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दुर्ग। बैंक ने मशीन से रकम जमा करने का ट्रांजैक्शन फेल होने पर रकम नहीं लौटाई तो परिवादी ने इसकी शिकायत उपभोक्ता फोरम से की. बैंक के इस आचरण को सेवा में निम्नता मानते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने बैंक पर 5198 रूपये का हर्जाना लगाया है.
वैशाली नगर भिलाई निवासी अरुण कुमार मिश्रा ने अपने एक्सिस बैंक के खाते में रकम जमा करने के लिए बैंक के एटीएम मशीन के द्वारा दिनांक 21.11.2017 को रु.500 के 30 नोट कुल रु.15000 जमा करने का प्रयास किया लेकिन रकम मशीन में डालने पर ट्रांजैक्शन फेल हो गया, ट्रांजैक्शन फेल होने की रसीद भी परिवादी को मशीन से प्राप्त हुई, जिसके बाद परिवादी ने बैंक शाखा में संपर्क किया तो बैंक द्वारा दो-तीन दिन में पैसा मिलने की बात कही गई लेकिन ऐसा नहीं हुआ इसके बाद परिवादी लगातार कई महीनों तक बैंक के चक्कर लगाता रहा इसके बावजूद उसे उसकी राशि रु. 15000 रूपये वापस नहीं मिली.
बैंक का जवाब
बैंक ने प्रकरण में उपस्थित होकर जवाब दिया कि परिवादी के शिकायत की जांच पश्चात उसे आश्वासन दिया गया था एवं बैंक ने अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए परिवादी की राशि उसके खाते में दिनांक 11.10.2018 को जमा कर उसकी सूचना परिवादी को दे दी थी.
फोरम का फैसला
दोनों पक्षों के तर्को और दस्तावेजों के आधार पर जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने यह पाया कि परिवादी ने अपने खाते में दिनांक 21.11.2017 को मशीन द्वारा रकम जमा करने का प्रयास किया जिसका ट्रांजैक्शन फेल होने पर उसने बैंक से संपर्क किया और जब परिवादी ने जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद प्रस्तुत कर दिया तत्पश्चात प्रकरण के लंबन के दौरान दिनांक 11.10.2018 को बैंक ने परिवादी की रकम लौटाई गई जो कि ट्रांजैक्शन फेल होने के बाद 324 दिन विलंब से लौटाई गई। यदि परिवादी उपभोक्ता फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत नहीं करता तो संभवतः बैंक द्वारा परिवादी को उसकी राशि लौटाई ही नहीं जाती. प्रकरण में यह प्रमाणित हुआ कि बैंक ने परिवादी की समस्या के समाधान हेतु तत्परतापूर्वक कार्यवाही नहीं की और 324 दिनों तक परिवादी को भटकाने के बाद उसे उसकी राशि लौटाई जो कि सेवा में निम्नता की पराकाष्ठा है.
जिला उपभोक्ता फोरम ने बैंक के इस तर्क को खारिज कर दिया कि बैंक के किसी कर्मचारी की कोई मानवीय भूल नहीं थी अपितु तकनीकी त्रुटि से परिवादी के खाते में रकम जमा नहीं हुई थी. जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने माना कि बैंक की शाखा पूर्णतः कंप्यूटराइज्ड है और तकनीकी त्रुटि होने के बाद जब ग्राहक द्वारा बार-बार बैंक का ध्यानाकर्षण उसकी गलती के लिए कराया गया, तब बैंक की ये जिम्मेदारी बनती थी कि वह गलती संज्ञान में लाने के बाद तत्परतापूर्वक कार्यवाही करें जो कि उसने नहीं किया और 324 दिन का लंबा समय व्यतीत करने के बाद परिवादी को उसकी राशि तब वापस की जब वह फोरम में शिकायत प्रस्तुत कर चुका था.
बैंक को सेवा में निम्नता का जिम्मेदार मानते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर रु. 5198 हर्जाना लगाया, जिसमें विवादित रकम पर 324 दिनों का ब्याज रु. 1198, मानसिक वेदना की क्षतिपूर्ति स्वरूप रु. 3000 तथा वाद व्यय रु. 1000 परिवादी को भुगतान करने का आदेश दिया गया.