नई दिल्ली। चीन के वुहान शहर से निकले कोरोना वायरस का दुष्प्रभाव पूरी भारत सहित पूरी दुनिया झेल रही है. ऐसे कठिन समय में जब आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई है, और कंपनियां पैसों को तरस रही है, तब चीनी कंपनियां मौके का फायदा न उठा पाए इसके लिए भारत ने अपनी सीधे विदेश निवेश नीति में जरूरी संशोधन किया है.
भारत सरकार ने एफडीआई पॉलिसी में संशोधन किया है. डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इण्डस्ट्रीज एण्ड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) के अनुसार, पड़ोसी देशों की कंपनियों या व्यक्तियों के भारतीय कंपनी में सीधे निवेश से पहले सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा. इसका सीधा असर चीन के साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमार से होने वाले निवेश पर पड़ेगा.
बता दें कि भारत पहले ही पाकिस्तान और बांग्लादेश की कंपनियों और व्यक्तियों पर इस तरह की बंदिश लगाए हुए था, जिसे कोरोना संकट के दौरान बढ़ाते हुए तमाम पड़ोसी देशों को शामिल किया है. कहने को तो इसकी जद में तमाम पड़ोसी देश हैं, लेकिन निशाना सीधे तौर पर चीन पर है, जहां की कंपनियां कोरोना संकट के दौरान अवसर का लाभ उठाते हुए संकट से जूझ रही कंपनियों – खासतौर के टेक कंपनियों पर अपनी निगाहें रखे हुए हैं.
जानकार बताते हैं कि चीनी टेक इन्वेसटर्स भारतीय स्टार्टअप में करीबन 4 बिलियन डॉलर निवेश करने की तैयारी में हैं. चीनी कंपनियों की भारतीय कंपनियों में दिलचस्पी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते कुछ सालों में भारत की 30 टेक स्टार्टअप कंपनियों में से 18 में चीनी कंपनियों ने बड़ा निवेश किया है. ऐसे में भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह की पाबंदी अनिवार्य हो गई थी.
DPIIT के अनुसार, अब से मौजूदा कंपनी या भावी कंपनियों के स्वामित्व में किसी प्रकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तांतरण होता है, जिसमें लाभान्वित होने वाले संशोधित पॉलिसी के दायरे में आते हैं, उसमें भी सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी.