पंकज सिंह, दंतेवाड़ा। 21वीं सदी में दुनिया कहां से कहां पहुंच गई. भारत भी रोज नए कीर्तिमान रच रहा है. लेकिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में ऐसे कई इलाके मौजूद हैं, जो अब तक बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम हैं. यहां शासन-प्रशासन की योजनाएं जमीनी स्तर पर कहीं भी नजर नहीं आतीं. ऐसा ही एक गांव है दंतेवाड़ा-सुकमा मार्ग पर बसा मोखपाल गांव.. यहां से 28 किलोमीटर तक की एक सड़क कटेकल्याण के लिए गुजरती है. लेकिन नक्सली खौफ के कारण आम लोग इस सड़क से गुजरने का हौसला नहीं कर पाते हैं. यहां पर बस बांस का एक पुल है, जिस पर से लोग जान हथेली पर रखकर एक पार से दूसरे पार तक आना-जाना करते हैं.
सड़क में गड्ढे नहीं, बल्कि गड्ढे में सड़क
22 किलोमीटर तक की सड़क पर नक्सलियों ने 72 गड्ढे कर दिए हैं. यातायात भी बाधित है, लेकिन सरकारी मशीनरी इसे बहाल कर पाने में नाकाम साबित हो रही है. मोखपाल से छोटेगुडरा के आगे पड़ने वाले टेलम, टेटम, एटेपाल जैसे दर्जनों आदिवासी गांव इस मार्ग पर पड़ते हैं, जो सालों से मुख्यालय से कटे हुए हैं. लेकिन नक्सलियों के कारण प्रशासन सरकार की कोई भी योजना इन गांवों तक नहीं पहुंचा पा रही है. सुरक्षा बल के साए में कई बार सड़कों को ठीक करवाया गया है, लेकिन नक्सली फिर से इन सड़कों को बर्बाद कर देते हैं.
आफत में मरीजों की जान
सड़क नहीं होने के चलते बीमार मरीजों को अस्पताल तक पहुंचा पाना टेढ़ी खीर साबित होता है, क्योंकि संजीवनी 108 एंबुलेंस यहां तक पहुंच नहीं पाती. इसके कारण कई लोगों को समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण उनकी जान भी जा चुकी है. वहीं राशन लेने के लिए भी गांववालों को 15-20 किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है. 2005 में प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत 4 करोड़ 24 लाख की लागत से सड़क बनाई गई थी, जो आज बदहाल है. इसे लेकर यहां के लोग कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.