मनीषा त्रिपाठी, भोपाल। इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही बताया है। उन्होंने सवाल उठाया कि कितने बॉन्ड खरीदे, कितने पॉलीटिकल पार्टी को दिए। इसमें ज्यादातर पैसा घूस के तौर पर दिया, ये हिंदुस्तान नहीं दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है। इस घूस से लाखों करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट दिए। यह संगीन अपराध है, इसकी जवाबदेही हो। कहा कि घूस लेकर दवा कंपनियों को टेंडर दिया गया। इंडिपेंडेंस एसआईटी (SIT) के थ्रू मामले की जांच हो।
चुनावी बांड घोटाले में अदालत की निगरानी में SIT के गठन के लिए कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद चुनावी बांड का डॉटा जो सार्वजनिक किया गया, उससे संकेत मिलता है कि बॉन्ड्स के माध्यम से बड़े पैमाने पर संभावित लेन-देन (quid pro quo) कंपनियों और राजनीतक दलों द्वारा किया गया। डेटा से पता चलता है कि जिन कंपनियों को बड़ी परियोजनाएं मिलीं, उन्होंने परियोजनाएं प्राप्त करने के करीब सत्तारूढ़ दलों को बांड के माध्यम से बड़ी रकम दान की।
प्रवर्तन निदेशालय CBI और IT विभाग शामिल
संभावित रिश्वत के अलावा, डेटा यह सूझता है कि चुनावी बांड के माध्यम से दान देने वाली कंपनियों पर विनियामक निष्क्रियता और घाटे में चल रही और राजनीतिक दलों को धन दान करने वाली शेल कंपनियों के साथ संभावित मनी लॉन्ड्रिंग का खुलासा करता है। इसके अलावा, डेटा संभावित जबरन वसूली के मामलों को उजागर करता है, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED), CBI और IT विभाग जैसी एजेंसियां शामिल हैं। चुनावी बांड घोटाला संभवतः देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला है, जिसकी एक स्वतंत्र संस्था द्वारा गहन जांच की आवश्यकता है।
15 फरवरी, 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना (electoral bonds) को असंवैधानिक करार दिया और चुनावी बॉन्ड की आगे की बिक्री पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चुनावी बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
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