आशुतोष तिवारी, जगदलपुर. दशहरा पर्व की शुरुआत बस्तर में काचन गादी रस्म से होती है. यह रस्म बुधवार को होगी, जिसमें बस्तर के राजकुमार काचन देवी से दशहरा मनाने की अनुमति मांगेंगे. इसके बाद ही बस्तर के दशहरे की विधिवत शुरुआत होगी.

सदियों से चलती आ रही इस परंपरा में कांचन देवी के रूप में एक विशेष बालिका को चुना जाता है, जिसे कांटों के झूले पर बैठाया जाता है. वर्तमान में इस भूमिका को निभाने वाली बालिका का नाम पीहू है, जो पिछले तीन वर्षों से इस रस्म में देवी के रूप में भाग ले रही है. केवल एक विशेष परिवार की अविवाहित युवतियों को ही इस रस्म के लिए चुना जाता है.

600 सालों से चली आ रही परंपरा

इस रस्म को निभाने से पहले युवती को नौ दिनों का उपवास करना होता है. फिर उसे कुरंदी के जंगलों से लाए गए विशेष बेल के कांटों के झूले पर लिटाकर झुलाया जाता है. रस्म के बाद पर्व के मुखिया राजकुमार से देवी के आदेश के अनुसार दशहरा की शुरुआत की अनुमति ली जाती है. माना जाता है कि इस दौरान देवी स्वयं युवती में समा जाती हैं और पर्व की शुरुआत का आदेश देती हैं. लगभग 600 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है और काचन गादी रस्म को दशहरा पर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है.

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