रायपुर। पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा ही एक ऐसा अवसर होता है जब चंद्रदेव अपनी संपूर्ण कलाओं से पूर्ण होकर अमृतमयी वर्षा करते हैं. शरद पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा से उत्सर्जित होने वाली किरणों में चिकित्सकीय गुण भी विद्यमान रहते हैं. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में 108 बार सुई में धागा पिरोने से आंखों की ज्योति बढ़ती है.

आज के समय में मोबाइल पर ज्यादा वक्त बिताए जाने की वजह से बड़ों के साथ-साथ बच्चों की भी नजर कमजोर होती जा रही है. खेलने-कूदने की उम्र में मोबाइल और टीवी पर आंख गड़ाए रहने की वजह से कम उम्र में ही बच्चों को मोटे-मोटे चश्मे लग जा रहे हैं. लेकिन प्राचीन समय से ही आंखों की रोशनी को तेज करने के लिए बताए गए उपाय आज भी कारगर साबित हो रहे हैं.

माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन जब पूर्ण चांद दिखने लगे तो उसकी तरफ देखते हुए एक सुई में धागे को बार-बार पिरोना है. यह क्रम 108 बार करें. इससे शिथिल हो रहे तंत्र सक्रिय होते हैं, और नेत्र ज्योति में इजाफा होता है. इससे जहां चश्मों की मोटाई भी जहां कम हो जाएगी, वहीं धीमी हो रही दृष्टि भी फिर से पुष्ट हो जाएंगी.

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