छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ‘गांधी और आधुनिक भारत’ विषय पर बोल रहे थे. उन्होंने कश्मीर के ताज़ा हालात का ज़िक्र करते हुए ऑडियन्स की ओर सवाल उछाला – एक करोड़ लोगों को बंधक बना कर शेष 129 करोड़ लोगों का समर्थन हासिल किया जाए ये कैसा भारत है ?
सन् 2013 में जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने गुजरात मॉडल को जोर शोर से पेश किया तो देश की मीडिया ने और उनकी पार्टी के प्रोपगेंडा तंत्र ने उसे इस देश के वैकल्पिक राजनीतिक कथानक के रूप में पेश किया .उन्होंने जब इस बात पर ज़ोर दिया कि गुजरात और उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय में कितना अंतर है तो कुछ लोगों ने इस बात की ओर इशारा किया कि हरियाणा व महाराष्ट्र जैसे कांग्रेस शासित प्रदेशों की प्रति व्यक्ति आय गुजरात से कहीं अधिक थी. इस पर यह तर्क दिया गया कि इन राज्यों ने कोई ऐसा वैकल्पिक मॉडल तैयार नहीं किया है जिसे देश एक मॉडल के रूप में अपना सके.
इसके बाद जब केरल मॉडल का तर्क सामने रखा गया, जहाँ मानवीय विकास के सभी सूचक गुजरात से बेहतर थे, तो यह कहा गया कि केरल मॉडल का श्रेय व्यक्ति विशेष या दल विशेष को नहीं दिया जा सकता, जबकि चुनाव में जनता के सामने किसी दल विशेष या व्यक्ति विशेष को ही चुनने का विकल्प होता है . इसके बाद गुजरात मॉडल को इतनी बार दोहराया गया कि वह एक सच बन गया और वह आज तक भारतीय राजनीतिक विमर्श का सबसे बड़ा सच बना हुआ है. यहाँ तक कि जब 2019 में श्री राहुल गांधी ने न्याय योजना समेत कृषि समस्या के समाधान को केंद्र में रखकर एक वैकल्पिक मॉडल का प्रस्ताव रखा तो जनता उसे स्वीकार नहीं कर पाई ,क्योंकि उसके पीछे गुजरात जैसा कोई उदाहरण नहीं था, और टेलीविज़न के युग में जनता शब्दों की नहीं दृश्यों की भाषा समझती है.
उन्हीं दिनों बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने भी अपना तथाकथित सुशासन मॉडल का दावा पेश किया. इसके तहत उन्होंने यह तर्क रखा कि गुजरात तो पहले ही एक विकसित प्रदेश था पर बिहार जैसे पिछड़े राज्य में सुशासन को लागू कर दिखाना एक बड़ी उपलब्धि है, और क्योंकि यह मॉडल उत्तर प्रदेश और बिहार में ही मुख्यतः प्रासंगिक है तो उनका दावा ज़्यादा मज़बूत था. लेकिन इस दावे को भी यह कह कर ख़ारिज कर दिया गया कि वह केवल कुछ प्रशासनिक योग्यता और सूझ-बूझ पर आधारित है और उसमें कोई वैकल्पिक कथानक नहीं है. मसलन वह न तो इस देश में किसी नई सामाजिक व्यवस्था की बात करता है जिसमें धार्मिक व जातीय समाजों को किसी नए प्रकार के क़रार में बाँधा जाए फिर चाहे वह सांप्रदायिक और जातीय वर्चस्ववादी क़रार ही क्यों न हो.
नीतीश के बिहार मॉडल में विदेश नीति, व्यापार नीति,कश्मीर, आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों का ज़िक्र नहीं था और उनका मॉडल राष्ट्रीय मॉडल नहीं बन सकता था. इस प्रकार से अहमदाबाद से उठ कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए गुजरात मॉडल ने एक वर्चस्ववादी राजनीतिक विमर्श को देश का मुख्य विमर्श बना दिया.
गांधी और आधुनिक भारत पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री बघेल ने कहा कि स्व. विनोबा भावे ही गांधीजी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे.यह कहते हुए श्री भूपेश बघेल यह भी स्पष्ट कर रहे थे कि अंतिम व्यक्ति पर केंद्रित सर्वोदय का सिद्धान्त ही किसी भी राजनीतिक विमर्श का आधार हो सकता है.
उन्होंने कहा कि गांधीजी का सत्याग्रह एक प्रयोग था. यह उनका ही हौसला था कि वह जो मॉडल पेश कर रहे थे वह भी एक प्रयोग ही था. दरअसल कोई भी मॉडल एक प्रयोग होता है देश की गति को फिर से परिभाषित करने का.
भूपेश बघेल ने इस मौके पर गांधी जी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए यह भी कहा कि भारत में आधुनिकता की शुरुआत सामाजिक सुधारों से आज़ादी से लगभग तीन चार दशक पहले ही शुरू हो गई थी. इन पंक्तियों के साथ श्री बघेल गांधी युग की ही बात कर रहे थे क्योंकि भारतीय जनजागरण के मूल्यों को आम जनमानस की भाषा और व्यवहार में ढालकर उसे गांधीजी ने सार्वभौमिक मूल्य बना दिया था और देश आधुनिकता की ओर बढ़ चला था.
भूपेश बघेल ने आज की दक्षिणपंथी फासीवादी राजनीति को गांधीवाद की चुनौती देते हुए कहा कि आज पूरे देश में डर का माहौल है और ऐसा इसलिए है कि आज की सत्ताधारी शक्तियों ने देश में हर तबके को दूसरे तबके का भय दिखाते हुए पूरे देश को भयभीत कर दिया है . आज यहाँ कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है.
बघेल ने गांधीजी के अंतिम दिनों को याद करते हुए कहा कि अपने ऊपर बम से हमला होने के बावजूद गांधीजी ने सुरक्षा लेने से मना कर दिया था. यहाँ तक कि उन्होंने अपनी प्रार्थना सभा में आने वालों की तलाशी की इजाज़त भी नहीं दी थी. इसीलिए ये कह सकते हैं कि गांधीवाद का अर्थ निरंतर निर्भीकता का अभ्यास है और आज यहाँ निर्भीकता राजसत्ता के सामने साहस के साथ मुखर होकर सच बोलने से ही परिलक्षित होती है.
अपने इस वक्तव्य में श्री बघेल ने कश्मीर पर भी अपनी स्पष्ट राय रखी थी. उन्होंने कहा कि एक करोड़ लोगों को बंधक बनाकर शेष 129 करोड़ लोगों का समर्थन हासिल किया गया है , यह समाज में व्याप्त भय की पराकाष्ठा है ! उन्होने कश्मीर पर सोशल मीडिया की चर्चाओं का उल्लेख करते हुए उसमें निहित पितृसत्ता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया.
उन्होंने आज फैलाए जा रहे संकीर्ण राष्ट्रवाद के बरक्स गांधीजी के राष्ट्रवाद की चर्चा की. उन्होंने कहा कि उसमें किसी को राष्ट्रविरोधी नहीं बताया गया और किसी से भी उसके राष्ट्रवादी होने के प्रमाण नहीं माँगे गए.गांधी जी का राष्ट्रवाद सभी धर्म, जाति और वर्गों की समानता पर आधारित था.
भूपेश बघेल ने कहा कि गांधी जी ने हिन्दी के प्रचार और धन की कुछ हाथों में केंद्रित न होने देने की अपनी कोशिशों को राष्ट्रवाद का आधार बनाया था. उन्होंने युवाओं का यह कहकर आह्वान किया कि गांधी और आज़ादी के आंदोलन के अन्य नेता जब आंदोलन में आए थे तो वो भी नौ जवान थे और नौजवान ही आज के इस भय का मुक़ाबला कर सकते हैं.
1920 में भाषाई आधार पर प्रदेश कांग्रेस कमिटीयों का गठन गांधीजी के संघीय ढांचे पर विश्वास को दर्शाता है और धारा 370 के मामले में इसी संघीय ढांचे पर चोट की गई है.
इस तरह आज के सारे राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों को गांधीवादी व्याकरण और दर्शन में व्यक्त करके श्री भूपेश बघेल ने एक ऐसी बड़ी बाधा को पार किया है जो सभी विपक्षी पार्टियों की, विशेष कर वामदल और कांग्रेस की विचारधारा को विदेशज बताकर ख़ारिज कर देती थी.
अब बात करते हैं उस छत्तीसगढ़ मॉडल की जो आज गुजरात , बिहार,केरल या हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के शासन के मॉडल के मुकाबले विमर्श के केंद्र में आ गया है. अपने इस मॉडल पर विस्तार से चर्चा करते हुए श्री भूपेश ने अपनी सरकार की नीतियों को सामने रखा. उन्होंने बताया कि किस तरह ग्राम स्वावलंबन को आधार बनाकर एक विकास नीति बनायी गई है जिसे नरवा गरवा घुरवा बारी जैसे नारों के साथ लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि आदिवासियों का उनके जंगल और ज़मीनों पर अधिकार सिद्ध है और टाटा की अधिगृहित भूमि लौटाना इसी विश्वास पर आधारित है. दूसरी ओर जब केंद्र सरकार वनाधिकार क़ानून में संशोधन लाकर आदिवासियों के इन अधिकारों का हनन करती है तो यह गांधी का तिरस्कार है.
इसी के साथ मुख्यमंत्री का नक्सल समस्या को मानवीय समस्या बताना भी यह दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ मॉडल में विचारधारा का घाल मेल नहीं है और यह मॉडल विशुद्ध गांधीवादी भूमि पर खड़ा है.
अपने मॉडल की श्रेष्ठता का दावा उन्होंने यह कहकर पेश किया कि आज जब नोट बंदी और GST जैसी वर्चस्ववादी नीतियों के कारण देश में बेरोज़गारी और आर्थिक मंदी का दौर है तो छत्तीसगढ़ में बेरोज़गारी में कमी आयी है और मंदी का भी कोई असर नहीं है यहाँ तक की ऑटो क्षेत्र में 25 प्रतिशत का उछाल दर्ज किया गया है.
इस बार इस मॉडल के पास परिणाम ,नीति, विचारधारा ,देसज भाषा, राष्ट्रीय संप्रेषण और उन पर दावा कर सकने वाला दल और नेतृत्व सब कुछ है तो यह देखना होगा कि वह प्रॉपगैंडा तंत्र इस बार क्या बहाना बनाता है !
यहाँ मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि यह एक जेसिंडा आर्डर्न क्षण है.याद रहे कि एक नस्लवादी हमले के बाद पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बुर्का पहन कर जेसिंडा ऑर्डन उनसे मिलने गईं. महज 50 लाख लोगों के एक छोटे से देश न्यूज़ीलैंड की एक गुमनाम प्रधानमंत्री जेसिंडा ने मुश्किल क्षणों में दुनिया के सामने करुणा की राजनीति का एक नया उदाहरण पेश किया तो मानवता का पाँचवा भाग समेटे हुए भारत यदि फासीवाद की गोद में समा रहा हो तब साहस के साथ कश्मीर के सवाल पर केंद्र की सत्ता से दो टूक सवाल करना और उस शक्ति के सामने सत्य-अहिंसा को आगे करना ऐसा ही क्षण है, जिसे मैँ जेसिंडा ऑर्डन क्षण कहूंगा.
यदि मेरी समझ के अनुसार यह भाषण उनके राजनीतिक विश्वास का चित्रण है तो मैं भारत में एक अच्छी राजनीतिक विमर्श की संभावना देख रहा हूँ.