ट्रंप द्वारा भारत की 6 पेट्रोलियम कंपनियों पर बैन लगा दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि ये कंपनियां ईरान के साथ व्यापार कर रही थीं। इनमें एलकेमिकल सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड, ग्लोबल इंडस्ट्रियल केमिकल्स लिमिटेड, जुपिटर डाई केम प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियां भी शामिल है। इस बीच खबर है कि भारत की सरकारी तेल रिफाइनरियों ने पिछले सप्ताह से रूसी कच्चे तेल की खरीद को अस्थायी रूप से रोक दिया है। इसके पीछे मुख्य वजह रूस द्वारा दी जा रही छूट में कमी और ट्रंप की रूस से तेल खरीदने को लेकर सख्ती बताई जा रही है। यह जानकारी उद्योग से जुड़े सूत्रों ने दी। रिपोर्ट के अनुसार, रूस से मिलने वाली तेल की छूट 2022 में पश्चिमी प्रतिबंधों के लागू होने के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है।
रूस से कच्चे तेल की खरीदी सप्ताहभर से बंद
सूत्रों ने बताया कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और मैंगलोर रिफाइनरी पेट्रोकेमिकल लिमिटेड ने बीते एक सप्ताह में रूसी कच्चे तेल के लिए कोई नई खरीद नहीं की है।
बता दें कि, तेल आयात के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है और समुद्री मार्ग से रूसी कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार भी है। यूक्रेन युद्ध के चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुके रूस के लिए भारत तेल निर्यात प्रमुख राजस्व स्रोत बना हुआ है।
अबू धाबी और द. अफ्रीका की ओर रुख
सूत्रों के मुताबिक, ये सरकारी कंपनियां आम तौर पर डिलीवरी-बेसिस पर रूसी तेल खरीदती हैं, लेकिन अब उन्होंने विकल्प के तौर पर अबू धाबी के मुरबान क्रूड और पश्चिमी अफ्रीका के तेल की ओर रुख किया है। उधर, रिलायंस इंडस्ट्रीज और नयारा एनर्जी जैसी निजी कंपनियां, जिनमें रूसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट की बड़ी हिस्सेदारी है, मास्को के साथ सालाना समझौते के तहत तेल खरीदती हैं और भारत में रूसी तेल की सबसे बड़ी खरीदार बनी हुई हैं।
गौरतलब है कि 14 जुलाई को ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि अगर रूस यूक्रेन के साथ कोई बड़ा शांति समझौता नहीं करता, तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि रूस की ओर से मिलने वाली छूट 2022 के बाद सबसे कम स्तर पर आ गई है, जब पश्चिमी देशों ने रूस पर पहली बार कड़े प्रतिबंध लगाए थे। ऐसे में भारतीय रिफाइनरियां अब रूसी कच्चे तेल से पीछे हट रही हैं।
रिफाइनरियों को डर है कि यूरोपीय संघ की नई पाबंदियों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार, खासकर फंड जुटाने जैसे कार्यों में दिक्कत आ सकती है, भले ही वे तय मूल्य सीमा के भीतर ही तेल खरीद रहे हों। भारत पहले ही एकतरफा प्रतिबंधों का विरोध जता चुका है।
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