नई दिल्ली. उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी आपराधिक मामले में आरोपपत्र दाखिल करना किसी आरोपी को जमानत देने पर विचार करते समय ध्यान में रखा जाने वाला एकमात्र मानदंड नहीं है क्योंकि इसे तथ्यों और परिस्थितियों के साथ जोड़ा जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने सामूहिक दुष्कर्म मामले में 19 वर्षीय लड़के को जमानत देने से इनकार करते हुए मामले के तथ्यों, अपराधों की गंभीरता और सजा की गंभीरता पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि पीड़िता को जबरदस्ती नशा दिया गया और उसके हाथ बांध दिए गए. जब आवेदक ने दो अन्य सह- अभियुक्तों के साथ मिलकर पैसे के बदले दूसरों को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया.
कोर्ट ने कहा, जमानत देने पर विचार करते समय आरोप पत्र दाखिल करना एकमात्र मानदंड नहीं यह अत्याचार लगभग दो वर्षों तक जारी रहा. आवेदक आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि उनका मुवक्किल लगभग 19 साल का एक युवा लड़का है और उसकी पृष्ठभूमि साफ है. एफआईआर दर्ज करने में लगभग 31 महीने की अत्यधिक और अस्पष्ट देरी हुई थी.
अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने आवेदक के खिलाफ बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं. जमानत याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है.