अमृतसर. पंजाब में पराली सड़ने की समस्या अब इतिहास बनने की कगार पर है। 2021 में 15 सितंबर से 21 अक्टूबर तक राज्य में 4,327 पराली सड़ने के मामले दर्ज हुए थे, लेकिन 2025 में यह संख्या घटकर महज 415 रह गई। यह लगभग 90 प्रतिशत की अभूतपूर्व कमी है, जो भगवंत मान सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और जमीन पर उतारे गए प्रयासों का जीता-जागता प्रमाण हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसे न केवल पर्यावरणीय मुद्दा माना, बल्कि पंजाब के भविष्य से जुड़ा सवाल बताया। 2022 में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनते ही उन्होंने स्पष्ट घोषणा की थीं कि पंजाब की हवा अब धुएं से नहीं भरेगी। आज यह वादा हकीकत बन चुका है, और पंजाब का मॉडल पूरे देश के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है।

मान सरकार ने पराली प्रबंधन को फाइलों से निकालकर खेतों तक पहुंचाया। हर जिले में व्यापक जागरूकता अभियान चलाया गया। किसानों को हजारों सीआरएम (कंबाइन हार्वेस्टर रेजिड्यू मैनेजमेंट) मशीनें मुफ्त या सब्सिडी पर उपलब्ध कराई गईं, ताकि वे पराली को सड़ने के बजाय खेतों में ही दबा सकें और मिट्टी में मिला सके। हर गांव में निगरानी टीमों का गठन किया गया, ब्लॉक स्तर पर सतत निरीक्षण सुनिश्चित हुआ। अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए कि कोई भी आग न लगे। इसका सबसे ज्यादा असर संगरूर, बठिंडा और लुधियाना जैसे जिलों में पड़ा, जहां पहले पराली सड़ने की समस्या चरम पर होती थी।

किसानों को दुश्मन की तरह नहीं, बल्कि साझेदार मानकर आगे बढ़ा गया। सरकार ने भरोसा दिलाया कि वे अकेले नहीं छोड़े जाएंगे। नतीजा? किसान खुद मशीनें चलाने लगे, पराली से खाद और ऊर्जा उत्पादन के लिए सामूहिक प्रयास शुरू हो गए।
इस अभियान का फायदा हवा की गुणवत्ता में भी साफ दिखा। अक्टूबर 2025 में लुधियाना, पटियाला और अमृतसर जैसे प्रमुख औद्योगिक-कृषि जिलों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में पिछले वर्षों की तुलना में 25 से 40 प्रतिशत सुधार हुआ। पंजाब से निकलने वाला धुआं अब दिल्ली-एनसीआर तक नहीं पहुंच रहा, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण कम हुआ। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा, “इरादे से सब कुछ संभव है। हमने भाषणों या नारों से नहीं, जमीन पर कार्रवाई से यह हासिल किया।”