भोपाल। अगर आप भी नॉनवेज के शौकीन हैं तो सावधान हो जाइए। एक शख्स की आंख से 1 इंच लंबा कीड़ा निकला है। भोपाल के AIIMS में डॉक्टरों ने दुर्लभ ऑपरेशन किया है। डॉक्टरों ने यह भी कहा कि उन्होंने अपने 15 साल के करियर में पहला ऐसा मामला देखा है।

दरअसल, मध्य प्रदेश के रूसल्‍ली निवासी 35 वर्षीय युवक को आंखों में बार-बार लाली और दृष्टि कमजोर होने की समस्या हो रही थी। उन्होंने कई चिकित्सकों से परामर्श लिया और स्टेरॉयड आई ड्रॉप्स और टैबलेट्स का इस्तेमाल किया, जिससे उसे अस्थायी राहत मिली। 

जब उसकी नजर और कमजोर होने लगी तो वह एम्स भोपाल पहुंचा। जहां उसकी आंख के विट्रियस जेल में एक जीवित परजीवी कीड़ा पाया गया। जिसकी पहचान  ग्नाथोस्टोमा स्पिनिजेरम के रूप में हुई। कीड़ा आंख के अंदर रेटिना के पास था। 

पकड़ने पर बचने की कोशिश करता है कीड़ा

मुख्य रेटिना सर्जन डॉ. समेंद्र करखुर ने इस सर्जरी का नेतृत्व किया। उन्होंने प्रक्रिया की जटिलता को समझाते हुए कहा कि “आंख से एक बड़े और जीवित परजीवी को निकालना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है। यह कीड़ा पकड़ने से बचने की कोशिश करता है, जिससे सर्जरी और भी मुश्किल हो जाती है। इसे सुरक्षित रूप से निकालने के लिए हमने उच्च-सटीकता वाली लेजर-फायर तकनीक का उपयोग किया, जिससे परजीवी को बिना आसपास की नाजुक रेटिना संरचनाओं को नुकसान पहुंचाए निष्क्रिय कर दिया गया।”

उन्होंने बताया कि “परजीवी को निष्क्रिय करने के बाद, हमने इसे विट्रियो-रेटिना सर्जरी तकनीक का उपयोग करके सफलतापूर्वक हटा दिया। इस परजीवी की पहचान ग्नाथोस्टोमा स्पिनिजेरम के रूप में हुई, जो आंख के अंदर बहुत ही दुर्लभ रूप से पाया जाता है।”

दुनिया में अब तक 3-4 केस आए हैं  

डॉक्टर ने बताया कि अब तक दुनिया में केवल 3-4 मामलों में ही इस परजीवी लार्वा के आंख के विट्रियस कैविटी (कांचीय द्रव) में पाए जाने की रिपोर्ट दर्ज हुई है।

अधपके मांस के सेवन से शरीर में करता है प्रवेश 

यह परजीवी कच्चे या अधपके मांस के सेवन से मानव शरीर में प्रवेश करता है और त्वचा, मस्तिष्क और आंखों सहित विभिन्न अंगों में प्रवास कर सकता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। डॉ. कर्कुर ने पुष्टि की कि मरीज अब स्वस्थ हो रहा है और जल्द ही उसकी दृष्टि में सुधार होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि अपने 15 वर्षों के करियर में उन्होंने पहली बार इस प्रकार का मामला देखा और सफलतापूर्वक प्रबंधित किया। प्रो. सिंह ने चिकित्सा टीम को इस उपलब्धि पर बधाई दी और कहा, “यह मामला एम्स भोपाल की चिकित्सा उत्कृष्टता और रोगी देखभाल के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

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