नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेश बघेल द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED) के खिलाफ दायर याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट में 11 अगस्त को सुनवाई होगी। यह याचिका शराब घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई और मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम (PMLA) 2002 की धारा 44, 50 और 63 को चुनौती देती है। बघेल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा।

बता दें कि मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ कर रही है, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भूइयां और जस्टिस एनके सिंह शामिल हैं।
सुनवाई तीन चरणों में होगी: कोर्ट
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सबसे पहले प्राथमिक आपत्तियों पर बहस होगी, फिर उसका जवाब सुना जाएगा और उसके बाद ही मामले के गुण-दोष पर चर्चा होगी।
कपिल सिब्बल की आपत्ति, कहा- ‘केस दो दिन में तय होना था’
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट से अपील की कि यदि सुनवाई सोमवार तक टलती है, तो तय समयसीमा में फैसला आना मुश्किल होगा। उन्होंने यह भी कहा कि धारा 44A से जुड़ा मुद्दा भी बेहद अहम है और उस पर भी सुनवाई जरूरी है।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि सोमवार को अदालत पहले कुछ बेल मामलों की सुनवाई करेगी और फिर सुबह 11 बजे PMLA की समीक्षा याचिका पर सुनवाई शुरू की जाएगी।
“जिसके खिलाफ नॉन-बेलेबल वारंट है, वह खुलेआम घूम रहा है”: पूर्व CM भूपेश बघेल
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ED की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि ईडी लगातार पुराने मामलों को दोबारा खोलकर पूछताछ कर रही है, जबकि अगर कार्रवाई करनी थी तो वह पहले की जाती। बघेल ने आरोप लगाया कि कुछ ऐसे लोग, जिनके खिलाफ पहले से नॉन-बेलेबल वारंट (NBW) जारी हैं, वे आज भी खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन उन्हीं के बयानों के आधार पर उनके बेटे की गिरफ्तारी हो गई। उन्होंने सवाल उठाया, “यह किस तरह की प्रक्रिया है?”
उन्होंने आगे बताया कि सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने तीन धाराओं को चुनौती दी है, जिनमें विशेष रूप से PMLA की धारा 44 को लेकर आपत्ति जताई गई है। उनका तर्क है कि यदि किसी मामले में एक बार चार्जशीट दाखिल हो चुकी हो, तो उसकी दोबारा जांच केवल कोर्ट की अनुमति से ही की जा सकती है, लेकिन ईडी ने किसी भी केस में अब तक ऐसी अनुमति नहीं ली।
भूपेश बघेल ने यह भी कहा कि PMLA की धारा 50 के तहत जिस व्यक्ति पर आरोप है, उसी से गवाही लेने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है, जो न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि कोई व्यक्ति खुद के खिलाफ कैसे गवाही देगा?
उन्होंने यह भी बताया कि 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर करीब आधे घंटे तक बहस हुई। इस दौरान उन्होंने एक अन्य मामले का हवाला दिया, जिसमें चैतन्य को पुराने मामले में दोबारा पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। अंत में बघेल ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में जाने की स्वतंत्रता प्रदान की है।
जानिए क्या है पूरा मामला ?
बता दें कि चैतन्य बघेल छत्तीसगढ़ के कथित शराब घोटाले में आरोपी हैं। ईडी ने चैतन्य बघेल को इस घोटाले का मास्टरमाइंड माना है। ईडी के अनुसार 2019-22 के बीच राज्य में 2100 करोड़ का घोटाला हुआ था। इसका पूरा पैसा चैतन्य ने ही मैनेज किया। उन्होंने 16.7 करोड़ रुपये का इस्तेमाल अपनी रियल एस्टेट परियोजना के विकास पर किया।
2100 करोड़ का घोटाला
ईडी का कहना है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कथित घोटाले के कारण राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ। इस घोटाले के जरिए शराब सिंडिकेट के लाभार्थियों को 2,100 करोड़ रुपये से ज्यादा का लाभ हुआ। ईडी ने इस मामले में अपनी जांच के तहत जनवरी में पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता कवासी लखमा के अलावा अनवर ढेबर, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी अनिल टुटेजा, भारतीय दूरसंचार सेवा (आईटीएस) के अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी और कुछ अन्य को गिरफ्तार किया था।
18 जुलाई को गिरफ्तार हुए थे चैतन्य
ईडी ने चैतन्य बघेल को 18 जुलाई को गिरफ्तार किया था। इसके बाद 22 जुलाई को उन्हें अदालत में पेश किया गया। कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी से संरक्षण मांगा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट जाने को कहा। अब मामले में चैतन्य बघेल की ओर से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दयार की गई है, जिसपर जल्द सुनवाई की संभावना जताई जा रही है।
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