आज़ाद, किरंदुल, दंतेवाड़ा। बस्तर की एक आदिवासी मां ने अपने बेटे को लकड़ियां बेचकर आईआईटी पास करवा दिया. वो भी तब जब उसके पिता की मौत तब हो गई जब ये बच्चा दस महीने का था.

इस बार दंतेवाड़ा से 6 बच्चे

इस बार दंतेवाड़ा जिले से कुल 6 बच्चों का चयन हो गया है. इसमें से सबसे ज्यादा अंक वामन मंडावी का आाया. पिता की मौत के बाद मां मंगली मंडावी ने लकड़ी बेची और अपने बच्चे को पढ़ाया. गांव के बाकी बच्चों को उनके माता-पिता ने गाय चराने, वनोपज इकट्ठा करने में लगा दिया लेकिन मंगली मंडावी ने उसे स्कूल भेजा.

शुरु से रहा मेधावी

वामन मंडावी की कामयाबी में सरकारी स्कूल की भूमिका भी बेदह अहम रही. वामन ने पहली कक्षा से आठवीं कक्षा की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल में की. हाईस्कूल की परीक्षा  हाईस्कूल बड़े बचेली से 72% अंक पाकर की उसके बाद दंतेवाड़ा के छुलो आसमान में 12वीं कक्षा विज्ञान वर्ग से 76 %लेकर उत्तीर्ण की.

मां का सपना पूरा किया

वामन की मां मंगली मंडावी ने बताया कि वह अपने बच्चे की इस उपलब्धि से बहुत खुश है. उन्होंने बताया कि वामन के पिता चमरू राम मंडावी इस दुनिया में नही हैं. वामन के जन्म के 10 माह बाद ही उनकी मृत्यु हो गई थी. इसके बाद मैंने लकड़ी बेचकर बच्चो की परवरिश की. मेरा सपना था कि मेरे बच्चे पढ़ लिख कर बड़े आदमी बने.मां मंगली का कहना है कि वामन की इस कामयाबी में जिला प्रशासन व सरकार का बहुत बड़ा योगदान है निःशुल्क शिक्षा योजना के चलते मुझे सहयोग मिला.

मां ने तकलीफों से पाला है

वहीं बेटे वामन का कहना है कि मेरी मां का सपना मै पूरा करना चाहता हूं.मेरी मां ने बहुत तकलीफों से मुझे पाला है.मै अपनी मां के लिए इंजीनियर बनना चाहता हूं.