आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। बस्तर संभाग के घोर माओवादी प्रभावित इलाकों में हालात अब तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। जिन दुर्गम और अंदरूनी क्षेत्रों में करीब चार दशकों तक माओवादियों की समानांतर व्यवस्था चलती रही, वहां अब सुरक्षा बलों ने स्थायी और प्रभावी पकड़ बना ली है। लगातार चल रहे एंटी नक्सल ऑपरेशनों में मिल रही कामयाबी के साथ-साथ सुरक्षा कैंपों के विस्तार ने फोर्स की मौजूदगी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया है।

बस्तर संभाग में अब कुल 357 सुरक्षा कैंप स्थापित

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, बस्तर संभाग में अब कुल 357 सुरक्षा कैंप स्थापित हो चुके हैं। यह संख्या माओवादी प्रभाव वाले इलाकों में सुरक्षा बलों की व्यापक और स्थायी तैनाती को दर्शाती है। खास बात यह है कि जहां पहले हर साल औसतन 15 से 16 नए कैंप खोले जाते थे, वहीं वर्ष 2025 में रिकॉर्ड 52 नए सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं। इसे सुरक्षा रणनीति में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

अबूझमाड़ में 22 नए सुरक्षा कैंप स्थापित

इसका सबसे अधिक असर नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में देखने को मिला है, जो लंबे समय से माओवादियों का गढ़ माना जाता रहा है। यहां अकेले 22 नए सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा बीजापुर जिले के अंदरूनी इलाकों में 18 और सुकमा जिले के माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में 12 नए कैंप खोले गए हैं। कर्रेगुट्टा जैसे अतिसंवेदनशील और चुनौतीपूर्ण इलाकों में भी सुरक्षा बलों की तैनाती ने हालात को काफी हद तक बदला है।

सरकार का कहना है कि ये सुरक्षा कैंप अब केवल ऑपरेशन का आधार नहीं रह गए हैं, बल्कि विकास के प्रवेश द्वार बनते जा रहे हैं। ‘नियद नेल्लानार’ योजना के तहत कैंपों के आसपास के गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल और अन्य बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। टेकलगुड़ेम, पुवर्ती, तुमालपाड़, रायगुड़ेम, उसकावाया, नागाराम, पेदाबोडकेल और उरसांगल समेत कुल 52 स्थानों पर नए कैंप स्थापित कर प्रशासन ने विकास कार्यों को गति दी है।

सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, कैंपों की इस श्रृंखला से माओवादियों की आवाजाही और उनके प्रभाव क्षेत्र को सीमित करने में बड़ी सफलता मिली है। पहले जहां सुरक्षाबलों की पहुंच मुश्किल थी, वहां अब नियमित गश्त और प्रशासनिक गतिविधियां संभव हो पा रही हैं। इसका सीधा असर ग्रामीण इलाकों में दिख रहा है, जहां धीरे-धीरे सामान्य जीवन की वापसी हो रही है।

गौरतलब है कि सुरक्षा और विकास को साथ लेकर चलने की यह रणनीति बस्तर में माओवादी समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है। जमीन पर बदले हालात इस बात के संकेत दे रहे हैं कि बस्तर अब भय और हिंसा के दौर से निकलकर शांति और विकास की ओर बढ़ रहा है।

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