्यूब की दुनिया सीमित होगी.
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YouTube aAge Restriction Law
यह पहला मौका नहीं है जब ऑस्ट्रेलिया ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर उम्र की शर्त लगाई हो. नवंबर 2023 में देश ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, टिकटॉक और एक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. उस समय यूट्यूब को नियमों से बाहर रखा गया था, लेकिन अब सरकार ने उसे भी इस दायरे में ला दिया है. इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया ऐसा कदम उठाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है.
इस नए नियम की सबसे अहम बात यह है कि इसमें किसी भी तरह की छूट या अपवाद की गुंजाइश नहीं है. चाहे माता-पिता की अनुमति हो या पहले से बना हुआ अकाउंट – सभी पर समान रूप से यह कानून लागू होगा. अगर कोई प्लेटफॉर्म इस प्रतिबंध को नजरअंदाज करता है, तो उस पर 5 करोड़ ऑस्ट्रेलियन डॉलर (लगभग ₹282 करोड़) तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
हालांकि, बच्चों को अपनी उम्र साबित करने के लिए पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज अपलोड नहीं करने होंगे. प्लेटफॉर्म्स को खुद ही यह सुनिश्चित करना होगा कि कम उम्र के बच्चे अकाउंट न बना सकें.
YouTube Age Restriction Law. दिलचस्प बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया ने गेमिंग, मैसेजिंग, एजुकेशन और हेल्थ ऐप्स को इस कानून से बाहर रखा है. सरकार का कहना है कि इन ऐप्स की बच्चों के लिए हानिकारकता कम है, इसलिए फिलहाल इन्हें प्रतिबंध की जरूरत नहीं है.
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यूट्यूब को शामिल करने पर जब सवाल उठे, तो यूट्यूब ने प्रतिक्रिया दी कि वह सरकार के उद्देश्यों को समझता है और उपयोगकर्ताओं को सुरक्षित अनुभव देने के लिए प्रतिबद्ध है. साथ ही यूट्यूब ने यह भी दोहराया कि वह खुद को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि एक वीडियो शेयरिंग साइट मानता है – जहां टीवी की तरह कंटेंट उपभोग होता है, न कि इंटरएक्टिव सोशल नेटवर्किंग जैसा व्यवहार होता है.
दूसरी ओर, भारत में स्थिति बिल्कुल अलग है. यहां सोशल मीडिया का इस्तेमाल बेहद व्यापक है और भारत इस मामले में दुनिया में सबसे आगे है. रिसर्च फर्म ‘रेडसियर’ की रिपोर्ट बताती है कि एक औसत भारतीय 11 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय है और प्रतिदिन 7.3 घंटे स्मार्टफोन स्क्रीन पर बिताता है. तुलना करें तो अमेरिका में यह आंकड़ा 7.1 घंटे और चीन में 5.3 घंटे है.
भारत में भी बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल को रेगुलेट करने की मांग उठ चुकी है. अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें 13 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर कानूनी बैन लगाने की मांग की गई थी. लेकिन अदालत ने इस याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह नीति निर्माण का विषय है, जिसे संसद को तय करना चाहिए, न कि न्यायपालिका को.
YouTube Age Restriction Law. ऑस्ट्रेलिया का यह कदम इंटरनेट की आज़ादी और बच्चों की डिजिटल सुरक्षा के बीच संतुलन की नई बहस छेड़ रहा है. क्या अब अन्य देश भी इसी राह पर चलेंगे? क्या सोशल मीडिया कंपनियां खुद अपने प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी उम्र की सीमाएं तय करेंगी? और सबसे बड़ा सवाल – क्या आने वाला इंटरनेट पहले जैसा रहेगा?
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