सुप्रिया पांडेय, रायपुर। इंसान की शक्ति उसकी आत्मा में होती है, और आत्मा कभी दिव्यांग नहीं होती. इन बातों को रायपुर की शांति नगर में रहने वाली दिव्यांग महिलाओं ने सच कर दिखाया, जो धान की बालियों से गहने तैयार कर रही हैं. इन गहनों की डिमांड इतनी है कि निर्माण के साथ ही इनकी बिक्री हो जाती है. महिलाएं बताती है कि वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती, इसलिए उन्होंने इस नए काम को अपनाया.

गिरिजा जलछत्रे के मार्गदर्शन में स्व-सहायता समूह से जुड़ी 7-8 महिलाएं कान के झूमके, बालियां और गले का हार बना रही हैं. इन महिलाओं का कहना है कि इससे उन्हे बेहतर आय की प्राप्ति हो रही है. गहनों की बिक्री से उनका हौसला आफजाई भी हुआ है, जिससे वे इसी क्षेत्र में और काम करना चाहती है.

महिलाओं का मार्गदर्शन कर रही गिरिजा जलछत्रे बताती हैं कि वे एक बार मेला घूमने गई थी, जहां उन्होने धान से बने गहनों को देखा. इसी से उन्हें आइडिया आया कि धान के गहने उन लोगों को भी बनाना चाहिए. इसके बाद महिलाओं को एकत्रित किया और धान से गहनो का निर्माण करना शुरू किया. शुरू में उन्हे काफी मुश्किलें हुई, उसके बाद धीरे-धीरे गहनों का निर्माण होने लगा. दिव्यांग महिलाएं बताती है कि वे हर रोज 5 से 6 घंटे का समय धान के गहनों के निर्माण में लगाती है. इससे उन्हे बेहतर आय की प्राप्ति भी होती है.

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दिव्यांग महिला सीमा ने कहा कि वे काफी दूर से आती है, हर रोज ऑटो बदलकर कार्य स्थल पर पहुंचती है. आमदनी इतनी तो हो जाती है कि उनके खुद का खर्चा चल जाए, वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती लोग दिव्यांग को देख समझते है कि वे किसी काम के नहीं है पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. हर व्यक्ति ये चाहता है कि वे अपने पैरों पर खड़े हों. दिव्यांग महिला इस काम के जरिये न सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी है, बल्कि अपना पसंदीदा काम भी कर रही हैं.

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