Badrinath Temple Food Offering: उत्तराखंड स्थित भगवान विष्णु के प्रमुख मंदिर श्री बद्रीनाथ धाम की पहचान उसकी प्राचीन परंपराओं के लिए भी है. माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इस धाम का जीर्णोद्धार करते हुए यहां पूजा-पद्धति और भोग की सामग्री के बारे में स्पष्ट नियम बनाए थे. उन्हीं नियमों के तहत भगवान बद्रीनाथ को प्रतिदिन केवल तुवर दाल, चावल, देसी घी और खास प्रकार की हरी सब्जियों का भोग चढ़ाया जाता है. इस परंपरा के अनुसार उड़द, मूंग, मसूर या अन्य दालें मंदिर परिसर में भोग-प्रसाद के लिए वर्जित हैं.

इस प्रथा का पालन सदियों से डिमरी ब्राह्मण समुदाय द्वारा किया जाता है, जिन्हें भोग निर्माण और प्रसाद वितरण की जिम्मेदारी सौंपी गई है. बद्रीनाथ मंदिर के सभी धार्मिक कार्यों के नियम, अधिकार और कार्य विभाजन आदि शंकराचार्य द्वारा निर्धारित किए गए थे, जो आज भी अक्षरशः लागू हैं.

Also Read This: महाअष्टमी पर अपनाएं ये आसान उपाय, घर में आएगी समृद्धि और सुख-शांति

Badrinath Temple Food Offering
Badrinath Temple Food Offering

पौराणिक मान्यता के मुताबिक, भगवान विष्णु को सात्त्विक, हल्का तथा सुपाच्य आहार उत्तम लगता है. इसलिए तुवर दाल को ही भोग सामग्री में लिया गया, यह पचने में आसान है और ऊर्जा प्रदान करने वाली भी मानी जाती है. यह विशेष रूप से पर्वतीय, ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त भोजन है.

भक्तजन भी इस परंपरा का पालन अपने भोजन में करते हैं, जिससे यह धार्मिक श्रद्धा वहीं स्वस्थ जीवनशैली का भी संदेश देती है. मंदिरों के बाहर भी दुकानों में कच्ची चना दाल, तुलसी की माला और मिश्री आदि प्रसाद सामग्री विक्रय होते हैं, जो भक्त मंदिर में अर्पण करते हैं.

Badrinath Temple Food Offering: इस तरह, बद्रीनाथ धाम में तुवर दाल का महत्व सिर्फ धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आदि शंकराचार्य के बनाए जीर्णोद्धार संहित नियम और व्यावहारिकता दोनों से जुड़ा है. यह परंपरा आज भी बद्रीनाथ की सांस्कृतिक विरासत की पहचान बनी हुई है.

Also Read This: Shardiya Navratri 2025: खैरी वाली माता की महिमा अपरंपार, तीन रूप में दर्शन देती हैं देवी, दतिया के महाराजा ने कराया था इस मंदिर का निर्माण