Taslima Nasreen Appeal To Amit Shah: बांग्लादेशी लेखिका (Bangladeshi writer) तसलीमा नसरीन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर गृह मंत्री अमित शाह से मदद मांगी है। उन्होंने कहा कि उनका भारतीय रेजिडेंस परमिट जुलाई में एक्सपायर हो गया है और गृह-मंत्रालय उसे रिन्यू नहीं कर रहा है। सोमवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से उन्हें भारत में रहने देने की गुहार लगाई। बांग्लादेशी लेखिका 2011 से लगातार भारत में रह रही हैं।

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बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका सोशल मीडिया एक्स पर लिका- अमित शाह जी, नमस्कार. मैं भारत में रहती हूं क्योंकि मैं इस महान देश से प्यार करती हूं। पिछले 20 वर्षों से यह मेरा दूसरा घर रहा है। लेकिन गृह मंत्रालय 22 जुलाई से मेरे रेजिडेंस परमिट को बढ़ा नहीं रहा है. मैं बहुत चिंतित हूं। अगर आप मुझे यहां रहने देंगे तो मैं आपकी बहुत आभारी रहूंगी।

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उन्होंने कहा कि वो इस बात को लेकर काफी परेशान हैं कि उनका परमिट रिन्यू नहीं किया जा रहा है। तसलीमा ने अमित शाह से रिक्वेस्ट किया कि अगर सरकार उन्हें भारत में रहने देगी तो वो उनका शुक्रगुजार रहेंगी।

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कब खत्म हुआ परमिट

तसलीमा नसरीन ने बताया कि भारत में उनका रेजिडेंस परमिट 27 जुलाई को ही समाप्त हो गया है। इसके बाद कई बार कोशिश करने के बाद भी भारत सरकार की तरफ से रिन्यू नहीं किया गया है।

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सांप्रदायिकता की कट्टर आलोचक हैं तसलीमा

बता दें कि पूरी दुनिया में अपनी निर्भिक लेखनी के लिए तसलीमा मशहूर हैं। वो सांप्रदायिकता की कट्टर आलोचक है। भारत में तसलीमा साल 1994 से रह रही हैं।ष वो मूल तौर पर बांग्लादेश की रहने वाली हैं लेकिन लगातार बांग्लादेश में सांप्रदायिकता और महिला समानता पर इस्लामी कट्टरपंथियों की आलोचना करने के कारण उन्हें देश छोड़ना पड़ा। वो भारत के अलावा स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन जीवन बिता चुकी हैं। तसलीमा ने कई किताबें लिखी हैं जिनमें कुछ मशहूर किताबें हैं-‘लज्जा’ (1993) ‘आमार मेयेबेला’ आदि हैं। तसलीमा की पुस्तकें अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, स्पैनिश, जर्मन समेत दुनिया की तीस भाषाओं में अनूदित हुई हैं।

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1990 में पहली बार झेलना पड़ा विरोध

बता दें कि पहली बार बांग्लादेश में तसलीमा नसरीन को 1990 में विरोध का सामना करना पड़ा था। उन पर इस्लाम की आलोचना का आरोप लगा था। इसके बाद बांग्लादेश में 1994 में उन्हें फतवा और भारी विरोध का सामना करना पड़ा था जिसके बाद पहले उन्हें हाइडिंग में जाना पड़ा और अंत में देश छोड़ना पड़ा. तब से तसलीमा निर्वासन में ही है। 1998 में वो कुछ दिनों के लिए बांग्लादेश गई थीं लेकिन शेख हसीना की सरकार के वक्त उन्हें फिर से देश छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया गया था। तसलीमा इसके लिए खालिदा जिया के साथ साथ शेख हसीना को भी उतनी जिम्मेदार मानती हैं। वह कहती हैं कि दोनों ने उन्हें बांग्लादेश में नहीं रहने दिया और इस्लामिक कट्टरपंथियों को बढ़ावा दिया।

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