रायपुर. योजना आयोग के पूर्व सदस्य और देश के जाने-माने अर्थशास्त्री बालचन्द्र मुंडगेकर ने कहा है कि जब सरकार गरीबों पर पैसे खर्च करती है तो उसका अमीर विरोध करते है लेकिन जब पैसे अमीरों पर खर्च होते हैं तो उसका कोई विरोध नहीं होता क्योंकि विरोध करने की क्षमता गरीबों के पास नहीं होती. उन्होंने ये बात बेसिक इनकम के संदर्भ में कही. जिसके बजट को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब 15 या 20 उद्योगपतियों का 3 लाख करोड़ माफ करोड़ रुपया माफ हो सकता है तो गरीबों को पैसे क्यों नहीं दिए जा सकते.
बालंचंद्र ने कहा कि जो लोग ये सवाल उठाते हैं कि पैसे देने से गरीब काम करना बंद कर देंगे. वे लोग गरीबों पर अविश्वास जताते हैं. देश का अब तक का विकास गरीबों की मेहनत का ही नतीजा है. उन्होंने कहा कि चीन भी गरीब था. लेकिन वहां इतनी विषमता नहीं थी. बालचंद्र ने 2008 की एक गैर बराबरी पर बनी रिपोर्ट का हवाला दिया. जिसमें बताया गया है कि देश के 1% लोगो के पास 54 प्रतिशत इनकम और 73% सम्पत्ति है.
गरीबों को पैसे दिए जाने के मसले पर उठाए जा रहे सवालों पर बालचंद्र ने कहा कि कैबिनेट सचिव की तनख्वाह करीब 2.5 लाख है. इतने पैसे में 40 परिवारों को गरीबी से ऊपर लाया जा सकता है. उन्होंने अपना भी उदाहरण दिया. बालचंद्र ने बताया कि उन्हें 65 हज़ार रुपये मिलते हैं. जो 10-12 परिवारों के बेसिक इनकम के बजट के बराबर है. वित्तीय घाटे पर बालचंद्र ने कहा कि दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है जो विकास के लिए वित्तीय घाटे को नहीं बढ़ाता है.
उन्होनें कहा कि 70 साल में लोकतंत्र मज़बूत हुआ. इसका श्रेय गरीबो को है. उन्होने कहा कि अर्थव्यवस्था का फायदा गरीबों को मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि 1951 में देश का इनकम  10260 करोड़ था . 2018 में कीमतों के अनुपात 2.8 ट्रिलियन डॉलर हो गया. लाखों गुना बढ़ गया. इसके बाद भी गरीबों को इसका अधिकतर फायदा नहीं मिला. आज़ादी के बाद हम आज बेसिक इनकम पर मजबूर हो रहे हैं.
उन्होंने कहा कि विश्व की 7 वी बड़ी अर्थव्यस्था बनने के बाद भी 25 प्रतिशत गरीबी है जो देश के लिए गौरव का विषय नहीं है. उन्होंने कहा कि कैंसर से ज़्यादा खतरनाक है-गरीबी. उन्होंने कहा कि बेसिक इनकम देने के बाद सरकार को बाकी क्षेत्रों के खर्च कम नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड के विकास के सूचकांत गुजरात जैसे राज्यों से बेहतर हो रहे हैं. देश में  33% नेचुरल रिसोर्स में ओडिशा और झारखंड में हैं लेकिन देश में सबसे ज़्यादा गरीबी भी इन्हीं राज्यों में हैं.