भुवनेश्वर। ‘भाई जिउंतिया’ उत्सव सोनपुर और राज्य के अन्य पश्चिमी हिस्सों में एक आम धार्मिक परंपरा है, जो बहनों और भाइयों के बीच के बंधन के प्रतीक दशहरा त्योहार के दौरान मनाया जाता है. उत्सव से जुड़ी एक अनोखी परंपरा ‘तंत्र पीठ’ सोनपुर में देखी जाती है, जहां देवी दुर्गा स्वयं ‘भाई जिउंतिया’ मनाती हैं, हालांकि प्रतीकात्मक रूप से.

उत्सव का महत्व यह है कि विवाहित और अविवाहित दोनों महिलाएं महाष्टमी के दिन व्रत रखती हैं, देवी दुर्गा से अपने भाइयों की लंबी उम्र, खुशी और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं. जिस तरह विवाहित महिलाएं त्योहार मनाने के लिए अपने पैतृक घर जाती हैं, उसी तरह देवी दुर्गा भी इस उद्देश्य के लिए अपने पिता के घर जाती हैं. Read More –आज से पूरे प्रदेश में चलेंगी प्राइवेट बसें, परिवहन मंत्री ने किया ऐलान

यह परंपरा राजशाही के समय से ही चली आ रही है. अतीत में देवी दुर्गा की पूजा सोनपुर के शाही महल में की जाती थी और राजा दशहरा उत्सव के दौरान प्रतीकात्मक रूप से सभी रीत करते थे. उसके बाद देवी विजयादशमी के दिन अपने निवास स्थान पर लौट आती हैं, जो उत्सव के अंत का प्रतीक है.

यह पूरी प्रक्रिया सोनपुर की प्रसिद्ध ‘बाली यात्रा’ का एक हिस्सा है, जो महालया से कुमार पूर्णिमा तक 16 दिनों तक चलती है. जब देवी दुर्गा की मूर्तियों को पुजारी दीपक पुरोहित के घर से जुलूस के रूप में निकाला जाता है, तो एक विशेष समुदाय का एक सेवायत, जिसे स्थानीय रूप से ‘बरूआ’ कहा जाता है (जिस पर देवी प्रकट होती है) धुन के अनुसार पूजक लोक संगीत पर नृत्य करते हैं.

विजयादशमी के उत्सव को ‘महाबली यात्रा’ कहा जाता है, जिसमें उत्सव की एक झलक पाने के लिए भक्तों की एक विशाल भीड़ उमड़ती है. इतिहासकारों का मानना है कि सोनपुर की ‘बाली यात्रा’ पूरी तरह से ‘तंत्र’ पर आधारित है, जिसका 1,000 वर्षों से अधिक का ऐतिहासिक महत्व है. पहले उत्सव के दौरान अनुष्ठान के एक भाग के रूप में कुछ जानवरों की बलि दी जाती थी, लेकिन आधिकारिक प्रतिबंधों और पशु वध के खिलाफ विरोध के कारण यह प्रथा पूरी तरह से बंद हो गई.