Average Salary Growth in India: देश में तेजी से बढ़ती महंगाई के बीच एक सरकारी रिपोर्ट सामने आई है, जिसने आम लोगों की आर्थिक स्थिति को लेकर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. रिपोर्ट बताती है कि बीते सात सालों में भारतीयों की औसत सैलरी जरूर बढ़ी है, लेकिन यह बढ़ोतरी इतनी मामूली है कि महंगाई की रफ्तार के सामने इसका असर लगभग नगण्य रह गया है.

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Average Salary Growth in India
Average Salary Growth in India

सात साल में सिर्फ ₹4,565 की बढ़ोतरी (Average Salary Growth in India)

रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई से सितंबर 2017 के बीच नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों की औसत मासिक सैलरी लगभग ₹16,538 थी. वहीं, अप्रैल से जून 2024 के बीच यह बढ़कर ₹21,103 हुई है. यानी सात साल में सिर्फ ₹4,565 का इजाफा हुआ, जो कुल मिलाकर करीब 27.6% की बढ़त है.

पहली नजर में यह बढ़ोतरी ठीक लग सकती है, लेकिन जब इसे बढ़ती महंगाई और जीवन-यापन की लागत से जोड़ा जाता है, तो यह वृद्धि बहुत कम साबित होती है. आज के समय में किराया, शिक्षा, स्वास्थ्य और दैनिक जरूरतों के खर्च इतने बढ़ चुके हैं कि सैलरी में यह मामूली बढ़त आम परिवार की मुश्किलें कम नहीं कर पा रही है.

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दिहाड़ी मजदूरों की कमाई में भी मामूली सुधार (Average Salary Growth in India)

रिपोर्ट में दिहाड़ी मजदूरों की आमदनी का भी जिक्र है. 2017 में जहां मजदूरों की औसत रोज़ाना कमाई ₹294 थी, वहीं अब यह बढ़कर ₹433 हो गई है. यानी लगभग 47% की बढ़ोतरी. लेकिन जब इसे सात साल की लगातार महंगाई दर के साथ तुलना की जाए, तो असल लाभ बहुत कम नजर आता है. आम मजदूर की जेब में थोड़े ज्यादा पैसे जरूर आ रहे हैं, लेकिन खर्चों की रफ्तार उससे कहीं आगे निकल चुकी है.

बेरोजगारी दर में कमी, पर सैलरी नहीं बढ़ी

एक तरफ बेरोजगारी दर में गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन दूसरी तरफ लोगों की आय में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बेरोजगारी दर 2017-18 में 6% थी, जो अब घटकर 3.2% हो गई है. युवाओं की बेरोजगारी भी 17.8% से घटकर 10.2% पर आ गई है, जो अंतरराष्ट्रीय औसत से बेहतर मानी जा सकती है.

अगस्त 2025 तक पुरुषों की बेरोजगारी दर 5% तक पहुंच गई है, जो पिछले चार महीनों में सबसे कम है. यह जरूर एक सकारात्मक संकेत है कि लोगों को रोजगार मिल रहा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये नौकरियां ऐसी सैलरी देती हैं जिससे कोई व्यक्ति अपने परिवार का खर्च आसानी से उठा सके?

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EPFO के आंकड़े दिखा रहे हैं रोजगार में सुधार (Average Salary Growth in India)

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के आंकड़ों में भी रोजगार के बढ़ते अवसरों के संकेत मिलते हैं. वित्त वर्ष 2024-25 में अब तक 1.29 करोड़ नए सदस्य EPFO से जुड़े हैं. सितंबर 2017 से अब तक कुल 7.73 करोड़ से अधिक नए सब्सक्राइबर इस योजना में शामिल हो चुके हैं.

सिर्फ जुलाई 2025 में ही 21.04 लाख नए लोग EPFO के सदस्य बने, जिनमें से 60% से अधिक 18 से 25 वर्ष के युवा हैं. यह दर्शाता है कि युवाओं में न केवल नौकरी पाने की उम्मीद बढ़ी है, बल्कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के प्रति जागरूकता भी तेजी से बढ़ रही है.

स्वरोजगार की ओर बढ़ा रुझान

रिपोर्ट में एक और दिलचस्प रुझान सामने आया है, अब लोग नौकरी पर निर्भर रहने की बजाय खुद का काम शुरू करने की ओर बढ़ रहे हैं. 2017-18 में जहां देश में स्वरोजगार करने वालों की हिस्सेदारी 52.2% थी, वह अब बढ़कर 58.4% हो गई है.

इसके विपरीत, कैजुअल लेबर यानी अस्थायी मजदूरी करने वालों की संख्या घटकर 19.8% रह गई है. इसका मतलब यह है कि बहुत से लोग स्थिर नौकरी न मिलने की वजह से छोटे व्यवसाय, फ्रीलांसिंग या स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

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आम आदमी के सामने अब भी चुनौती बड़ी (Average Salary Growth in India)

रिपोर्ट भले ही रोजगार के आंकड़ों में सुधार दिखा रही हो, लेकिन आम लोगों की सैलरी और क्रय शक्ति (Purchasing Power) के बीच बढ़ती दूरी चिंता का विषय है. बढ़ती महंगाई और सीमित वेतन वृद्धि के कारण मध्यमवर्गीय परिवारों पर आर्थिक दबाव लगातार बढ़ रहा है.

विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में अगर निजी क्षेत्र में सैलरी स्ट्रक्चर में सुधार और जीवन यापन की लागत को ध्यान में रखते हुए नीति नहीं बनाई गई, तो आमदनी और खर्च के बीच की यह खाई और चौड़ी हो जाएगी.

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