कुंदन कुमार/पटना। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन (AIBOC) की बिहार राज्य इकाई ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार की बैंकिंग सुधार नीतियों पर गंभीर आपत्ति जताई। संगठन ने कहा कि सरकार द्वारा सुधार के नाम पर की जा रही बैंक विलय, निजी क्षेत्र के निदेशकों की नियुक्ति और प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन जैसी नीतियां जनता विरोधी हैं और इनका सीधा असर रोजगार व सामाजिक न्याय पर पड़ रहा है।
सुधार नहीं, रोजगार खत्म करने की साजिश
AIBOC के राज्य सचिव अमरेंद्र विक्रमादित्य ने कहा कि बैंकिंग सेक्टर में सुधार के नाम पर सरकार ऐसे कदम उठा रही है, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्वायत्तता खत्म हो रही है। उन्होंने कहा कि बैंकों का विलय और निजी क्षेत्र की घुसपैठ वास्तव में सुधार नहीं, बल्कि रोजगार के अवसरों को समाप्त करने और आरक्षण आधारित सामाजिक न्याय की नीति को कमजोर करने की साजिश है। विक्रमादित्य ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हमेशा देश की आर्थिक नींव रहे हैं – चाहे वैश्विक मंदी का दौर हो या कोविड संकट – इन बैंकों ने हर बार देश की जनता और सरकार का साथ निभाया है।
केंद्र सरकार से विलय नीति पर रोक की मांग
कनफेडरेशन ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह बैंकिंग सुधारों के नाम पर लागू की जा रही विलय और एकीकरण की योजनाओं पर तत्काल रोक लगाए। संगठन ने कहा कि ये नीतियां बैंकों को जनता से दूर और निजी पूंजी के प्रभाव में ले जाने वाली साबित होंगी। अमरेंद्र विक्रमादित्य ने कहा कि सरकार को समझना चाहिए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सिर्फ वित्तीय संस्थान नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समान विकास के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि सरकार इन संस्थाओं को निजी हितों से मुक्त रखे और इन्हें जनता की भलाई के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करने दे।
जनविरोधी नीति बताया गया विलय का फैसला
कनफेडरेशन ने साफ शब्दों में कहा कि बैंकों का विलय एक जनविरोधी नीति है, जो न केवल कर्मचारियों के भविष्य को प्रभावित करेगी बल्कि आम उपभोक्ताओं की बैंकिंग सेवाओं को भी प्रभावित करेगी। संगठन ने इस कदम को जनता के हितों के खिलाफ बताते हुए आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है।
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