रायपुर. जनसंपर्क विभाग में हुए घोटाले को लेकर सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद मामले की जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी गई है. गौरतलब है कि पिछली सरकार में विभाग को आबंटित ढाई सौ करोड़ के एवज में विभाग मे 400 करोड़ रुपये खर्च कर दिए थे. राज्य की बाहर की दर्जनों एजेंसियों को करोड़ों रुपये के गैर जरूरी काम दे दिए गए. सत्ता में कांग्रेस की सरकार काबिज होने के बाद पूरे मामले का खुलासा हुआ था. हालांकि विभाग ने मामले की जांच के लिए पहले आंतरिक कमेटी का गठन किया था. जांच की दिशा जैसे-जैसे आगे बढ़ी अनियमिताओं की कलई खुलती चली गई. विभाग के अधिकारियों की आंखें फ़टी रह गई. जांच में सामने आ रहे तथ्यों को विभाग के भारसाधक मंत्री के नाते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दी गई. उन्होंने घोटाले की जांच की जांच ईओडब्ल्यू को सौंपने का फैसला किया है.

विभाग में हुई गड़बड़ी की जांच के दौरान यह खुलासा हुआ था कि चुनावी आचार संहिता लगने के दिन ही 28 करोड़ रुपये के आरओ जारी कर दिए गए थे. बता दें कि भूपेश सरकार ने पूर्व सरकार में इम्पेनलमेंट किए गए 48 संस्थानों की निविदा रद्द कर दी थी. निरस्त की गई 21 निविदाओं के तहत 48 संस्थानें छत्तीसगढ़ संवाद से सूचीबद्ध थे. इन संस्थानों की निविदा प्रकिया को लेकर जांच भी राज्य सरकार ने शुरू कर दी है. इन संस्थानों को दिए गए कुल 85 करोड़ के कार्यों में से 61 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है. राज्य शासन की ओर से शासकीय कार्यों में व्यापक पारदर्शिता लाने और फिजुलखर्ची को रोकने के लिए इन सभी निविदाओं को निरस्त कर दिया गया.

निरस्त की गई 48 फर्मों व एजेन्सियों में से कुछ के कार्यों की वर्तमान में आवश्यकता नहीं ‘ तथा कुछ फर्मों के कार्यों में प्रारंभिक तौर पर अनियमितता पाई गई थी. इसमें एक फर्म की निविदा अक्टूबर 2018 की एक तारीख को स्वीकृत हुई और 6 अक्टूबर को कार्यो का करोड़ों का बिल भी प्रस्तुत कर दिया गया था. इसे देखते हुए 21 निविदाओं के अंतर्गत कार्य करने वाली 48 संस्थाओं की जांच की कार्यवाही की जा रही है.