आशुतोष तिवारी, जगदलपुर. छत्तीसगढ़ में बस्तर के किसानों पर इन दिनों संकट के बादल छाए हुए हैं. पिछले एक महीने से इंद्रावती नदी में पानी न होने की वजह से किसान आंदोलनरत हैं. अब 22 गांवों के किसानों का आक्रोश और बढ़ गया है, क्योंकि वे अपनी फसल को सिंचित करने में असमर्थ हैं.


भाजपा शासनकाल में किसानों की सिंचाई समस्या को दूर करने के लिए कोसारटेडा सिंचाई परियोजना शुरू की गई थी. यह परियोजना 22 गांवों के 7360 हेक्टेयर कृषि भूमि को पानी उपलब्ध कराती थी. पिछले 14 वर्षों से किसान इसी पानी पर निर्भर रहकर धान और मक्का की खेती करते आए हैं. लेकिन इस वर्ष स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा.
प्रशासन की उदासीनता

किसानों ने 15 दिन पहले जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप को ज्ञापन सौंपकर कोसारटेडा से पानी छोड़ने की मांग की थी, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. सिंचाई विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कोसारटेडा बांध में मात्र 5% पानी शेष है, जो किसानों तक नहीं पहुंच सकता. वहीं, किसानों का आरोप है कि इस वर्ष बांध में 10% अधिक पानी जमा हुआ था और अधिकारियों ने फसल लगाने की अनुमति दी थी. लेकिन बाद में किसानों के हिस्से का पानी चित्रकोट जलप्रपात को सुंदर बनाने के लिए छोड़ दिया गया.
पानी न मिलने की स्थिति में किसान अब आत्महत्या करने को मजबूर हैं. वे प्रशासन के सामने दो विकल्प रख चुके हैं या तो उन्हें पानी दिया जाए या फिर उनका कर्ज माफ किया जाए. अगर पानी नहीं छोड़ा जाता, तो किसान राष्ट्रीय राजमार्ग जाम करने को मजबूर होंगे.
इस विकट स्थिति में किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज करना घातक साबित हो सकता है. प्रशासन को तत्काल प्रभाव से ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि किसान अपने अधिकारों से वंचित न रहें. सरकार को यह समझना होगा कि किसान केवल अन्नदाता ही नहीं, बल्कि इस देश की रीढ़ भी हैं. यदि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और उग्र हो सकता है.
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