शिखिल ब्यौहार, भोपाल। प्रदेश में लगातार गिरता भूजल स्तर शासन-प्रशासन के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। जानकारों की राय के बाद सरकार ने भविष्य के बड़े संकट को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
दरअसल, अब सभी शहरों में कांक्रीट और डामर की सड़कों के साथ फुटपाथ पर लगे पेड़ों के पास पेवल ब्लॉक नहीं लगाए जाएंगे। कुल 1 बाय 1 की जगह छोड़नी होगी। नए पेड़ लगाने के लिए न्यूनतम 1.5 बाय 1.5 का स्थान छोड़ना होगा। यह स्थान मिट्टी के लिए खुला रखना होगा। ताकि बारिश का पानी इन स्थानों से जमीन के अंदर पहुंच भूमिगत जल स्तर को बढ़ा सके। ऐसे ही सकड़ो और फुटपाथ से जुड़े कई निर्देश नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने जारी किए हैं।
अफसरों ने बताया कि, लगातार गिरते भूमिगत जल स्तर और पेड़ों के संरक्षण को लेकर भोपाल स्थित एनजीटी की सेंट्रल बेंच में याचिका दायर की गई थी। इसमें बताया गया था कि विकास की दौड़ में कांक्रीट में तब्दील होते शहर चिंता का कारण बने हुए हैं। ओपन स्पेस कम होता जा रहा है तो साल दर साल भूमिगत जल स्तर में भी गिरावट दर्ज की जा रही है। हालात ऐसे हैं कि लोग तो ठीक बल्कि जानवरों को तक पेड़ों की छाव नसीब होना मुश्किल होता जा रहा है। कारण यह है कि सड़क और फुटपाथ पर पेड़ों के तनों से लगकर डामरीकरण या सीमेंट का उपयोग किया जाता है। सौदर्यीकरण के नाम पर तनों से ही लगकर पेवर ब्लॉक लगा दिए जाते हैं।
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एनजीटी ने यह दिया था आदेश
याचिका पर सुनवाई के बाद एनजीटी ने गाइडेंस फॉर ग्रीनिंग ऑफ अर्बन एरिया एंड लेंडस्पेस 2000 और एक्शन प्लान फॉर फ्लड प्रूफिंग ऑफ सिटी/टाउन के तहत प्लान तैयार करने का निर्देश दिया था। पर्यावरण के साथ भूमिगत जल संरक्षण को लेकर सरकार की लापरवाही भी मानी गई। लिहाजा सरकार ने दिल्ली समेत अन्य राज्यों में नीति और नियमों का अध्ययन कराया। साथ ही प्रदेश के सभी नगर निगम आयुक्त, मुख्य नगरपालिका अधिकारी और नगर परिषद को सात बिंदुओं का आदेश जारी किया।
नगरीय प्रशासन ने यह दिए नए दिशा-निर्देश
- कांक्रीट और डामर की सडक़ के पास लगे पेड़ों के चारों ओर न्यूनतम 1 बाय 1 मीटर की जगह खुली छोडऩी होगी।
- पेड़ के तने से लगे सीमेंट, डामर और पेवर ब्लॉक को 1 मीटर तक तोड़ना होगा।
- नए पेड़ लगाने के लिए कुल डेढ़ (1.5) मीटर जगह चारों ओर खुली छोड़ी जाएगी।
- छोड़े गए स्थान पर मिट्टी के अलावा कुछ नहीं होगा।
- रोड साइट पेवमेंट को बनाने के लिए कांक्रीट एवं टाइल्स का उपयोग नहीं होगा।
- बेहतर क्रियांनवहन के लिए निकाय अपने स्तर पर हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के साथ मिलकर संरक्षण के लिए प्लान बनाएं।
- शहर के रिक्त स्थान यहां प्लानिंग के बाद भी निर्माण नहीं हुआ उन्हें ग्रीन स्पेस के रूप में विकसित किया जाए।
बाढ़ की समस्या भी होगी हल, यह भी निर्देश
नगरीय प्रशासन ने फ्लड प्रूफिंग के लिए भी काम करने का निर्देश निकायों को दिया है। इसमें बताया गया है कि बिना ड्रेनेज सिस्टम के शहरों में बाढ़ की समस्या होती है। अनावश्यक कांक्रीट के उपयोग कारण बारिश का पानी जमीन सोख नहीं पाती लिहाजा शहरों में बारिश में हालात जल्द खराब हो जाते हैं। नाले-नालियों में भी कांक्रीट सीमेंट से सबसे ज्यादा चोक की समस्या को भी नगरीय प्रशासन ने स्वीकार किया है।
गिरता भूमिगत जल स्तर पर भी खतरे की घंटी
केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में प्रदेश के हालातों को लेकर चिंता जाहिर की गई है। इसमें बताया गया है कि बीते 10 सालों में 63.24 प्रतिशत तक भूमिगत जल में गिरावट आई है। साल दर साल कई जिलों में गंभीर हालत पैदा हुए।
बेतरतीब प्लानिंग से बर्बाद हो रहा रेन वाटर
एक्सपर्ट कमल राठी ने बताया था कि अर्बन प्लानिंग में खामियों के कारण कई गैलन रेन वाटर खराब हो जाता है। इसमें बताया गया था शहर के कुल 61 फीसदी भाग में निर्माण है या इनकी प्लानिंग है। बड़ा हिस्सा रोड नेटवर्क का है। यहां ड्रेनेज सिस्टम या सडक़ों के बहते हुए पानी नाले-नालियों में बर्बाद हो जाता है। नालों का निर्माण भी अब पक्का हो चुका है। लिहाजा भूमिगत जल कम और रेन वाटर बर्बाद हो रहा है।
भोपाल में इन स्थानों पर लापरवाही
भोपाल के 24 किमी लंबे बीआरटीएस के किनारे पेड़ों के तनों से लगकर सीमेंट या पेवर ब्लाक लगाए गए। लिंक रोड नंबर 01, 02 और 03 तीन पर भी यही नजारा देखने को मिलता है। चिनार पार्क फुटपाथ समेत अन्य कई स्थानों पर भी पेड़ों को ऐसे ही बर्बाद दिया गया।
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