रायपुर। भूपेश बघेल की सरकार ने ग्रामीण औद्योगिक पार्क (रीपा) के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन का सपना दिखाया था. लेकिन यह सपना, सपना ही रह गया, अब जब जांच हो रही है तो तब इस योजना के जरिए किस तरह से भ्रष्टाचार का ताना-बाना रचा गया था, इसका खुलासा हो रहा है. लेकिन बड़ी बात यह है कि अब भी छोटी मछलियां, याने सरपंच ही फंसते नजर आ रहे हैं. बड़ी मछलियां- वे अधिकारी जिन्होंने सरपंच पर दबाव बनाकर खरीदी करवाई, वे कार्रवाई की जद से बाहर हैं. यह भी पढ़ें : राजधानी में अतिक्रमण के खिलाफ नगर निगम की बड़ी कार्रवाई, 20 साल पुरानी दुकानों पर चलाया बुलडोजर, देखें VIDEO
भाजपा सदस्य धरमलाल कौशिक ने रीपा में भ्रष्टाचार के मामले को जोर-शोर से विधानसभा में उठाया था. इस पर पंचायत विभाग के मुखिया डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने सीएस की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय जांच समिति की घोषणा की थी. प्रदेश भर में रीपा की पड़ताल के लिए अलग-अलग समिति बनाई गई. संभागवार सीनियर अफसरों को जांच का जिम्मा दिया गया. जानकारी के अनुसार, जांच रिपोर्ट में भारी गड़बड़ी की पुष्टि हुई है.

जांच रिपोर्ट में करीब दो सौ से अधिक रीपा में गुणवत्ताहीन मशीन की खरीद से लेकर निर्माण कार्यों में गड़बड़ी की पुष्टि हुई है. लेकिन इन तमाम गड़बडिय़ों के लिए सिर्फ सरपंच को ही दोषी ठहराया गया है. यानी करीब दो सौ सरपंचों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है, जिनमें से अधिकांश पदमुक्त हो चुके हैं.
बताया गया कि प्रदेश भर में 292 रीपा की स्थापना की गई थी. हर विकासखंड में दो रीपा की स्थापना हुई. रीपा यानी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (ग्रामीण औद्योगिक पार्क) की स्थापना का मुख्य मकसद ग्रामीण आबादी को रोजगार देना रहा है. फरवरी 2022 में रीपा की स्थापना की गई, और इसके लिए बजट में 441 करोड़ का प्रावधान किया गया. हरेक रीपा को दो करोड़ रुपए दिए गए.
खर्च की प्रक्रिया तय थी. तीन एकड़ जमीन में रीपा का निर्माण किया जाना था, इसमेें एक करोड़ रुपए राशि निर्माण कार्यों, पचास लाख रुपए मशीनरी की खरीद, और बाकी राशि प्रचार-प्रसार व ट्रेनिंग में खर्च होना था. निर्माण कार्यों से लेकर मशीनरी की खरीदी के लिए पंचायत को नोडल एजेंसी बनाया गया था. लेकिन मशीनों की खरीदी में भारी अनियमितता सामने आई है. दो-तीन एजेंसियों ने ही ज्यादातर जगहों पर मशीनों की सप्लाई की है, और अब ये मशीन बंद पड़े हैं.
जांच टीम ने सबसे ज्यादा गड़बड़ी बस्तर और सरगुजा संभाग में पकड़ी है. जशपुर में तो एक जगह डीपीआर तैयार करने के नाम पर 80 लाख रुपए फूंक दिए गए. जबकि कुल निर्माण पर एक करोड़ रुपए खर्च होना था. रायगढ़ जिले में 14 रीपा की स्थापना की गई थी. यहां सभी जगह मशीन कंडम हो चुकी है, और काम बंद हो चुका है. बस्तर में भी कुछ इसी तरह की स्थिति है. राजनांदगांव और एक-दो जगहों पर गुलाल बनाने, और गोबर से पेंट आदि बनाने का काम अभी भी जारी है, लेकिन 90 फीसदी रीपा बंद हो चुके हैं.
बताया जा रहा है कि जिला पंचायत सीईओ, और अन्य अफसरों ने सरपंचों पर दबाव डालकर मशीनों की खरीदी करवाई, और निर्माण कार्य कराया. निर्माण में कई जगहों पर सरपंच और उनके रिश्तेदार सीधे जुड़े रहे. हाल यह है कि सभी जगहों पर गड़बडिय़ों के लिए अकेले सरपंच को ही जिम्मेदार माना गया है. यही नहीं, सरपंचों का कार्यकाल खत्म हो चुका है. पंचायतों में नए पदाधिकारी आ चुके हैं. ऐसे में अब कार्रवाई, या फिर वसूली को लेकर संशय की स्थिति है.
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