शब्बीर अहमद, भोपाल। राजधानी भोपाल को 40 साल बाद 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे से आजादी मिली है। भारी पुलिस बल की मौजूदगी में भोपाल से पीथमपुर के लिए 12 कंटेनर निकल चुके हैं। ग्रीन कॉरिडोर बनाकर कचरा भेजा जा रहा है। इसे लेकर ट्रैफिक पुलिस ने भी प्लान बनाया है। कंटेनर के साथ एम्बुलेंस, पुलिस, फायर दमकल की गाड़ियां भी साथ में चल रही है।
250 किलोमीटर दूर पीथमपुर में नष्ट होगा जहरीला कचरा
बता दें कि दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी और भोपाल को कभी ना भूलने वाला जख्म देने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में सालों से जहरीला कचरा रखा था। यूनियन कार्बाइड (यूका) फैक्ट्री के गोदाम में रखे 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को भोपाल से 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर ले जाया जा रहा है जहां इसे नष्ट किया जाएगा। हालांकि इंदौर और पीथमपुर कचरे के नष्टीकरण को लेकर इसका काफी विरोध भी हो रहा है।
फैक्ट्री में मौजूद था 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा
फैक्ट्री में करीब 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा मौजूद था, जिसमें सीवन नाम का वो कीटनाशक भी है, जिसका उत्पादन भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में होता था। इसके अलावा जिस एमआईसी गैस के लीक होने से हजारों लोगों की मौत हुई थी, वो नेफ्थॉल से बनाई जाती थी। यह नेफ्थॉल फैक्ट्री परिसर में ही थी जिसे हटा लिया गया है।
भोपाल गैस कांड के 40 साल
गौरतलब है कि 2 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस कांड हुआ था। रात 8:30 बजे से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की हवा धीरे धीरे जहरीली होनी शुरू हो गई थी। जैसे-जैसे रात बीती, वैसे-वैसे अस्पतालों में मरीजों की भीड़ इकट्ठा होने लगी। सुबह तक तो राजधानी कब्रिस्तान में तब्दील हो गई। इस त्रासदी की गिनती सबसे खतरनाक औद्योगिक दुर्घटना में होती है। इसमें न जाने कितनों की जानें गई, कितने अपंग हो गए।
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