रायपुर। बीजापुर जिले के सारकेगुडा में साल 2012 में नक्सलियों के साथ सुरक्षा बलों की हुई मुठभेड़ में निर्दोष आदिवासियों की मौत हुई थी. इसका खुलासा मुठभेड़ की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में हुआ है. इस मुठभेड़ में 7 नाबलिगों समेत 17 निर्दोष ग्रामीणों की मौत हुई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मुठभेड़ में किसी भी नक्सलियों के मारे जाने या घायल होने का कोई भी प्रमाण नहीं मिला है. आयोग ने राज्य सरकार द्वारा तय किये गए जांच बिंदुओं पर जांच के बाद 78 पेज की रिपोर्ट तैयार की और 1 माह पहले सरकार को सौंप दी है.
आयोग ने रिपोर्ट को लेकर कहा है कि, मौखिक गवाहियों पर नहीं बल्कि परिस्तिथियों पर निर्भर किया. सभी साक्षियों की मौखिक गवाहीयों पर गहन चर्चा के बाद, आयोग का मानना है कि वे सारे बयान विसंगतियों से पीड़ित हैं. आयोग के मुताबिक इन सभी गवाहियों में सच्चाई को झूठ से अलग करना असंभव है, और इसलिए घटना की परिस्थितियों पर ही भरोसा करना होगा.
” उपरोक्त के मद्देनजर, सबूतों की सराहना की एक सुनहरी कहावत कि ‘एक व्यक्ति झूठ बोल सकता है, लेकिन परिस्थितियों नहीं” का सहारा लेना पड़ेगा। इसलिए, जो परिस्थितियां रिकॉर्ड पर दिखाई देती हैं, उन पर विचार और चर्चा किया जाना चाहिए और रिकॉर्ड पर मौजूब सबूतों को उसके आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा…
रिपोर्ट के निष्कर्ष
- मीटिंग खुले मैदान में हो रही थी
आयोग द्वारा यह पाया गया कि गांव वालों की बैठक खुले मैदान में हो रही थी, जैसा कि ग्रामीणों द्वारा शुरू से कहा जा रहा है, न कि घने जंगलों में, जैसा कि सुरक्षा बलों ने दावा किया था.
” ऐसा प्रतीत होता है कि यह घटना तीन गांवों (सरकेगुडा, कोट्टागुडा और राज पेंटा) के बीच में एक खुले जगह में हुई थी, जो जंगल से लगे क्षेत्र से सटा हुआ है.”
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बैठक के दौरान नक्सलियों की मौजूदगी का कोई सबूत नहीं
हालांकि आयोग ग्रामीणों की इस बात पर सहमत नहीं है कि बैठक अगले दिन होने वाले बीज पंडुम के त्योहार की तैयारी के लिए बुलाई गयी थी , लेकिन आयोग इस निष्कर्ष पर आया है कि मीटिंग में नक्सलीयों की मौजूदगी का कोई संतोषजनक सबूत नहीं हैं.
“उपरोक्त परिस्थितियों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बैठक अहानिकर नहीं थी और बीज पंडुम महोत्सव की व्यवस्था करने के उद्देश्य से नहीं बुलाई गयी थी, जैसा कि शिकायतकर्ताओं की ओर से दावा किया गया है. हालांकि, यह सच है कि, बैठक में इकट्ठे हुए लोग या तीन गाँवों – सरकेगुडा, कोट्टागुडा और राज पेंटा, से मारे गए या घायल लोग नक्सली थे, इस बात को पुख्ता सबूतों के आधार पर रिकॉर्ड में स्थापित नहीं किया गया है, हालांकि, उनमें से कम से कम कुछ लोगों का आपराधिक रिकॉर्ड था, जो की रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है.”
- 6 घायल सुरक्षाकर्मी दूसरे सुरक्षाकर्मियों की फायरिंग से घायल हुए थे सुरक्षा बलों को लगी चोटों का गहराई से विश्लेषण करने के बाद, आयोग का निष्कर्ष है कि उनकी चोटें किसी अन्य पार्टी/लोगों द्वारा दूर से फायरिंग के कारण नहीं हो सकती थीं, और संभवतः वे अपनी ही पार्टी के सदस्यों की क्रॉस फायरिंग के कारण हुई थीं.
“… जिस तरह की चोटें घायल सुरक्षा कर्मियों को आयी है, वह दूर से फायरिंग के कारण नहीं हो सकती थी, जैसे कि दाहिने पैर के अंगूठे पर या टखने के पास चोट। दूसरी बात, गोली से लगी चोटें…. केवल क्रॉस फायरिंग के कारण हो सकती हैं, यह अधिक मुमकिन प्रतीत होता है, क्योंकि यह घटना के स्थान पर चारों ओर अंधेरा था और इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सुरक्षा बलों के साथी सदस्यों द्वारा चलाई गई गोलियों से ही टीम के अन्य सुरक्षा कर्मियों को गोली लगी…… “
- पुलिस की जांच दोषपूर्ण हैं एवं उसमें हेरा-फेरी की गयी है पुलिस जांच के दौरान तैयार किए गए दोषपूर्ण/त्रुटिपूर्ण दस्तावेजों पर टिप्पणी करते हुए, आयोग कहता है कि दस्तावेज “जांच में स्पष्ट हेरफेर हुई है,”. इस वजह से, आयोग ने घटना स्थल से जप्त हुए भरमार, छरों आदि की कथित जप्ती (जिसके द्वारा पुलिस नक्सली उपस्तिथि साबित कर रही थी) को खारिज कर दिया.
“… छरों आदि का जब्ती नामा ठीक से नहीं बनाया गया था। कथित रूप से इब्राहिम खान. द्वारा तैयार किए गए जब्ती ज्ञापन में जब्त किए गए सामानों का पूरा विवरण. नहीं है। इसके अलावा, जब्त की गई वस्तुओं को ठीक से सील नहीं किया गया था। इस प्रकार, जप्ती कानून के द्वारा स्वीकृत प्रक्रिया के अनुसार नहीं थी, जो कि अत्यधिक विलंबित था और मानदंडों के अनुसार नहीं था.”
- इस बात का कोई साबुत नहीं कि सुरक्षाबलों पर फायरिंग छरों से हुई थी : आयोग का निष्कर्ष है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि सुरक्षा बलों को छरौं (जो भरमार में प्रयोग होते हैं) से गोली लगी न कि कारतूस (सुरक्षा बालों द्वारा प्रयोग होने वाली बंदूकों से) से.
“… यह नहीं कहा और निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि घायल सुरक्षा बलों को छरों से मारा गया था और कारतूस से नहीं। इस प्रकार, इस बात की प्रबल संभावना है कि घायल सुरक्षाकर्मियों पर गोली क्रॉस-फायरिंग (उनकी खुद की गोलियों से हुई, जैसा की शिकायतकार्गों द्वारा बोला है . ”
- सरक्षाबलों द्वारा की गयी गोलीबारी आत्मरक्षा में नहीं थी, बजाय फायरिंग अनुचित और अत्यधिक थी. कम से कम छह मृतक ग्रामीणों के सिर में बंदूक की चोटें थीं. – मृतकों में से 11 को उनके धड़ पर गोली लगने की चोटें थीं.
– 17 में से 10 मृतकों को पीठ पर बंदूक की चोटें थीं, जो ” स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि सुरक्षा बलों ने आत्मरक्षा में गोली नहीं चलाई थी, बल्कि जब मीटिंग में मौजूद लोग गोलियां चलने के बाद घटना स्थल से भाग रहे थे, उस वक़्त उनपर गोली चलायी।” [कंडिका 125] – एक व्यक्ति को उसके सिर के ऊपर से गोली मार दी गई थी और बर्स्ट फायरिंग का भी सबूत है, हालांकि इसका सीआरपीएफ द्वारा इनकार किया गया है.
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गांववासियों को सुरक्षा बलों के जवानों द्वारा पीटा गया व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया
गांववासियों पर गोलीबारी करने के अलावा, सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें पीटा व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया. “तथापि यह भी नोट करना जरूरी है कि बंदूकों की गोलियों से हुई चोटों के अलावा मृतकों तथा घायल व्यक्तियों के शरीरों पर कई अन्य प्रकार की चोटें भी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उनपे शारीरिक रूप से वार करते घायल किया गया.”
“… उपरोक्त लिखीं सभी चोटें गोली चलने से नहीं हुई है बल्कि मार पीट होने के कारण लगी हुई चोटें हैं जो सुरक्षा कर्मियों के अलावा कोई नहीं कर सकता.”
“इसलिए यह निसंदेह कहा जा सकता है कि यह घटना बंदूकें चलने तक सीमित नहीं था और नहीं तब समाप्त हुआ. बल्कि, यह स्पष्ट होता है कि सुरक्षा दलों द्वारा की गई गोलीबारी भी, जैसे पहले चर्चा की गया है, अकारण थी। साथ ही, एकत्रित गांववालों को जवानों ने शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया व बहुत बुरी तरह पीटा जो कि मृत व घायल लोगों के शरीरों पर चोटों से स्पष्ट होता है.”
- एक गांववासी की अगली सुबह उसके घर के सामने हत्या की गयी फायरिंग के कई घंटों बाद, अगले दिन सुबह गांव के एक व्यक्ति इरपा रमेश को सुरक्षा कर्मियों द्वारा बड़ी बेरहमी से पीटकर मार डाला था.
“इस प्रकार, यह सिद्ध है की मृतक इरपा रमेश की पिटाई व हत्या दिनांक 29/06/2012 की सुबह हुई, याने कि 28/06/2012 की वारदात के काफी बाद. इससे, विपरीत पक्ष – सुरक्षा दल द्वारा दिए गए घटना के विवरण पर गंभीर शंका उठती है.”
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सुरक्षाबलों द्वारा अनुचित/अकारण और जानबूझकर घातक बल का उपयोग किया गया
रिपोर्ट के इस खंड के समापन अनुच्छेद में, आयोग स्पष्ट शब्दों में कहता है कि घटना उस तरह से नहीं हुई है जैसा की सुरक्षा बलों द्वारा बताया गया है। बल्कि, ग्रामीणों को करीब से गोली मारी गयी, और गोली भी जान से मारने के इरादे से सर और धड़ पर मारी गयी थी, साथ ही गोलियां मारने के बाद वहां लोगों की पिटाई भी की गयी थी.
“उपरोक्त…. रिकॉर्ड पर मौजूद परिस्थितियों को आंकने पर यह प्रतीत होता है कि मृतकों के धडों पर जैसे कि सिर के शीर्ष पर गोली से पता चलता है कि उन्हें करीब से गोली मारी गई है, और यह दूर से फायरिंग का परिणाम नहीं हो सकता है, जैसा कि सुरक्षा बल का कहना है. बंदूक की चोटों की प्रकृति और स्थान सहित उपरोक्त परिस्थितियों को विचार में रखते हुए यह स्पष्ट दिखता है कि घटना उस तरह नहीं हुई थी जिस तरह विपरीत पक्ष-सुरक्षा बलों द्वारा बताया गया है. यह भी प्रतीत होता है कि सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग दूर से नहीं की गयी थी और न ही जब उनपर हमला हुआ, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि सुरक्षा बलों ने बैठक के सदस्यों को देखा, उनके पास गए और फिर करीब से गोलीयाँ चलाई जिसके कारण कुछ लोगों के सिर के शीर्ष पर, जबकि दूसरों के धड़ और पीठ पर गोलियां लगी. इसके अलावा, बैठक के सदस्यों के साथ मार पीट भी की गयी, जिसके कारण उनके शरीर पर घाव हुए थे. ये चोटें (बुलेट की चोटों के अलावा) केवल करीब से हो सकती है- तेज धार वाले हथियारों से या कठोर या भोथरा (कुंठित) वस्तू जैसे बंदूक या राइफल का बट से हो सकती हैं.”
यह था मामला
मामला 28-29 जुलाई की मध्यरात्रि का है. सीआरपीएफ और जिला पुलिस बल की संयुक्त टीम ने 6 नाबालिग समेत 17 लोगों को मार गिराया था. फोर्स ने एनकाउंटर के बाद दावा किया था कि एक सूचना मिलने से मौके पर पहुंची संयुक्त टीम के ऊपर नक्सलियों ने फायरिंग शुरु कर दी थी. जिसके जवाब में फोर्स ने गोलीबारी करते हुए 17 नक्सलियों को मार गिराया था. वहीं इस एनकाउंटर में सुरक्षाबल समेत कई लोग घायल हुए थे.
घटना के बाद ग्रामीणों ने इस मुठभेड़ को पूरी तरह से फर्जी बताया था. ग्रामीणों का कहना था कि परंपरागत त्यौहार बीजपेंडुम के आयोजन की रुपरेखा बनाने एक खुले मैदान में सरकेगुडा, राजपेटा और कोट्टागुडा के ग्रामीण इकट्ठा हुए थे. उनकी बैठक चल ही रही थी कि सुरक्षाबल के जवान वहां पहुंचे और उनके साथ मारपीट की गई और गोलीमार कर हत्या कर दी गई. अगले दिन एक ग्रामीण के घर सुरक्षाबल के जवान घुसे और उसकी हत्या कर दी. ग्रामीणों ने सरकार से जांच की मांग की थी. मामला मीडिया में आने के बाद विपक्ष पार्टी कांग्रेस और मानवाधिकार आयोग के सदस्यों ने गांव का दौरा किया था और ग्रामीणों से बातचीत करने के बाद मुठभेड़ पर सवाल उठाए थे साथ ही सरकार से जांच कराए जाने की भी मांग की थी. विधानसभा में भी विपक्ष द्वारा मामला उठाया गया, जिसके बाद सरकार ने हाईकोर्ट के जज वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में 1 सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का 11 जुलाई 2012 को किया था.