शीषर्क को पढ़कर जिस तरह से आप यह जानने के लिए उत्सुक हो उठे होंगे कि आखिर भारत रत्न राजीव गांधी बचपन से ही छत्तीसगढ़ की कहानियाँ कैसे सुनते रहे ? मेरे मन में भी यही जानने की उत्सुकता बचपन के दिनों में तब हमेशा बनी रहती थी, जब कभी मेरा मामा गाँव जाना होता था.

संदीप अखिल, स्टेट न्यूज़ कार्डिनेटर, लल्लूराम डॉट कॉम

आज मैं आपको वही सच्ची कहानी बता रहा हूँ जो बचपन के दिनों में मैं सुनते रहा हूँ. इस कहानी के नायक थे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी. दरअसल जब भी कवर्धा जाना होता था तो वहाँ के लोग हमेशा इस बात को बताते थे की हमारे यहाँ के भोरमदेव में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी आए थे. आज भी वहाँ के लोगों से आप बात करेंगे तो वो स्वर्णिम स्मृतियां आप को नज़र आ जाएगी. ये बात साल 1988 की है. इसी साल राजीव गांधी छत्तीसगढ़ के दौरे पर कवर्धा आए थे. यहाँ वे अपने छत्तीसगढ़िया मित्र कहने पर बैगाओं से मिलने आए थे. उन बैगाओं से जिसकी कहानियाँ राजीव गांधी बचपन से ही सुनते रहे.

 

तब के दौर में इंदिरा गांधी के बाद छत्तीसगढ़ में बतौर प्रधानमंत्री दो बार आने वाले दूसरे प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी. साल 1988 में राजीव गांधी राजनांदगांव में लोकसभा क्षेत्र पहुँचे थे. उन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश में कवर्धा के भोरमदेव में एक बड़ी सभा को संबोधित किया था. इस सभा में बड़ी संख्या में बैगा आदिवासी मौजूद थे. इस सभा से राजीव गांधी ने बैगा प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. यह प्रोजेक्ट बैगा जनजाति को संरक्षण देने, उन्हें जंगल की जमीने, उनका विकास करने, उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए था.

राजनांदगांव जिले की यह यात्रा इस लिए भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि वो यात्रा उनके सहपाठी रहें शिवेन्द्र बहादुर सिंह से जुड़ी हुई थी. शिवेन्द्र बहादुर और राजीव गांधी की प्रारंभिक शिक्षा दून स्कूल में हुई थी. शिवेन्द्र बहादुर और राजीव गांधी के साथ 1955 से लेकर 1962 तक पढ़े थे. राजीव गांधी के ही बोलने पर इंदिरा गांधी ने 1980 में राजनांदगांव लोकसभा की टिकट शिवेन्द्र बहादु को दिया था. शिवेन्द्र बहादुर राजीव गांधी के वो छत्तीसगढ़िया मित्र जिनके जरिए वे छत्तीसगढ़ की कहानियाँ स्कूल के दिनों से ही सुनते रहे थे. छत्तीसगढ़ की जनजातीय संस्कृति के बारे में राजीव गांधी को जानकारियां शिवेन्द्र बहादुर से मिलती रही.


अटल ने कहा था- मैं ज़िंदा हूँ तो राजीव गांधी की वजह से

लोग बताते हैं कि राजीव अपने संबंधों को बहुत सहेजकर कर रखना जानते थे. वे एक बहुत संवेदनशील राजनेता थे. एक और जानकारी मैं साझा कर रहा हूँ जिसके बारे में मैं बचपन से सुनते रहा हूँ. बात 1991 की है. तब देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के नेता थे. राजीव गांधी की हत्या के बाद वाजपेयी ने एक पत्रकार को बड़े भावुक अंदाज में एक वाकया सुनाया और कहा कि आज अगर वो जिंदा है, तो राजीव गांधी की वजह से.  दरअसल 1991 से पहले वाजपेयी किडनी की समस्या से ग्रसित थे. उस दौर में भारत में इस बीमारी का इलाज संभव नहीं था. वाजपेयी जी को इलाज के लिए अमेरिका जाने की जरूरत थी, लेकिन आर्थिक साधनों की तंगी की वजह से वे अमेरिका नहीं जा पा रहे थे.वाजपेयी ने बेहद भावुक होकर यह वाकया बताया था.

उन्होंने कहा कि जब राजीव पीएम थे तो पता नहीं कैसे उन्हें उनकी बीमारी के बारे में पता चल गया. राजीव यह भी जान गये कि उनकी किडनी में समस्या है और उन्हें इलाज के लिए विदेश जाने की जरूरत है, लेकिन संसाधनों के अभाव में मैं वक्त वहां जाने में असमर्थ हैं. इस पर राजीव गांधी ने उन्हें अपने दफ्तर में बुलाया और कहा कि वे उन्हें संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं. राजीव गांधी ने मुझसे से कहा कि उन्हें आशा है कि वे इस अवसर का वो सदुपयोग करते हुए अपने पर ध्यान देंगे. वाजपेयी जी ने पत्रकार को बताया था की “मैं उसके बाद न्यूयॉर्क गया और इसी वजह से आज जिंदा हूं.” ऐसी राजनीति और ऐसी सोच के पुरोधा थे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ।।।।