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उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के कनखल में स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर को दक्ष महादेव मंदिर भी कहा जाता है. यह गंगा नदी के तट पर शिवालिक पर्वतमाला की तलहटी में स्थित है और शिव को समर्पित है. इस मंदिर का नाम राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर रखा गया है, जो देवी सती के पिता थे.
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने शिव और उनके गणों को आमंत्रित नहीं किया. सती अपने पति शिव के अपमान से आहत होकर यज्ञ की अग्नि में कूद गईं. इस घटना से क्रोधित होकर शिव ने वीरभद्र को यज्ञ नष्ट करने और दक्ष को दंड देने का आदेश दिया. वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया, लेकिन बाद में शिव ने यज्ञ को पूरा करने के लिए दक्ष को एक बकरे का सिर देकर पुनर्जीवित कर दिया.
इसके बाद राजा ने शिव से क्षमा मांगी, जिसके बाद शिव जी ने राजा को माफ कर यह वचन दिया कि हरिद्वार का मंदिर उनके नाम से जुड़ा रहेगा और कहा कि सावन के महीने में मंदिर में वह वास करेंगे. दक्षेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है, जिसे शिव और शक्ति के विवाह का प्रतीक माना जाता है. इसके अलावा, नवरात्रि, दिवाली, जन्माष्टमी और होली के दौरान भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. सावन के महीने में हजारों श्रद्धालु यहाँ गंगा स्नान कर शिवलिंग का अभिषेक करने आते हैं.
मंदिर की वास्तुकला
दक्षेश्वर महादेव मंदिर नागर शैली में बना हुआ है, जो उत्तर भारतीय वास्तुकला की विशेषता है. मंदिर का निर्माण 1810 ईस्वी में रानी धनकौर ने करवाया था, और 1962 में महानिर्वाणी अखाड़े ने इसका जीर्णोद्धार किया. मंदिर का शिखर पत्थर का बना हुआ है और इसकी ऊँचाई लगभग 30 मीटर है. मंदिर में प्रवेश एक सुंदर मंडप के माध्यम से होता है, जिसे नक्काशीदार खंभे सहारा देते हैं. मंदिर परिसर में 1000 साल पुराना विशाल बरगद का पेड़ भी स्थित है, जिसे विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है.
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