राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। मध्य प्रदेश चुनाव में दोनों प्रमुख दलों के साथ बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी दम भरने के तमाम जतन कर रही हो, बीजेपी-कांग्रेस के बागियों ने भी इन दलों से मैदान में उतरकर कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया हो, लेकिन प्रदेश की तासीर ऐसी हो गई है कि विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा को तवज्जों मिलना अब कम हो गया है।

पिछले चुनावों के आंकड़े बता रहे हैं कि प्रदेश में साइकिल लगातार पंचर हो रही है, तो मायावती के हाथी की चिंघाड़ निकल रही है। हालांकि 2018 के चुनाव में सपा को पिछले तीन चुनावों की तुलना में अधिक वोट मिले हैं।

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मतदाताओं का भरोसा कायम रखने में नाकाम

विधानसभा चुनावों में प्रदेश की जनता प्रादेशिक और क्षेत्रिय दलों को तवज्जों नहीं देती। बावजूद इसके मायावती की बहुजन समाज पार्टी यानी बीएसपी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी यानी सपा इस बार भी प्रदेश में हुंकार भरने के जतन करने में जुटी हुई है। पिछले चुनावों में जरूर जनता ने बीजेपी-कांग्रेस के बाद अगर किसी पर भरोसा जताया तो ये दोनों ही दल थे, लेकिन ये दोनों पार्टियां मतदाताओं का भरोसा कायम रख पाने में कामयाब नहीं हो पाईं।

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पिछले 20 वर्षो में हुए चार विधानसभा चुनावों में सपा की सीट 7 से घटकर 1 पर आकर सिमट गईं। वहीं हाथी (BSP) 2 सीटों से चढ़कर 7 के अंक पर पहुंची, लेकिन दोबारा दूसरे पायदान पर आकर खड़े हो गई।

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लगातार घट रहा जनता का भरोसा

बहुजन समाज पार्टी

  • 2003 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 10.61 प्रतिशत वोट मिले।
  • 2008 में वोट प्रतिशत घटकर 9.08 प्रतिशत रह गया।
  • 2013 में 6.42 प्रतिशत।
  • 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ 5.11 प्रतिशत वोट मिले।

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समाजवादी पार्टी

  • 2003 के विधानसभा चुनाव में 5.26 प्रतिशत वोट मिले थे।
  • 2008 में वोट बैंक घटकर 2.46 प्रतिशत रह गया।
  • 2013 में सिर्फ 1.70 प्रतिशत वोट मिले।
  • 2018 के चुनाव में 6.26 प्रतिशत वोट मिले।

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