अमित पांडेय, खैरागढ़/गंडई। गंडई से कुछ किलोमीटर दूर, मैकल पर्वत की ऊंची चट्टानों और सुरही नदी की शांत धारा के बीच घने जंगलों में स्थित भंवरदाह मां भ्रामरी देवी को समर्पित मंदिर है. यहां एक भी भव्य मंदिर नहीं है. एक पीपल वृक्ष के नीचे मां भ्रामरी देवी विराजमान हैं, जिनके दरबार में हजारों मधुमक्खियों के छत्ते हैं. स्थानीय लोग इन मधुमक्खियों को मां की जीवित उपस्थिति मानते हैं. यह भी पढ़ें : IPS BREAKING: पुलिस महकमे में बड़ी सर्जरी, 20 अफसरों का तबादला, 9 जिले में नए एसपी की नियुक्ति, देखिए आदेश…
मान्यता है कि जब राक्षसों ने पृथ्वी पर आतंक मचाया, तब मां भ्रामरी ने अपने शरीर से हजारों मधुमक्खियां उत्पन्न कर उनका वध किया. तभी से उन्हें भ्रामरी देवी कहा जाने लगा. मंदिर में आज भी प्राकृतिक रूप से विद्यमान हजारों मधुमक्खियों के छत्ते इस मान्यता को जीवंत बनाए रखते हैं.

सफर कठिन, लेकिन अनुभूति अमूल्य
भंवरदाह तक पहुंचने के लिए गंडई से भड़भड़ी डैम होते हुए लगभग 2-3 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है. यह पगडंडी और उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर गुजरता है. दो बार नदी पार करनी पड़ती है, लेकिन जब आप मां भ्रामरी की शरण में पहुंचते हैं, तो यह सफर आध्यात्मिक अनुभव में बदल जाता है.

मौन में बोलती है भक्त
भंवरदाह न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आत्मा की उस यात्रा का प्रारंभिक बिंदु है, जहां भक्ति, प्रकृति और इतिहास एक साथ अनुभव किए जा सकते हैं. अगर आप भी कभी भीतर की यात्रा पर निकलना चाहें, तो भंवरदाह जरूर आइए, जहां मौन में भक्ति बोलती है, और मधुमक्खियों की गूंज में मां की उपस्थिति महसूस होती है.
राजाओं की परंपरा और रहस्यमयी नदी
इतिहासकारों और स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, 10वीं शताब्दी में यहां एक भव्य मंदिर हुआ करता था, जहां गंडई जमींदारी के राजा पूजा करने आया करते थे. कहा जाता है कि राजा अपनी दोधारी तलवार लेकर माता के दरबार जाते थे, और सुरही नदी उनकी तलवार देख रास्ता दे देती थी. एक बार राजा पूजा के बाद तलवार वहीं भूल गए, जिसके बाद नदी ने कभी रास्ता नहीं दिया और धीरे-धीरे मंदिर विलुप्त हो गया.

आज भी मिलते हैं प्राचीन प्रमाण
मंदिर परिसर और आस-पास आज भी 10वीं शताब्दी के शिलालेख, खंडित मूर्तियां और शिलाखंड देखे जा सकते हैं, जो यहां की ऐतिहासिक समृद्धि के गवाह हैं. मां भ्रामरी की मुख्य प्रतिमा के अलावा आसपास कई अन्य मूर्तियां मौजूद हैं, जिनका वास्तुशिल्प बताता है कि यह स्थान कभी समृद्ध सांस्कृतिक केंद्र रहा होगा.
सुरही में होता ज्योतों का विसर्जन
यह स्थान आज भी दिखावे से परे है. यहां कोई शिखर नहीं, कोई चांदी का दरवाजा नहीं, सिर्फ एक वृक्ष, और उसके नीचे जाग्रत देवी. इसी सादगी में ही भंवरदाह की खासियत छिपी है. हर वर्ष नवरात्रि के बाद यहां नवरात्रि मनाई जाती है, और अखंड ज्योत जलाई जाती हैं. यह परंपरा पिछले 17 वर्षों से अनवरत चली आ रही है. नौ दिनों तक जलने वाली इन ज्योतों का अंतिम दिन हवन और पूजन के साथ सुरही नदी में विसर्जन होता है.
भविष्य में होगा जीर्णोद्धार
गंडई राजपरिवार के राजा लाल तारकेश्वर खुसरो ने बताया कि जल्द ही मां भ्रामरी के इस स्थान का जीर्णोद्धार कर एक भव्य मंदिर निर्माण की योजना है, ताकि आस्था के इस केंद्र को और अधिक संरक्षित किया जा सके.
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