रायपुर। क्या मुमकिन है कि कलेक्टर और कमिश्नर किसी अधिकारी को जांच में भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों में दोषी पाए. उसे बर्खास्त करने की सिफारिश करें तब भी उसे सस्पेंड तक ना किया जाए. ऐसा मुमकिन हुआ है छत्तीसगढ़ में. जहां एक अधिकारी पर भ्रष्टाचार के बेहद संगीन आरोप साबित होने के बाद कमिश्नर द्वारा उसे हटाने की अनुशंसा की गई. इस बात को आठ महीने हो गए लेकिन ना तो अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई ना ही दोबारा उस मामले की जांच के आदेश जारी हुए.
मामला कोरिया जिला का है यहां के पटना में पदस्थ परीवीक्षाधीन नायब तहसीलदार अनुज पटेल पर 1-2 नहीं बल्कि आधा दर्जन से ज्यादा मामलों में भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. वो भी प्रोबेशन के पीरियड में. उसकी शिकायत जिला के कई वरिष्ठ अधिकारियों सहित कलेक्टर के पास भी की गई थी. उन आरोपों पर जिला कलेक्टर ने अपर कलेक्टर के नेतृत्व में जांच कमेटी का गठन किया था.
अपर कलेक्टर ने अपनी जांच में अनुज पटेल को दोषी पाया और उन्होंने जो जांच प्रतिवेदन 5 दिसंबर 2016 को संभागायुक्त सरगुजा को सौंपा. उसमें उन्होंने अनुज पटेल को स्टाम्प वेंडर उज्जवल मिश्रा के माध्यम से पैसा वसूलने का दोषी पाया इसके साथ ही जांच रिपोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध निर्णय देने का भी दोषी पाया था.
अपर कलेक्टर के जांच प्रतिवेदन के आधार पर उपायुक्त सरगुजा संभाग ने राजस्व विभाग के सचिव को जांच प्रतिवेदन की कॉपी के साथ परिवीक्षाधीन नायब तहसीलदार अनुज पटेल को कदाचरण का दोषी पाते हुए उन्हें बर्खास्त करने की अनुशंसा फरवरी 2017 में की थी. अपनी रिपोर्ट में उपायुक्त ने लिखा है कि अनुज पटेल का कृत्य शासन एवं राजस्व प्रशासन की छवि को धूमिल करना व लोक सेवकों के लिए नियत कृत्य के प्रतिकूल होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है, जो कि छग सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3 के सर्वथा विपरीत है. अतः छग सिविल सेवा (सेवा की सामान्य शर्तें) नियम 1961 के नियम 8(4) के तहत अनुज पटेल की सेवा समाप्ति हेतु प्रस्ताव अनुशंसा सहित प्रेषित है. लेकिन 8 महीने से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी सरकार ने अनुज पटेल के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की.
जानकारी नहीं है
इस मामले में राजस्व सचिव एनके खाखा ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में कहा “आप मामला बता रहे हैं, मुझे जानकारी नहीं है. चेक करवाता हूं नियमानुसार कार्रवाई हुई है कि नहीं. मुझे 1-2 महीने ही हुआ है यहां ज्वाईन किए. आपने ध्यान दिलाया है अब इस पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.
ये थे मामले जिन पर की गई थी जांच
शिकायतकर्ता इम्तियाज खान का आरोप था कि उनके पिता मो. रफीक ने नामांतरण के लिए नायब तहसीलदार अनुज के समक्ष पेश किया था. भूमि रफीक की बहनों कमरुन्निशा, खैरुन्निसा तथा समसुन्निसा के नाम पर दर्ज है. नायब तहसीलदार अनुज ने प्रार्थी रफीक को कहा था कि पैतृक भूमि है इसलिए नाम दर्ज किया जा सकता है. इम्तियाज का आरोप था कि पटेल के साथ रहने वाले अर्जीनवीस उज्जवल ने नामांतरण के लिए 50 हजार रुपये की मांग की थी. जिस पर उन्होंने 14 हजार रुपए उन्हें दिया था. लेकिन उन्होंने पैसे रख लिए और न तो पैसा वापस किया और न ही नामांतरण किया. जिसकी जांच में दोषी पाया गया
शिकायतकर्ता पुरुषोत्तम साहू ने आरोप लगाया ता कि उनकी पत्नी के नाम पर ग्राम रनई में ख.नं. 490 रकबा 0.47 हेक्टेयर दर्ज थी. उस जमीन को उनके बाबा के पुत्र बद्रीप्रसाद ने अवैध रुप से 2005-06 में जुगेश नाम के शख्स को बेच दिया था. लेकिन वह जमीन बद्रीप्रसाद के नाम पर नहीं थी. अविअ(रा) बैकुण्ठपुर में अपील करने पर 2006-07 में फैसला उनकी पत्नी के पक्ष में आया. जुगेश ने इस फैसले के खिलाफ संभागायुक्त सरगुजा के पास अपील की लेकिन संभागायुक्त ने जुगेश की अपील को निरस्त कर दिया. अविअ(रा) बैकुंठपुर द्वारा पारित आदेश के बाद भी नायब तहसीलदार ने विधि विरुद्ध तरीके से भूमि का नाम जुगेश के नाम पर नामांतरण कर दिया. जिसके बाद उन्होंने तहसीलदार के पास अपील की तो उन्होंने जुगेश का नामांतरण आदेश निरस्त कर दिया था. इस आदेश के खिलाफ जुगेश ने बैकुंठपुर न्यायालय में अपील की थी. न्यायालय ने भी जुगेश की अपील इस वजह से निरस्त कर दी थी कि बद्रीप्रसाद के नाम पर जमीन नहीं थी. इस तरह अनुज पटेल द्वारा जुगेश के पक्ष में नामांतरण आदेश पारित करना विधि सम्मत नहीं है.
शिकायतकर्ता सिराज उल हक ने उच्च न्यायालय के द्वितीय अपील 196/1993 में पारित आदेश दिनांक 14.02.12 के आधार पर नामांतरण का आवेदन पेश किया था. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 14.02.12 के द्वारा वाद भूमि ख.नं. 317/2 रकबा एकड़ का भूमि का स्वामी घोषित किया है. तथा वाद भूमि का कब्जा प्राप्त करने का अधिकारी घोषित किया है. नायब तहसीलदार अनुज पटेल ने अपने प्र.क्र. 37/अ.6/14.15 में पारित आदेश दिनांक 21.12.15 के द्वारा वाद भूमि का नामांतरण विक्रय पत्र का आधार पर किस्माती देवी के नाम पर किए जाने के कारण शिकायतकर्ता सिराजउल हक का नामांतरण आवेदन पत्र निरस्त कर दिया. सिराज के पिता भूतपूर्व सैनिक थे शासन ने उन्हें यह 10 एकड़ जमीन आबंटित की थी. जिसे सक्षम अधिकारी से अनुमति के बाद ही विक्रय की जा सकती है. इस वाद भूमि के नामांतरण में नायब तहसीलदार पटेल ने भूरासं की धारा 165 (7) ख के प्रावधान का पालन नहीं किया.
शिकायतकर्ता नानबाई के मामले में उनके पिता सुकूल एवं रामबिहारी जोबा के मध्य विवाद होने का प्रकरण विचाराधीन था. उन्होंने शिकायत में आरोप लगाया था कि प्रकरण में क्या आदेश हुआ है इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. आदेश का नकल उन्हें नहीं मिला था. नानबाई का आरोप था कि नायब तहसीलदार पटेल ने उज्जवल शर्मा को भेजकर 6 हजार रुपए की मांग की गई थी. उन्होंने नायब तहसीलदार के क्वार्टर में जाकर 4 हजार रुपए पटेल को दिया. पैसा देने के बाद भी उन्हें फैसले का नकल नहीं दिया गया. इस प्रकरण में भी अनुज पटेल दोषी पाए गए.
उमेश पाण्डेय के प्रकरण में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था. उनके बंधपत्र रुपए 5 हजार के आधार पर उन्हें रिहा किया गया था. मुचलके में रिहा करने के लिए नायब तहसीलदार के बाबू द्वारा 4 हजार रुपए की मांग की गई थी. जिस पर उन्होंने बाबू को 1 हजार रुपए दिया गया. इस मामले की पेशी दिनांक में नायब तहसीलदार पटना के द्वारा आपराधिक प्रकरण समाप्त करने के लिए 5 हजार रुपए की मांग की गई थी. उमेश ने इसकी शिकायत मंत्री के पास की थी.
विभागीय परीक्षा से बना नायब तहसीलदार
बताया जा रहा है कि अनुज पटेल जशपुर में एसडीएम के रीडर के पद पर कार्यरत था. विभागीय परीक्षा पास करने के बाद वह नायब तहसीलदार के पद पर कोरिया जिले के पटना में परीवीधा अवधि में पदस्थ थे. दो माह पहले उनका तबादला रायगढ़ जिले में हुआ है.