रायपुर. निज़ाम बदल गया लेकिन बीज निगम की रिवायत न बदली. सरकार कहती है कि स्थानीय लोगों को ज़्यादा काम मिले. लेकिन बीज निगम उसी तरीके से काम कर रही है जिससे कुछ खास लोगों को ही फायदा मिले. मामला बीज निगम के हाल ही में बुलाए नीम खली के रेट कांट्रेक्ट का है. 20 रुपये किलो में बिकने वाले नीम खली के रेट कांट्रेक्ट में वो ही फर्म भाग ले सकती है जिसका सालाना कारोबार पिछले तीन साल से 45 लाख रुपये से ऊपर का रहा हो.
इस बारे में जब बीज निगम के एमडी नरेंद्र दुग्गल से पूछा गया तो उनका कहना है कि निविदा की शर्तें पूर्व वर्षों से बनी हैं. जिस विभाग का आरसीओ आता है उसे तकनीकी समिति मानदंड निर्धारित करती है. तीन वर्षों के व्यापार का टर्नओवर देखा जाता है. इसमें किसी व्यक्ति विशेष को लाभ नहीं पहुंचाया जा सकता है. फिर भी आपने मेरे संज्ञान में लाया तो परीक्षण कराया जाएगा.
दरअसल, बीज निगम सामानों की खरीद बिक्री के लिए रेट कांट्रेक्ट भी बुलाता है जिसके बाद अलग-अलग विभाग इस दर पर उस सामान की खऱीदी करते हैं. नई सरकार बनने के बाद बीज निगम में गलत प्रक्रिया के जरिए काम पाने वाले कई फर्मों को ब्लैक लिस्टेड किया था. लेकिन उसके बाद भी उस प्रक्रिया को नहीं बदला गया है जिसके ज़रिए ऐसी गड़बड़ियां हो रही हैं. मीडिया रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी कि अगस्त के महीने में बीज निगम ने माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का काम उस फर्म को दे दिया था जिसे कुछ महीने पहले बीज निगम ने ही ब्लैक लिस्ट किया था.
किसान नेता संकेत ठाकुर का कहना है कि बीज निगम की इस प्रक्रिया में पहला हक किसानों का बनता है. पहली प्राथमिकता किसानों को मिलनी चाहिए. सरकार को तीन साल और टर्नओवर का क्लॉज हटा देना चाहिए. बीज निगम को क्वालिटी देखनी चाहिए. क्वालिटी के मामले में बीज निगम अक्सर फेल हुआ है. बीज निगम बड़ी-बड़ी कंपनी को फायदा पहुंचा रहा है. टर्न ओवर की शर्त के साथ नए लोग कैसे काम करेंगे. सरकार स्टार्ट अप और स्टैंडअप की बात करती है दूसरी तरफ ऐसे नियम थोपती है. अगर नए लोगों को मौका नहीं देना है तो कोई बात ही नहीं है. दुर्भाग्य ये है कि सरकार बदली है. लेकिन काम वही लोग कर रहे हैं.
बीज निगम की कई गड़बड़ियों को उजागर कर चुके सामाजिक कार्यकर्ता उचित शर्मा का कहना है कि विभाग में डटे अधिकारी कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए रेट कांट्रेक्ट के ऐसे नियम बना रहे हैं. उचित शर्मा का कहना है कि बीज निगम का काम किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास करना है लेकिन ये ऐसे नियम और शर्तें जोड़ रहा है जिससे फायदा उन्हें ना हो. तीन साल की शर्त से नए कारोबारी और किसान प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाते हैं. बीज निगम की कारगुजारियों पर सरकार को गंभीरता से नकेल कसना चाहिए.
उचित शर्मा जो आरोप लगा रहे हैं वो उस वक्त भी बीज निगम पर लगे थे जब बीज निगम ने उपजाऊ मिट्टी और वर्मी कंपोस्ट का रेट कांट्रेक्ट के लिए आवेदन मंगाए थे. इसमें भी तीन साल तक लाखों रुपये का टर्नओवर की शर्त रखी गई थी.
बीज निगम के ये दोनों शर्ते प्रतिस्पर्धा एक्ट 2002 का उल्लंघन करती नज़र आती हैं. जिसमें ऐसी शर्तें लगाने पर रोक लगी हुई है जो प्रतिस्पर्धा को कमज़ोर करता है.