एक नए शोध में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग और जनरल सर्जरी विभाग के वैज्ञानिकों ने पित्त की थैली के कैंसर से जुड़े एक महत्वपूर्ण कारण का पता लगाया है. इस शोध से यह खुलासा हुआ है कि बैक्टीरिया और वायरस के जीन मनुष्य के जीन में लाखों सालों से शामिल होते आ रहे हैं. जो संभवतः पित्त की थैली के कैंसर का कारण बन सकते हैं.

इस अनुसंधान का नेतृत्व रूही दीक्षित, मोनिका राजपूत, प्रोफेसर वीके शुक्ल और प्रोफेसर मनोज पांडेय ने किया. उनकी टीम ने पाया कि मनुष्य के जीन में बैक्टीरिया और वायरस के जीन के कुछ हिस्से सम्मिलित हो गए हैं. जिन्हें अब तक “जंक डीएनए” समझा जाता था. लेकिन शोध के अनुसार ये डीएनए के हिस्से कोडिंग डीएनए को नियंत्रित कर सकते हैं और सेल के प्रोटीन उत्पादन और विभाजन को भी प्रभावित कर सकते हैं.

रिसर्च में विशेष रूप से 17 asRNA की पहचान की गई है, जो पित्त की थैली के कैंसर में तो पाए गए, लेकिन सामान्य पित्त की थैली में नहीं. इनमें से 15 में बैक्टीरिया या वायरस के डीएनए के हिस्से पाए गए, जो पहले कभी पित्त की थैली के कैंसर में नहीं देखे गए थे. जिन बैक्टीरिया के अंश मिले हैं, उनमें क्लेबसिएला न्युमोनी, बैसिलस परक्लिकेमिफोर्मिस, स्टेफाईलोकोकस औरयस, पासचुरेला, रालस्टोनिआ और वायरस में ज़ीका वायरस, चिकन गुनिया वायरस, और रेट्रो वायरस शामिल हैं.

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इन 15 asRNA के प्रभाव में लगभग 30 प्रोटीन की सिंथेसिस होती है और कैंसर के प्रमुख पाथवे जैसे पी 53, PI3K-AKT, और NOTCH पाथवे को नियंत्रित करने में ये महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस शोध का प्रकाशन स्प्रिंगर के वर्ल्ड जर्नल ऑफ सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में हुआ है और यह कैंसर के इलाज और इसके कारणों की पहचान में एक नया दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है. इस रिसर्च से उम्मीद की जा रही है कि कैंसर के नए कारणों की पहचान होने से इसके इलाज में भी नई दिशा मिलेगी.

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इस महत्वपूर्ण शोध ने कैंसर के अध्ययन और इसके इलाज के क्षेत्र में एक नया आयाम जोड़ दिया है, जो आने वाले समय में कैंसर के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है.

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