रूपेश गुप्ता, रायपुर। शतरंज में घोड़ा ढाई घर चलता है. वजीर जिधर चाहे उधर चल सकता है. मगर छत्तीसगढ़ की सियासत में वजीर से ढाई घर चलने की अपेक्षा की जा रही है।

अगले ढाई घर के लिए एक नया वजीर सत्ता के केंद्र में लाने का भी हल्ला बीच–बीच में उड़ने लगता है. जैसे – जैसे ढाई साल की ओर छत्तीसगढ़ सरकार बढ़ रही है, वैसे- वैसे कांग्रेस के भीतर दूसरे खेमे में हलचल तेज़ होने लगती है.

कांग्रेस की राजनाति को समझने वाले कहते हैं कि कभी एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ लड़ाई में साझेदार रहा ये तबका आज भूपेश बघेल विरोधी गुट की तरह नजर आ रहा है. लेकिन अपने तेवर के विपरीत दो बरस से इस सवाल को टालते आ रहे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आखिरकार अब इस सवाल पर बोला और ऐसा बोला कि लगा कि मामले की हवा निकल गई लगती है !

पार्टी के सूत्र बताते हैं कि बार-बार इस बात को उठाए जाने से वे खिन्न ज़रूर थे लेकिन उन्होंने हर बार इसे हल्के–फुल्के अंदाज़ में टाला.

दरअसल, ये हल्ला तब से चल रहा था, जब से मुख्यमंत्री की कमान भूपेश बघेल को मिली थी. कांग्रेस के भीतर ही एक समूह लगातार यह हल्ला करता रहा कि मुख्यमंत्री का पद भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के बीच ढाई ढाई साल के लिए बंटा है ! हालांकि राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए यह शुरू से अचरज का विषय था कि पंद्रह बरस बाद भारी बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस के सामने ऐसी क्या मजबूरी हो सकती है कि वो ऐसे किसी अलोकप्रिय किस्म के फार्मूले के चक्कर में पड़े?

हल्के–फुल्के अंदाज़ में लोग यह ज़रूर कहते हैं कि पार्टी नेतृत्व कभी–कभार तात्कालिक परिस्थितियों में इस तरह की बातें कर भी दे , तो भी गंभीर राजनीतिक समझ और आज की परिस्थितियों में भी, कांग्रेस पार्टी देश में अपनी सबसे स्थिर और पूरी तरह से पार्टी की लाइन पर चल रही सरकार को यूं अस्थिर करने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगी. वैसे भी कांग्रेस आलाकमान की ओर से भी कभी भी इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं आया था .

ताज़ा हल्ला तब हुआ जब एक बार फिर हाल ही में टीएस सिंह देव ने इस मसले में अपना बयान दिया. ये कोई पहला मौका नहीं था जब सिंहदेव ने इस मुद्दे को छेड़ा हो लेकिन अबकी पहली बार था जब बघेल ने इस बात का पूरी संजीदगी के साथ बल्कि अपने चिर–परिचित तेवर के साथ जवाब दिया. उनका जवाब साफ था. अगर उनकी बात को समझें तो अब शायद इस सवाल पर चर्चा की गुंजाइश बची नहीं है!

लेकिन इस ताज़ा बयानबाजी से एक सवाल यह भी उठा है कि अब आगे क्या होगा. क्या मध्यप्रदेश और राजस्थान की तर्ज पर दो दिग्गज नेताओं के बीच संघर्ष बढ़ेगा या फिर भूपेश बघेल की सत्ता पर पकड़ अब और मज़बूत होगी?

file photo

इन दोनों नेताओं ने अपने बयानों में आलाकमान की इच्छा का हवाला दिया है. सभी जानते हैं कि कांग्रेस हो या भाजपा , आज ऐसा कोई दल नहीं है जहां आलाकमान की इच्छा के विरुद्ध कुछ हो जाए. आलाकमान की इच्छा के विरुद्ध कुछ होना मतलब बगावत या दबाव का होना ही माना जाता है. ऐसे उदाहरण भी दोनों ही दलों की राजनीति में दर्ज हैं. छत्तीसगढ़ की राजनीति भी स्वाभाविक रूप से यही कहती है कि यहां वज़ीर बदलेगा या नहीं, ये भी आलाकमान ही तय करेगा.

और सवाल यही है ! सवाल है कि क्या कांग्रेस पार्टी ऐसा कोई कदम उठा भी सकती है या उठाना भी चाहेगी? वो कांग्रेस पार्टी जिसने मध्यप्रदेश और राजस्थान में बागी सुर वाले अपने अपने नेताओं को दो टूक रास्ता बता दिया था !

दरअसल पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं कि पार्टी जिस दौर से गुज़र रही है उसे पार्टी को पुनर्स्थापित करने का दौर भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इस दौरान राहुल गांधी जिस तरह मुद्दों से लेकर सांगठनिक फैसलों तक एक अत्यंत गंभीर और परिपक्व राजनेता के रूप में उभर कर आए हैं वो जानते हैं कि पार्टी के सामने बड़ी चुनौतियां क्या है !

 

छत्तीसगढ़ में टी एस सिंहदेव जब यह इशारा करते हैं कि कांग्रेस में कभी भी कुछ भी हो सकता है, कांग्रेस कभी भी किसी को हटा सकती है, किसी को भी कहीं बिठा सकती है, और जब वो अपने इस इशारे के समर्थन में अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का हवाला दे रहे होते हैं, जिन्हें दो दिन में ही पद से हटा दिया गया था, तब वे समय और परिस्थितियों का आंकलन करने की चूक कर जाते हैं.

क्या उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों की और कांग्रेस पार्टी की तब की स्थिति और आज की राजनीतिक परिस्थितियों तथा कांग्रेस की आज की अपनी स्थिति की तुलना भी की जा सकती है?

कांग्रेस पार्टी के लिए ही भूपेश बघेल इन दो वर्षों के भीतर पार्टी का एक ऐसा चेहरा बन चुके हैं जिन्हें नाम और काम से पार्टी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रही है.

17 दिसंबर 2018 और 17 दिसंबर 2020 के दरम्यान उनकी पहचान, इमेज और पार्टी में उनकी स्थिति में बड़ा बदलाव आ चुका है.

2018 में भूपेश बघेल संघर्षों के नायक थे लेकिन 2020 में वे कांग्रेस के विकास के नए मॉडल के सबसे बड़े ब्रांड, एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री, पिछड़ी जाति के सबसे बड़े कांग्रेसी और बड़े किसान नेता के रूप के तौर पर उभरे हैं. जिनके काम और नाम को दूसरे राज्यों में कांग्रेस और कांग्रेस के सबसे बड़े स्टार राहुल गांधी खुद वैकल्पिक विकास के रोल मॉडल के रूप में पेश कर रहे हैं. राज्यों के चुनाव में कांग्रेस भूपेश के मॉडल को सामने रखकर वोट मांग रही है. भूपेश बघेल की सरकार कांग्रेस की वो सरकार है जिसने अपने वायदे निभाए हैं. वादा निभाने की बात पर भी केंद्र की मोदी सरकार से भूपेश सरकार की तुलना का अवसर कांग्रेस को मिलता है.

दरअसल, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दो बरस में एक ऐसी सरकार दी है जिसके सहारे कांग्रेस मोदी के विकास के मॉडल को आईना दिखा सकती है.

उन्होंने सरकार में रहते ऐसे फैसले लिए हैं, जिसकी ज़रुरत देश महसूस कर रहा है. उनके विकास के केंद्र में इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं बल्कि व्यक्ति है.इस तरह भूपेश बघेल की अगुवाई वाली छत्तीसगढ़ की सरकार कांग्रेस के विकास की सबसे बड़ा रोल मॉडल है.

 

धान खरीदी, तेंदूपत्ता समेत दूसरे वनोपज संग्रहण और गोबर खरीदी के जरिये कांग्रेस जनता के हाथ मे सीधे पैसे दे रही है. इस बात को कांग्रेस पार्टी हर चुनाव में मोदी के क्रोनी कैप्टलिज्म मॉडल के बरक्स खड़ा कर रही है. उन्होंने इस मिथक को तोड़ने का काम किया है कि सरकारें पूंजीपतियों के हितों के आगे बेबस होती हैं.

जिस समय खेती, किसानी सबसे ज़्यादा सवालों के घेरे में है, उस वक़्त छत्तीसगढ़ में कृषि ऋण माफ़ी के बाद किसानों को धान के बदले 2500 रुपये तमाम दुश्वारियों के बाद भी देते रहना. इसी तरह उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में तेंदूपत्ता और दूसरे वनोपज के दाम बढ़ाकर दिए. आदिवासियों को बड़ी संख्या में वनाधिकार पट्टे बांटे. राज्य में उन्होंने छत्तीसगढ़ी अस्मिता को जिस तरह से स्थापित किया और अपनी पहचान को उसके साथ जोड़ा,उससे वो छत्तीसगढ़ी अस्मिता के प्रतीक पुरुष बन चुके हैं.

इन सब कामो और फैसलों से उनकी छवि और पहचान माटीपुत्र किसान नेता की बनी है. देश में किसानों के मुद्दे गरमाते रहते हैं. फिर वे पिछड़े समुदाय से भी आते हैं. जिसे साधने का सबसे बड़ा संकट इस वक्त कांग्रेस के ही सामने नहीं है, बल्कि भाजपा भी इस तबके में अपनी पैठ बनाने की जुगत में रहती ही है. लिहाज़ा भूपेश बघेल के ज़रिए कांग्रेस के पास एक ऐसा नेता है जो ओबीसी को साध सकता है. इसी तरह किसानों के मुद्दे पर जिस तरह भूपेश बघेल ने संघर्ष किया है उसके बाद सरकार में आने के बाद कृषि को फोकस में रखा है, इससे वे बड़े किसान नेता के तौर पर स्थापित हुए हैं.

व्यक्तिगत तौर पर भूपेश बघेल गांधी नेहरु परिवार खासकर राहुल गांधी के साथ सबसे मज़बूती के साथ खड़े कांग्रेसी हैं.

जब गांधी नेहरु परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठता है, उनके साथ वे सबसे मज़बूती के साथ खड़े नज़र आते हैं.

भूपेश बघेल कांग्रेस के उन नेताओं में हैं जो विचारधारात्मक तौर पर भी मजबूती के साथ और बिना किसी भ्रम का शिकार हुए कांग्रेस,गांधी और नेहरू के साथ खड़े होते हैं.

आरएसएस और भाजपा पर वैचारिक हमले करने में भी शायद राहुल गांधी के सबसे नजदीक!

छत्तीसगढ़ में गाय से लेकर राम तक के मुद्दे को जन आस्था और जन विकास से जोड़ कर उन्होंने भाजपा से इन्हें छीनने में सफलता पाई है. वे क्रोनी कैप्टलिज्म के खिलाफ भी स्टैंड लेते आए हैं.वे स्पष्टवादी हैं. उनकी छवि जो कहा , वो किया वाले राजनेता की है.

एक राजनीतिक प्रेक्षक की टिप्पणी दोहराई जाए तो भूपेश बघेल ढाई घर वाले घोड़े नहीं राजनीति की बिसात पर सीधी चाल चलने वाले वज़ीर हैं.

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निवास पर वे चाणक्य की तस्वीर के नीचे बैठे भले ही नजर आए पर उनकी छवि चाणक्य की नहीं बल्कि स्पष्टवादी और बेझिझक, सीधी कार्रवाई करने वाले और तत्काल फैसला लेने वाले राजनेता की है.

कांग्रेस को शतरंज का वज़ीर मिला है और यूं ही नहीं है कि विरोधी वज़ीर के पीछे लगे हों!

यहां ढाई घर की टेढ़ी चाल बाजी किसके पक्ष में उलटने के लिए है इसे राजनीति का सामान्य विद्यार्थी भी समझता होगा !