आशुतोष तिवारी,जगदलपुर. हमारे देश में अतिथि देवो भवः की परंपरा बहुत पुरानी रही है. जिसका अर्थ होता है घर आये मेहमान को देवता के तुल्य माना जाए. यह तो रही परम्परा वाली बात पर सोचिए यदि मेहमान सच में भगवान हो जाए, तो आप करेंगे. ऐसा हुआ है जगदलपुर से लगे गांव नगरनार में जहां 19 साल पहले कपिल दास के अतिथि सत्कार से प्रभावित हॉलैंड की मायरा आज फिर उनसे मिलने पहुंची तो पता चला कि कपिल की मौत हो चुकी है और उनके तीन साल के बच्चे के दिल में छेद है. हमारे देश में गरीबों के लिए योजनाएं तो हजारों हैं पर यथार्थ में क्रियान्वित हो सके ऐसी योजना नजर नहीं आती.

दरअसल पूरा मामला जगदलपुर से लगे नगरनार गांव का है जहां एक घर है कपिल दास का जो बुनकर थे. आज से लगभग 19 साल पहले हॉलैंड से कुछ छात्र- छात्राएं बुनकरों पर रिसर्च करने बस्तर के नगरनार पहुंचीं हुई थी. उनमें से एक थी मायरा उर्फ मीरा. मीरा ने लगभग 40 दिनों तक कपिल दास के घर पर ही रहकर बुनकरों की परम्परागत कला ताना बाना पर रिसर्च व स्टडी किया था. 19 साल बाद आज मीरा फिर से बस्तर के उसी नगरनार गांव पहुंची, जहां उन्होंने कभी 40 दिन बिताए थे. गांव पहुंची तो देखा कि सबकुछ बदल गया है. कभी छोटा सा गांव अब बस्तर की नई पहचान बन रहा है. कारण है नगरनार में लग रहा स्टील प्लांट. किसी तरह मीरा कपिल दास के घर पहुंची जो पूरी तरह बदल गया था. घर पहले से थोड़ा बड़ा हो गया था, पर कपिल के घर की स्थिति ने उन्हें अंदर से झकझोर कर रख दिया. कपिल दास की मौत हो चुकी है और उनके दो बच्चों में से एक छोटे लड़के के दिल मे दो छेद हैं. बच्चे का इलाज करवाने कपिल की पत्नी दर दर भटकने को मजबूर हैं. आज तक न उन्हें सरकारी मदद मिल पाई और न बच्चे का ऑपरेशन हो पाया.

इस संबंध में मीरा ने बताया कि इस जानकारी से वह इतनी व्यथित हैं कि पूरी रात रोती रहीं. कपिल दास के परिवार से उनका गहरा रिश्ता है और यही वजह है कि अब वो अपना फर्ज निभाना चाहती हैं. मीरा ने फैसला किया है कि वो हॉलैंड लौटकर अपने परिवार व मित्रों के सहयोग से कपिल के परिवार को आर्थिक मदद करेंगी. जिससे बच्चे का उचित व पूर्ण ईलाज करवाया जा सके.

वहीं मीरा के साथ पहली बार बस्तर पहुंचे उनके पति रेमों ने भी अपनी पत्नी मीरा की इस पहल की जमकर सराहना की है और बच्चे की हरसंभव मदद करने की बात की है.

इस विदेशी महिला के द्वारा मदद को हाँथ बढ़ाने की पेशकश से भावुक हुई स्व. कपिल दास की पत्नी कमला ने बताया कि मीरा से उनकी पहचान 19 साल पहले उनके घर पर आने की वजह से हुई है. 40 दिनों तक उनके घर पर ही रहने की वजह से उनके पति व मीरा के बीच भाई बहन वाले रिश्ते हो गए थे और यही वजह है कि आज मीरा इतनी दूर से उनकी खोजखबर लेने पहुंची हैं. नगरनार स्टील प्लांट में जमीन जाने की वजह से उनके बड़े बेटे को नौकरी तो मिली है पर कम पढ़े लिखे होने की वजह से तनख्वाह केवल 9 हजार ही मिलता है. आज उनके छोटे बेटे को दिल की गंभीर बीमारी है और मदद करने वाला कोई भी नहीं. कुछ बची हुई जमीन को गिरवी रख कर अब तक इलाज करवाने की कोशिश तो की पर अब तक सफल ऑपरेशन नहीं हो पाया है.

अब तो राजधानी के बड़े अस्पतालों ने भी दिल्ली या बैंगलोर जैसे बड़े शहरों का रास्ता दिखा दिया है. इस स्थिति में मीरा का इतनी दूर से उनसे मिलने पहुंचना और मदद के लिए आगे आना उन्हें उम्मीद की एक किरण की तरह नजर आ रही है. कमला कहती हैं कि मीरा आज उनके लिए भगवान बनकर आई हैं, उम्मीद है उनकी मदद से उनका बच्चा ठीक हो जाएगा.