Bamboo Rice : चावल भारतीय खाने का बेहद अहम हिस्सा है. कई लोग चावल को भात के नाम से भी जानते हैं. चावल भारत के हर एक कोने में काफी प्रसिद्ध है, फिर चाहे वो उत्तर भारतीय घर हो या दक्षिण भारतीय घर. चावल तो अनेकों तरह का होता है, लेकिन क्या आप बांस से बने चावल (Bamboo Rice) के बारे में जानते हैं, इसकी भी एक खास प्रजाति होती है.

6,000 से ज़्यादा वैराइटी के चावल में एक किस्म का चावल ऐसा भी है जो आम राशन की दुकानों पर या होलसेल की दुकानों पर नहीं मिलेगा. इस खास किस्म के चावल का नाम है, बैम्बू राइस (Bamboo Rice) या बांस का चावल. इस चावल को मूलयारी (Mulayari) नाम से भी जाना जाता है. ये एक मरते बांस के पेड़ की आख़िरी निशानी होती है.

बांस के फूल से एक बेहद दुर्लभ किस्म का चावल निकलता है, जिसे बांस का चावल (Bamboo rice) कहते हैं. बता दें कि, केरल के वायानाड सेंचुरी के आदिवासियों के लिए ये चावल न सिर्फ़ खाने पीने का बल्कि आय का भी साधन है. इस क्षेत्र में कई महिलाएं और बच्चे बांस के चावल इकट्ठा करते और बेचते नज़र आते हैं.

आमतौर पर किसी बांस की झाड़ में 50-60 साल बाद ही फूल निकलते हैं, यानि 100 साल में 1-2 बार ही बांस के चावल उगते हैं. साफ़-सुथरा बांस का चावल इकट्ठा करने के लिए बांस के मूल के आस-पास के क्षेत्र को अच्छे से साफ़ किया जाता है। इसके बाद मूल पर मिट्टी पोती जाती है और उसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. सूखने के बाद बांस के चावल (Bamboo rice) को स्टोर किया जाता है और फिर इकट्ठा किया जाता है.