बांस कलाकृति प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में लोकप्रिय शिल्पों में से एक है. बांस शिल्प की कलाकृतियां शहर, गांव के साथ ही अधिकांश घरों में किसी ना किसी रूप में देखने का मिल जाती है. ये सुलभ, सरल और लोकप्रिय है. स्थानीय ग्रामीण आदिवासी और यहां की कमार महिलाएं बांस शिल्प के उपयोग और महत्व को जानती और पहचानती हैं, वे बांस का काम प्रमुखता से करती हैं और बांस से अनेक उपयोगी और मनमोहक सामग्रियां तैयार करती हैं. बांस से टोकरी, सूपा, चटाई, झाडू समेत रोजमर्रा के घरेलू उपयोग की कई चीजें बनाई जा रही है.

महासमुंद जिले के विकासखंड बागबाहरा में लगभग 11 विशेष पिछड़ी जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण मिशन बिहान अन्तर्गत जुड़ी हैं. ये जनजातियां पहले परंपरागत कार्य जैसे कृषि या बांस के छोटे स्तर के बांस से टोकरी, सूपा, चटाई, झाडू आदि घरेलू सामान्य सामग्रियां बनाती या ज्यादातर इस जाति के लोग रोजी-रोटी के लिए शहरों की ओर रुख करते थे. उनके परिवार की आर्थिक स्थित दयनीय होती थी. बच्चें पढ़ाई-लिखाई से दूर रहते थे. महिलाएं भी बहुत कम किसी से बातचीत करती थी.

इन महिलाओं को बिहान समूह से जोड़ा गया और उन्हें सीआरपी (Community Resource Person) सामुदायिक संसाधन व्यक्ति चक्र के तहत विभिन्न बांस और अन्य कार्य का प्रशिक्षण दिया गया. सबसे पहले ग्राम पंचायत ढोड़ की महालक्ष्मी आदिवासी महिला स्व-सहायता समूह को जोड़ा गया. समूह की अध्यक्ष जयमोतिन कमार और सचिव रुपाबाई कमार इस तरह 10 महिलाओं का समूह बना. उनके द्वारा बांस से गुलदस्ता बनाया जा रहा है. बांस के प्रति यहां के लोगों की रूचि और उसका बेहतर उपयोग के कारण स्थानीय निवासी महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बांस शिल्प के साथ ही काष्ठ कला का भी प्रशिक्षण दिया गया है.

बिहान से जुड़ने की शुरुआत में प्रमिला कमार ने अपनी बाड़ी के बांस का उपयोग कर समूह की महिलाओं के साथ विभिन्न प्रकार की बांस की सामग्री गुलदस्ते सूपा, टोकरी आदि बनाकर अपनी आमदनी में इजाफा किया. शुरुआत में उनकी बाड़ी का का बांस कमाई का जरिया बना. मिशन द्वारा उन्हें अब बांस भी उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि वे और बांस की घरेलू साज-सज्जा की सामग्रियां बनाए. जिले के विकासखंड बागबाहरा की महिला प्रमिला कमार ने शुरुआत में अपनी बाड़ी का बांस उपयोग कर मनमोहक सामग्रियां बनाई. प्रशासन द्वारा भी बांस शिल्प कला को लेकर विशेष प्रयास किए जा रहे है. वन विभाग से बातचीत कर वन डिपो से बांस की खेप मंगा कर बांस की पूर्ति की जा रही है. जिससे बांस शिल्प कला में रुचि रखने वाली और महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें आर्थिक स्थित से और मजबूत किया जा सके. बांस का सूपा, टोकरी, चटाई जैसे दैनिक उपयोग की चीजें आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है. ताकि वे कलात्मक चीजों के साथ ये चीजें बनाकर अपना बेहतर जीवन यापन कर सके. स्थानीय लोगों को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इससे उन्हें रोजगार के अवसर मिलेंगे.

जिले में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की पहल पर कौशल उन्नयन के स्वरोजगारोन्मुख कार्यक्रम चलाएं जा रहे हैं. प्लास्टिक के सामानों का उपयोग बढ़ने और सहज उपलब्धता के कारण इस शिल्प की बिक्री पर भी असर पड़ा है.
बांस के सामानों की पूछ परख कम होने लगी है. लेकिन महासमुंद मुख्यालय सहित ग्रामीण इलाकों के स्थानीय निवासियों और आदिवासी महिलाओं को बांस कला के साथ-साथ महिलाओं की अभिरुचि और स्थानीय बाजार मांग के अनुसार अन्य कला में प्रशिक्षण देकर हुनरमंद बनाया जा रहा है. आदिवासी महिलाओं को बांस के निर्मित विभिन्न प्रकार की घरेलू सामग्रियों के साथ सजावटी, गुलदस्ते आदि बनाने की कला सिखाई जाती है. महिलाओं को बांस के द्वारा बनाई जाने वाली विभिन्न सामग्रियों का प्रशिक्षण देकर लाभान्वित किया गया जा रहा है. इस प्रशिक्षण कार्यक्रमों में खासकर आदिवासी महिलाओं की विशेष तौर पर भागीदारी रही. हाल ही में आदिवासी महिलाओं द्वारा बांस निर्मित, गुलदस्ते अन्य घरेलू उपयोगी बांस से निर्मित सामग्री का निर्माण किया गया है.

कोरोना से बंद पड़े स्थानीय बाजार, और हाट-बाजारों खुलें तो बांस सामग्री बेच कर अपनी आय बढ़ा रही है. इनके द्वारा बनाई जाने वाली बॉस की सामग्रियों को अशासकीय संस्थाओं द्वारा भी क्रय किया जाने की बात कही गयी है. जिससे उनकी मासिक आय में वृद्धि तो हो रही है, उसके साथ ही उनके जीवन स्तर में सुधार आ रहा है. जिला पंचायत द्वारा मापदण्ड के आधार पर 18 वर्ष से 30 साल उम्र के साक्षर लोगों को उनकी अभिरूचि के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण के दौरान उन्हें सूप, टोकरी, कंधे पर ढोई जाने वाली बहगी, मछली फंसाने वाला जाल के साथ ही घरेलू सजावट की वस्तुएं फूलदान, हैंडबैग आदि है. जिनका विक्रय इस संस्था और आसपास के बाजारों और मड़ई मेलों प्रदर्शनी के समय विक्रय किया जाता है.