अमृतांशी जोशी/शब्बीर अहमद, भोपाल। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) पर सियासत तेज हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ (Kamal Nath) ने बीजेपी (BJP) पर निशाना साधा हैं। उन्होंने कहा कि विदेशी या अलग-अलग नाम से पुकारना आदिवासियों का अपमान है। संदेश जारी करते हुए कहा कि कांग्रेस ने आदिवासियों को हक दिलाने का काम किया। आदिवासी वनों का संरक्षण बेहतर तरीके से कर सकते हैं। कमलनाथ ने कहा कि ‘वन की बात’ (Van ki Baat) नाम से भी एक कार्यक्रम होना चाहिए।
कमलनाथ ने आदिवासियों के नाम जारी किया संदेश
पीसीसी चीफ कमलनाथ ने आदिवासियों के नाम संदेश जारी किया है। जिसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने आदिवासियों को हक दिलाने का काम किया। 15 महीने की सरकार में कांग्रेस पार्टी ने आदिवासियों के हित में हर काम किया है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि पेसा कानून कांग्रेस ने बनाया, वन अधिकारों का कानून भी कांग्रेस की देन है। आदिवासी समाज और कांग्रेस पार्टी एक परिवार है। कमलनाथ ने आगे कहा कि मैं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र छिंदवाड़ा से 45 साल से आपकी सेवा में हूं। सीधी में जो हुआ हम सबने देखा मध्य प्रदेश में आदिवासी अपराध लगातार बढ़ रहे हैं।
आदिवासियों को विदेशी बताने पर कही ये बात
पूर्व सीएम ने आदिवासियों को विदेशी बताने पर भी हमला बोला है। उन्होंने कहा कि विदेशी बताना आदिवासियों का अपमान है। केंद्र सरकार के आंकड़े मप्र में आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए। आदिवासी हमारे मध्य प्रदेश के मूल निवासी हैं, उन्हें विदेशी या अलग-अलग नाम से पुकारना आदिवासियों का अपमान है। आज विश्व आदिवासी दिवस है लेकिन ये दुख की बात है कि देश भर में सबसे ज्यादा अत्याचार प्रदेश के आदिवासियों पर हो रहे हैं। ये हालात है, यह किसी से भी छुपा हुआ नहीं है।
आदिवासी वनों का संरक्षण बेहतर तरीके से कर सकते हैं- पीसीसी चीफ
कमलनाथ ने ट्वीट कर लिखा- वाह रे मप्र की भाजपा सरकार, जिसे वन और वन संरक्षण की याद आने में 18 साल लग गये! ‘मुग्धमंत्री’ जी ने अपने प्रवचन रूपी भाषणों में वन पर जो व्याख्यान दिया है, उसमें मानवीय पक्ष अर्थात आदिवासी संदर्भ शून्य-सा था, जबकि वनों का प्राकृतिक संरक्षण आदिवासी जिस तरह कर सकते हैं, उस तरह कोई सरकारी विभाग या सीएसआर के छद्म रूप में कोई कॉरपोरेट घराना नहीं।
दरअसल शारीरिक मुद्राओं के रूप जितने अधिक नाटकीय होते हैं, उनमें सच उतना ही कम होता है। सच तो ये है कि भाजपा ने वनों को पिछले दरवाज़े से अपने लोगों के लिए खोल दिया है। ये लोग तार्किक दोहन की जगह बेरहमी से वनों का शोषण कर रहे हैं। जिससे वन सम्पदा और वन्यजीवों के बीच संतुलन बिगड़ रहा है। भाजपा वनों का भी राजनीतिकरण कर रही है। जिससे वनों और समीपस्थ ग्रामों के मध्य सदियों पुराना परस्परता का संबंध सियासी साज़िशों का शिकार हो रहा है।
‘वन की बात’ नाम से भी हो कार्यक्रम
उन्होंने आगे लिखा कि भाजपा से आग्रह है कि कम-से-कम वनों की नैसर्गिकता को तो दूषित व संक्रमित न करें और वनों के वातावरण को स्वस्थ और स्वच्छ रहने दें। वन से संबंधित लोगों के लिए ‘चरण पादुका’ किसी सरकारी योजना के अहसान का नाम नहीं बल्कि कृतज्ञता भरे मन का सच्चा भाव होना चाहिए! ‘वन की बात’ नाम से भी एक कार्यक्रम होना चाहिए।
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