जन्माष्टमी के चार दिन बाद यानी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को माता अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए बछ बारस व्रत रखती है. यह पर्व राजस्थानी महिलाओं का लोकप्रिय पर्व है. 30 अगस्त को मनाया जा रहा है. इस दिन गेहूं से बने पकवान व कटी हुई सब्जी नहीं खाई जाती हैं. बाजरे या ज्वार का सोगटा और अंकुरित अनाज की कढ़ी एवं सूखी सब्जी बनाई जाती है.
महिलाएं द्वारा सुबह गो माता की विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद घरों में सामूहिक रूप से बनी मिट्टी व गोबर से बनी तलैया की अच्छी तरह सजाकर उसमें कच्चा दूध, दही, मोठ, कुमकुम, मोली, धूप दीप प्रज्वलित कर पूजा करती है. एक लकड़ी के पाटे पर मिट्टी से बछ बारस बनाते हैं और उसमें बीच में एक गोल मिट्टी का बावड़ी बनाते हैं. फिर उसको थोड़ा दूध दही से भर देते हैं तथा पूजा सामग्री चढ़ाकर पूजा करते हैं. Read More – Anant Ambani और Radhika Merchant की शादी की रस्में हुईं शुरू, मामेरु रस्म में दिखा पूरा परिवार ...
क्यों मनाई जाती है बछ बारस ?
भारत के अधिकांश हिस्सों में बछ बारस का पर्व मनाया जाता है लेकिन राजस्थानी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय है. बछ बारस हर साल जन्माष्टमी के चार दिन पश्चात द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. इसलिए इस गोवत्स द्वादशी भी कहते है. भगवान कृष्ण के गाय और बछड़ो से बड़ा प्रेम था इसलिए इस त्यौहार को मनाया जाता है. Read More – Anant Ambani और Radhika Merchant की शादी की रस्में हुईं शुरू, मामेरु रस्म में दिखा पूरा परिवार ...
ऐसा माना जाता है की बछ बारस के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण सहित गाय में निवास करने वाले देवताओ का आशीर्वाद मिलता है. जिससे घर में खुशहाली और सम्पन्नता आती है. महिलाएं इस व्रत को अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए करती हैं. इस दिन माता अपने पुत्रों को तिलक लगाकर तलाई फोड़ने के बाद लड्डू का प्रसाद देती हैं और उनके सुख समृद्धि जीवन की कामना करती है.
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