जगदलपुर। दशकों तक नक्सली हिंसा, भय और विकास की कमी से जूझते बस्तर के हालात छत्तीसगढ़ में साय सरकार के आने के बाद पिछले कुछ वर्षों में पूरी तरह बदल गए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के कुशल नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार के लगातार प्रयास, पुलिस-प्रशासन की रणनीति, जनता की सहभागिता और युवा ऊर्जा ने बस्तर को बदल कर एक नई पहचान दी है। बस्तर की इस नई पहचान का सबसे मजबूत प्रतीक बनकर उभरा है—बस्तर ओलंपिक।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व और उनके विकासोन्मुख दृष्टिकोण के कारण यह खेल महोत्सव न केवल युवाओं का उत्सव बना है बल्कि बस्तर के सामाजिक ताने-बाने को जोड़ने वाला माध्यम भी साबित हो रहा है। यह आयोजन खेल, संस्कृति, आत्मविश्वास और शांति का महाकुंभ बन चुका है।

एक विचार, जिसने बदल दी तस्वीर
सालों तक नक्सल प्रभाव झेल चुके बस्तर में जब 2024 में पहली बार बस्तर ओलंपिक का विचार आकार ले रहा था तब बहुतों को संदेह था कि क्या यह विशाल आयोजन सफल हो पाएगा? लेकिन पहले ही वर्ष में रिकॉर्ड सहभागिता और सकारात्मक परिणामों ने यह साफ कर दिया कि बस्तर में परिवर्तन की प्यास गहरी है।2024 में बस्तर ओलंपिक को एशिया के सबसे बड़े जनजातीय खेल आयोजनों में गिना गया और अब 2025 में यह और भी भव्य बन चुका है।
2025 के बस्तर ओलंपिक से चमकता बस्तर
इस वर्ष 25 अक्टूबर 2025 से बस्तर ओलंपिक की शुरुआत हुई और इस बार का रिकॉर्ड तोड़ आंकड़ा सामने आया।इस बार 4 लाख से भी अधिक खिलाड़ियों का पंजीकरण, 600 से अधिक नुआ बाट खिलाड़ी (सरेंडर नक्सली) का समावेश, दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए विशेष श्रेणी की व्यवस्था और 7 जिलों की 7 टीमें + 1 विशेष ‘नुआ बाट टीम’ ऐसी भव्यता पहले कभी देखने को नही मिली थी।

खेल के माध्यम से बस्तर को मुख्यधारा में जोड़ने का अभियान
बस्तर ओलंपिक केवल खेल आयोजन नहीं है। यह नक्सल प्रभावित युवाओं को समाज से जोड़ने, उन्हें आत्मविश्वास देने और हिंसा से दूर रखने का अभियान है। सरकार के अनुसार, जो युवा एक समय हथियार उठाने को मजबूर थे, वे आज उसी क्षेत्र में खेल-कूद और प्रतिभा के दम पर सम्मान कमा रहे हैं। ‘नुआ बाट’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
नुआ बाट : नया रास्ता, नई जिंदगी
बस्तर की बोली में ‘नुआ बाट’ का अर्थ है—नया रास्ता। इसी नाम से सरेंडर नक्सलियों और नक्सली हिंसा से पीड़ित युवाओं की टीम बनाई गई है।2024 में जहां 300–350 नुआ बाट खिलाड़ी मैदान में उतरे थे, वहीं इस साल यह संख्या 600 पार कर चुकी है।ये वही युवा हैं जो कभी हथियारबंद नक्सली कैडर में शामिल थे लेकिन अब खेल के मैदान में खेल भावना, अनुशासन और मेहनत की मिसाल पेश कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री साय की दृष्टि : खेलों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन
बस्तर ओलंपिक की सबसे बड़ी शक्ति है—छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का दूरदर्शी नेतृत्व। साल 2024 में इस आयोजन की शुरुआत भले ही प्रशासनिक स्तर पर हुई हो लेकिन 2025 में इसे राज्य सरकार का पूर्ण सहयोग और मार्गदर्शन मिला है।
बस्तर ओलंपिक की सफलता के पीछे मुख्यमंत्री के प्रमुख प्रयास
बस्तर ओलंपिक की सफलता के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के कुशल रणनीति और नेतृत्व से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं के लिए सुरक्षित खेल स्थलों का निर्माण किया गया। ब्लॉक से लेकर संभाग स्तर तक प्रतियोगिताओं के लिए समुचित बजट की व्यवस्था बनाई गई। महिला खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए विशेष संरचनाओं का निर्माण किया गया। दिव्यांग (नक्सल हिंसा पीड़ित) खिलाड़ियों के लिए विशेष श्रेणी बनाई गई।इस तरह ‘वन भैंसा’ शुभंकर के साथ बस्तर की पहचान को वैश्विक मंच तक ले जाने की एक शानदार मुहिम छेड़ी गई है। इस पर मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि “बस्तर ओलंपिक केवल खेल प्रतियोगिता नहीं बल्कि यह बस्तर के आत्मविश्वास और बदलाव की यात्रा है।”

पारंपरिक व आधुनिक खेलों का संगम
राज्य के मुख्यमंत्री के प्रयास से आरम्भ हुआ बस्तर ओलंपिक उन खेलों को पुनर्जीवित कर रहा है जो आदिवासी संस्कृति की आत्मा माने जाते हैं।बस्तर ओलंपिक की मुख्य खेल स्पर्धाओं में हैं- एथलेटिक्स जिसमें है 100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर, लम्बी कूद, ऊंची कूद, शॉटपुट, जैवलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो और 4×100 रिले टीम खेलों में है- फुटबॉल, वॉलीबॉल, कबड्डी, खो-खो, बैडमिंटन, कराते और रस्साकशी (महिला सीनियर वर्ग के लिए विशेष) जिला स्तर की विशेष स्पर्धाओं में है , हॉकी और वेटलिफ्टिंग। दिव्यांग खिलाड़ियों के खेलों में शामिल है व्हीलचेयर रेस, विशेष एथलेटिक्स, कबड्डी, खो-खो इनमे वे तमाम खिलाड़ी होते हैं जो नक्सली हिंसा में दिव्यांग हुए होते हैं। यह विविधता बताती है कि बस्तर ओलंपिक सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि बस्तर की विविध खेल परंपराओं का महोत्सव है।
बस्तर ओलंपिक के आयोजन की संरचना में स्थानीय और संभागीय स्तर पर भागीदारी
बस्तर ओलंपिक चार मुख्य स्तरों पर आयोजित होता है—1. संकुल स्तर, यह आयोजन का पहला चरण है। गांव और पंचायत स्तर के खिलाड़ी इसमें भाग लेते हैं।2. विकासखंड स्तर, यहाँ संकुल स्तर के विजेताओं की टीम बनती है। 3. जिला स्तर यहाँ सातों जिलों की टीमें बनती हैं। जिला स्तर की प्रतियोगिताएँ समाप्त हो चुकी हैं। 4. संभागीय स्तर, यह आयोजन का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण है। यहीं से बस्तर के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी तैयार होकर आगे राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचते हैं।
बस्तर ओलंपिक का प्रभाव : बस्तरवासियों का बदला जीवन, बदली पहचान
बस्तर ओलंपिक आज केवल खेल नहीं बल्कि आशा, विश्वास और पुनर्निर्माण की कहानी बन चुका है। बस्तर ओलंपिक के प्रभाव से नक्सली गतिविधियों में भारी कमी आई है सरेंडर नक्सलियों की बढ़ती संख्या बताती है कि युवा अब विकास और शांति की राह चुन रहे हैं।बस्तर ओलंपिक से युवाओं में आत्मविश्वास का संचार हुआ है। बस्तर के हजारों युवाओं को पहली बार किसी बड़े मंच पर खेलने का अवसर प्राप्त हुआ।

बस्तर ओलंपिक ने किया महिला खिलाड़ियों का सशक्तिकरण
बस्तर ओलंपिक से महिला खिलाड़ियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। रस्साकशी जैसे खेलों में विशेष टूर्नामेंट इसका प्रमाण हैं।बस्तर ओलंपिक के प्रभाव से समाज में एकता की भावना बढ़ी है। बस्तर ओलंपिक में नक्सल प्रभावित और सामान्य परिवारों के युवा एक साथ खेलते हैं जो सामाजिक मेलजोल बढ़ाने में अत्यंत प्रभावी है।बस्तर ओलंपिक के प्रभाव से आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होती है।बस्तर ओलंपिक खेल आयोजन के दौरान स्थानीय व्यापार, परिवहन, होटल आदि में गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं।
बस्तर ओलंपिक में जिला-वार भागीदारी : सात जिलों की एकता
बस्तर संभाग के सात जिलों—बस्तर, जगदलपुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोण्डागांव और कांकेर में अलग-अलग रंग, परंपराएँ और खिलाड़ी हैं, लेकिन एक मंच पर आकर वे बस्तर की एक नई तस्वीर पेश करते हैं।
शांति, विकास और खेल—तीनों का संगम है बस्तर ओलंपिक
बहुत समय तक बस्तर के जंगलों में गोलियों की आवाज़ गूंजती थी, लेकिन आज वही जंगल खिलाड़ियों की तालियों और शोर से गूंज रहे हैं।बस्तर ओलंपिक ने विकास, शांति और खेल को एक साथ लाकर एक नई राह दिखाई है।बस्तर ओलंपिक यह साबित करता है कि अगर अवसर मिले, तो यहां का हर युवा नया इतिहास लिख सकता है।”
सरकार की दूरदर्शी रणनीति : खेल के साथ पुनर्वास
छत्तीसगढ़ की साय सरकार के अनुसार “नक्सलवाद का मुकाबला केवल सुरक्षा नीति से नहीं,बल्कि विश्वास, सहयोग और अवसर देकर ही किया जा सकता है।” इसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार ने लक्ष्य बनाकर कुछ सफ़ल प्रयास किए। उन प्रयासों में है सरेंडर नक्सलियों के पुनर्वास पैकेज को मजबूत बनाना, खेल को जीवन का विकल्प और अवसर बनाना, युवा शिविर, छात्रावास और कोचिंग केंद्रों की स्थापना करना, दूरस्थ गांवों तक खेल सामग्री पहुंचाना और हर खिलाड़ी को जर्सी, जूते,और स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना।
बस्तर ओलंपिक : साबित हो रहा है बस्तर के भविष्य की ओर एक निर्णायक कदम
एक खेल आयोजन किसी क्षेत्र के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सुरक्षा ताने-बाने को भी बदल सकता है। बस्तर ओलंपिक ने इसे संभव करके दिखाया है। आज बस्तर के युवा देशभर में जा रहे हैं, राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर और कुछ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान बना ली है। बस्तर ओलंपिक खेलों के माध्यम से बस्तरवासियों में एक आत्मविश्वास जागा है उनको मिली एक नई दिशा। इन कोशिशों का परिणाम यह हुआ कि नया बस्तर उभर रहा है।
बस्तर अब भय नहीं, उम्मीद की धरती है
बस्तर ओलंपिक ने बस्तर को आधुनिक भारत की प्रेरणा बना दिया है। एक क्षेत्र, जो दशकों तक संघर्ष और हिंसा से घिरा रहा, आज खेलों के रंग में रंग जाए, तो इसे केवल आयोजन नहीं बल्कि पूरे समाज की जीत होती है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बस्तर ओलंपिक आज परिवर्तन का ऐसा मंच बन चुका है, जो आने वाले वर्षों में बस्तर को भारत के श्रेष्ठ खेल क्षेत्रों में अग्रणी बना सकता है।


