सुनील जोशी, अलीराजपुर। मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल में शिक्षा व्यवस्था का बहुत ही बुरा हाल है। कहीं स्कूल भवन है तो शिक्षकों की कमी और शिक्षक हैं तो स्कूल भवन जर्जर है। मजबूरी में बच्चों को टेंट लगाकर पढ़ाई करवानी पड़ रही है। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे में कैसे नौनिहालों का भविष्य संवरेगा? जिले के एक गांव में टेंट के नीचे कक्षा लगाकर बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।
मामला आदिवासी बाहुल्य अलीराजपुर जिले के जोबट तहसील के ग्राम छोटी खट्टाली की प्रायमरी स्कूल का है। जहां बच्चों को बरामदे में टेंट के नीचे बिठाकर पढ़ाई करवाई जा रही है। इसकी प्रमुख वजह स्कूल भवन की छत से आये दिन प्लास्टर का भरभराकर गिरना है। छत के नीचे बच्चों को बैठाकर पढ़ाई करवाने से उनकी जान से खेलना है। लिहाजा बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए बरामदे में टेंट लगाकर पढ़ाई करवाई जा रही है।
बता दें कि इस प्रायमरी स्कूल में कुल 66 बच्चे हैं। कक्षा पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों को धुंए से पूरी तरह काला हो चुके किचन शेड़ में बिठाकर पढ़ाया जाता है। जहां की दीवार ब्लैकबोर्ड के काम में आ रही है।
आधा दर्जन बार शिकायत, नहीं हुआ समाधान
जर्जर स्कूल भवन को लेकर यहां की शिक्षिका हेमलता राठौर के अलावा स्कूल के लिए जमीन दान देने वाले दानदाता इंदर सिंह केमता भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कई बार शिकायत कर चुके हैं। शिकायत के बाद आज-तक समस्या का समाधान नहीं हुआ है। दानदाता इंदर सिह ने कहा कि अधिकारियों को इतने बार शिकायत करने के बाद भी उनके कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। उन्होंने सरकार से कहा कि यदि स्कूल के लिए नया भवन बनाने की योजना या प्रस्ताव है तो, वे और भी जमीन दान दे सकते हैं।
विभाग द्वारा निर्माणाधीन पानी टंकी अधूरा है। बच्चों को पीने के लिए पानी की भी समस्या है। इसकी शिकायत भी अधिकारियों से कर चुके हैं। ग्रामीण इंदर सिह का कहना है कि स्कूल की यह जमीन भी मेरे द्वारा दान दी गई थी। उन्होंने कहा है कि सरकार यदि दूसरा भवन बनाती है तो मैं स्कूल के सामने की मेरी अन्य जमीन भी दान देने को तैयार हूं।
बताया जाता है कि जर्जर स्कूल भवन और बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए शिक्षा विभाग द्वारा स्कूल का संचालन दूसरी जगह वास्कले फलिये में भी किया गया। स्कूल भवन गांव से दूर होने के कारण बच्चे वहां तक पहुंचे ही नहीं। मजबूरी में जर्जर भवन के नीटे टेंट लगाकर पढ़ाई करवानी पड़ रही है।
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